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दुर्ग/शौर्यपथ /(विशेष व्यंग्य रिपोर्ट):
शक्ति नगर तालाब में हजारों मछलियों ने हाल ही में सामूहिक रूप से आत्महत्या कर प्रशासन को झकझोर कर रख दिया है। हालांकि प्रशासन फिलहाल असमंजस में है कि मामला हत्या का है, आत्महत्या का, या फिर मछलियों की कोई वैश्विक साजिश?
बताया जा रहा है कि मछलियों ने तालाब के दूषित होते पानी और बढ़ते रासायनिक अत्याचारों से तंग आकर स्वेच्छा से जीवन त्याग दिया। पर्यावरणविद् इसे जल-जागृति आंदोलन का "मूक" रूप बता रहे हैं, जबकि कुछ वरिष्ठ अधिकारी इस पर विचार कर रहे हैं कि "क्या मछलियाँ मानसिक अवसाद में थीं?"
तालाब के किनारे कुछ बचे-खुचे मछली परिजन फिलहाल अज्ञातवास में हैं। बताया जा रहा है कि वे तालाब के एक कोने में सीसीटीवी कैमरों से बचते हुए छिपे हुए हैं, ताकि कोई उन्हें बुलाकर "मुख्य गवाह" ना बना ले। कुछ मछलियाँ तो अब वकीलों से सलाह ले रही हैं कि क्या मछलियों को भी गवाही से छूट दिलाने वाला कोई धारा लागू होती है या नहीं।
नगर निगम प्रशासन की मानें तो "हमने तो सिर्फ जड़ी-बूटी की दवा डाली थी, मछलियों को क्या हुआ हमें नहीं मालूम।" वहीं विशेषज्ञों की मानें तो यह वही जड़ी-बूटी थी जो पहले खरपतवार को मारती थी, अब मछलियों के आत्मबल को भी समाप्त कर चुकी है।
विपक्ष ने इसे "मछली संहार कांड" का नाम दे दिया है और इस मुद्दे पर बयानबाजी तेज कर दी है, जबकि सत्तापक्ष ने इसे "प्राकृतिक चक्र" कहकर रफा-दफा करने की कोशिश की। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “जब हिरण आत्महत्या कर सकता है, तो मछलियाँ क्यों नहीं?”—बात में वजन तो था, पर पानी में नहीं।
राजनीति भी इस आत्महत्या पर दो हिस्सों में बंटी हुई है। एक ओर नेता कह रहे हैं:
"हमने कोई दवा नहीं डाली, मछलियाँ खुद ही अवसाद में थीं।"
दूसरी ओर विपक्ष इसका "जल संहार कांड" घोषित कर चुका है और सीधे एसपी ऑफिस जाकर अपनी राजनीति का जाल बिछा चुका है।
विपक्ष ने इसे "मछली संहार कांड" का नाम दे दिया है और इस मुद्दे पर बयानबाजी तेज कर दी है, जबकि सत्तापक्ष ने इसे "प्राकृतिक चक्र" कहकर रफा-दफा करने की कोशिश की। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “जब हिरण आत्महत्या कर सकता है, तो मछलियाँ क्यों नहीं?”—बात में वजन तो था, पर पानी में नहीं।
जिला प्रशासन ने मामले की जांच का आदेश दिया है और मत्स्य विभाग की एक टीम मौके पर भेज दी गई है। सूत्रों की मानें तो टीम के सदस्य तालाब के आसपास मौन धारण कर चुके जीवों से पूछताछ करने की तैयारी में हैं। हालांकि अभी तक कोई मछली CBI को चुपचाप बयान नहीं दे पाई है।
इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ी चुप्पी उस पत्रकार जगत की है, जिनके पास अब सवाल पूछने की जगह, जवाब देने की जिम्मेदारी लाद दी गई है। खबर उठाने पर दबाव इतना गहरा है कि पत्रकारों को भी अब ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ने लगी है।
अंत में हम सब यही कह सकते हैं:
हे मछलियों, तुमने जो त्याग किया है, वह इतिहास के गहरे जल में अमिट रहेगा।
भगवान तुम्हारी मूक आत्माओं को वही शांति दें, जो इस देश की जांच समितियों को हमेशा मिलती रही है।
इस पूरे घटनाक्रम को देखते हुए व्यंग्यकार लेखक शरद पंसारी लिखते हैं—
“यह देश वही है जहाँ हिरण की मौत पर बहसें होती हैं, पर मछलियों की सामूहिक आत्महत्या बस जांच आदेशों की फाइलों में जल समाधि ले लेती है। शायद इसीलिए इन मछलियों ने इंसानों से पहले इंसानों को ही समझा दिया— अब और नहीं।”
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