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रायपुर / शौर्यपथ / क्रेडा अध्यक्ष भूपेंद्र सवन्नी पर तीन प्रतिशत कमीशन मांगने और ठेकेदारों को धमकाने के आरोपों के बाद अब इस प्रकरण में सियासी तापमान और बढ़ गया है। जहां एक ओर कांग्रेस ने खंडन पत्रों को दबाव और डर के तहत कराया गया बताया है, वहीं भाजपा खामोश नजर आ रही है। कांग्रेस ने पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हुए भूपेंद्र सवन्नी को तत्काल पद से हटाने की मांग की है।
प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने आज मीडिया से चर्चा करते हुए कहा, "यह पहला मौका है जब किसी शिकायत की जांच नहीं की जा रही, बल्कि खंडन करवाया जा रहा है। मुख्यमंत्री को भेजी गई ठेकेदारों की शिकायत के बाद मुख्यमंत्री सचिवालय ने स्वयं इस पर पत्र जारी कर पूरी जानकारी मांगी थी। बावजूद इसके, अब जो खंडन सामने आ रहे हैं, वो शिकायतकर्ताओं से नहीं, बल्कि अन्य ठेकेदारों से करवाए जा रहे हैं, जोकि बेहद गंभीर मामला है।"
धनंजय ठाकुर ने सीधे तौर पर भूपेंद्र सवन्नी पर आरोप लगाया कि उन्होंने शिकायतकर्ताओं को धमका कर, दबाव बना कर खंडन के लिए विवश किया। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि यही तरीका अगर मुख्यमंत्री तक की गई शिकायतों के साथ अपनाया जा रहा है, तो आम नागरिकों को न्याय की उम्मीद कैसे होगी?
"क्या भूपेंद्र सवन्नी मुख्यमंत्री से भी ऊपर हैं, जो जांच के आदेश के बाद भी वह ठेकेदारों को धमका रहे हैं? क्या भाजपा सरकार में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है?" – धनंजय ठाकुर
? पृष्ठभूमि में क्या है मामला?
इस पूरे विवाद की शुरुआत भूपेंद्र सवन्नी के खिलाफ ठेकेदारों की ओर से मुख्यमंत्री को भेजी गई शिकायत के सोशल मिडिया में उजागर होने के बाद राजनैतिक रंग चढ़ा । शिकायत में आरोप था कि क्रेडा में कार्य कराने वाले ठेकेदारों से भूपेंद्र सवन्नी तीन प्रतिशत कमीशन मांगते हैं और मना करने पर काम में अड़चन डालने की धमकी देते हैं।
शिकायत पर मुख्यमंत्री सचिवालय ने विभागीय स्तर पर संज्ञान लेते हुए क्रेडा से विवरण मांगा था, लेकिन इसके तुरंत बाद ही कुछ ठेकेदारों के नाम से खंडन पत्र सामने आने लगे, जिनमें आरोपों को निराधार बताया गया।
हालांकि, अब कांग्रेस का दावा है कि जो खंडन दिए जा रहे हैं, वे उन्हीं ठेकेदारों से नहीं हैं जिन्होंने शिकायत की थी। कांग्रेस इसे भाजपा द्वारा प्रशासनिक दबाव और राजनीतिक संरक्षण के तहत कराया गया ‘खंडन प्रबंधन’ बता रही है।
? कांग्रेस ने क्या मांग की है?
कांग्रेस की मांग है कि इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय स्वतंत्र जांच हो। जब तक जांच पूरी न हो, भूपेंद्र सवन्नी को उनके पद से हटाया जाए। जिन ठेकेदारों ने शिकायत की है, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
धनंजय सिंह ठाकुर ने आगे कहा, “भाजपा की सरकार में सुशासन की बात बेमानी हो चुकी है। जब मुख्यमंत्री तक की गई शिकायतों को दबाया जा रहा है तो यह संकेत है कि प्रदेश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं खतरे में हैं। गुंडागर्दी की ये राजनीति अब उजागर हो रही है।”
शौर्यपथ न्यूज़ / दुर्ग / दुर्ग शहर में गुरुवार रात घटित एक सनसनीखेज घटना ने पूरे प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों को झकझोर कर रख दिया है। छावनी के एसडीएम हितेश पिस्दा से शराब के नशे में धुत तीन युवकों द्वारा की गई बदसलूकी, धक्कामुक्की और गाली-गलौज की घटना अब एक नए मोड़ पर पहुंच गई है।
सबसे चौंकाने वाला खुलासा: SDM का भी हुआ अल्कोहल टेस्ट
विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पुलिस ने निष्पक्षता बनाए रखने के उद्देश्य से एसडीएम हितेश पिस्दा का भी अल्कोहल टेस्ट करवाया। हालांकि, उनकी टेस्ट रिपोर्ट के संबंध में अब तक कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है।
इस पूरी घटना में पुलिस की तत्परता दिखी—तीनों आरोपियों राकेश यादव, विपिन चावड़ा और मनोज यादव, जो विद्युत नगर और कसारीडीह क्षेत्र के निवासी हैं और खुद को भाजपा का कार्यकर्ता बताते हैं—को तुरंत हिरासत में लेकर मेडिकल परीक्षण के लिए जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां से उन्हें थाने लाकर आगे की कार्यवाही की गई।
तस्वीरें क्यों नहीं जारी हुईं? क्या कोई दबाव था?
इस मामले में एक और गंभीर सवाल उभरकर सामने आया है—आरोपियों की तस्वीरें सार्वजनिक क्यों नहीं की गईं? सूत्रों का कहना है कि पुलिस द्वारा नियमानुसार आरोपियों को जेल भेजने से पहले उनकी तस्वीरें जरूर खींची गई थीं, लेकिन इन्हें मीडिया या जनता के बीच जारी नहीं किया गया।
हालांकि पुलिस की ओर से इस पर कोई अधिकारिक बयान नहीं आया, लेकिन जानकारों का मानना है कि पुलिस प्रशासन की भी कुछ व्यावहारिक और प्रशासनिक मजबूरियां होती हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। राजनीतिक दबाव इन मजबूरियों का एक बड़ा कारण हो सकता है।
क्या सत्ताधारी दल के कार्यकर्ता सिस्टम से ऊपर?
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या राजनीतिक पहचान, विशेषकर सत्ताधारी दल से जुड़ाव, व्यक्ति को कानून से ऊपर कर देती है?जब छोटे झगड़ों में भी आरोपियों की फोटो व नाम सार्वजनिक किए जाते हैं, तो इस संवेदनशील और गंभीर मामले में तस्वीरों को रोकना पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है।
कुछ दिन पहले शहर के प्रभावशाली परिवारों के युवकों की जुआ खेलते हुए तस्वीरें सार्वजनिक की गई थीं, तो फिर अब संवैधानिक पद पर बैठे अधिकारी से मारपीट करने वालों की पहचान छिपाना किस नीति के तहत आता है?
निष्कर्ष:यह मामला केवल एक सड़क दुर्घटना या व्यक्तिगत बहसबाजी भर नहीं है। यह प्रशासनिक गरिमा, राजनीतिक हस्तक्षेप और कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत की अग्निपरीक्षा बन चुका है। पुलिस प्रशासन की स्थिति कठिन है—जहां उन्हें कानून का पालन करना है, वहीं राजनीतिक परिस्थितियां भी उन्हें विवश कर सकती हैं। अब सवाल यह है कि क्या इस मामले में वास्तविक दोषियों को सजा मिलेगी या फिर यह प्रकरण भी दबावों और “समझौतों” के बीच धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला जाएगा?