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20 अगस्त को तीन नए चेहरों ने ली शपथ, विभाग भी आवंटित — पूर्व CM बोले, कांग्रेस सरकार को नहीं मिली थी अनुमति, अब भाजपा ने कैसे कर लिया विस्तार?
रायपुर। शौर्यपथ ।
छत्तीसगढ़ की राजनीति एक बार फिर गरमाती दिख रही है। प्रदेश में हाल ही में हुए मंत्रिमंडल विस्तार के बाद मुख्यमंत्री के साथ कुल 14 मंत्रियों की सरकार अब सत्ता संचालन कर रही है। 20 अगस्त को शपथ ग्रहण के साथ ही तीन नए चेहरों – दुर्ग से गजेंद्र यादव, आरंग से गुरु खुशवंत सिंह एवं सरगुजा संभाग से राजेश अग्रवाल – को कैबिनेट मंत्री बनाया गया और देर शाम इन्हें विभाग भी आवंटित कर दिए गए।
लेकिन, इस विस्तार के तुरंत बाद प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “मौजूदा मंत्रिमंडल अवैधानिक है।” बघेल के मुताबिक, कांग्रेस सरकार ने 2018 से ही 14 मंत्री शामिल करने की कोशिशें की थीं और इस विषय को न केवल विधानसभा में उठाया गया बल्कि केंद्र को भी प्रस्ताव भेजा गया था, मगर तत्कालीन केंद्र शासन ने अनुमति नहीं दी।
अब सवाल यह उठ रहा है कि भाजपा सरकार ने किस आधार पर 14 मंत्रियों का मंत्रिमंडल गठित किया और क्या इसे केंद्र की औपचारिक मंजूरी मिली है?
"हरियाणा मॉडल" की तर्ज पर छत्तीसगढ़
सूत्र बताते हैं कि राज्य में "हरियाणा मॉडल" अपनाते हुए 14 सदस्यों की कैबिनेट बनाई गई है। लेकिन पूर्व CM के आरोपों ने यह बहस शुरू कर दी है कि क्या इस मॉडल को प्रदेश में लागू करने के लिए संवैधानिक प्रक्रिया पूरी की गई है, या फिर यह सिर्फ़ राजनीतिक प्रयोग है?
सियासी गर्माहट और आने वाले सवाल
भूपेश बघेल के बयान के बाद से कांग्रेस हमलावर है और भाजपा को इस पर स्पष्टीकरण देना होगा कि आखिर अब जो संख्या बढ़ाई गई, उसकी संवैधानिक वैधता क्या है। प्रदेश की सियासत में अब चर्चाओं का नया दौर शुरू हो गया है—“क्या राज्य सरकार ने केंद्र की मंजूरी लेकर ही यह कदम उठाया है या फिर यह निर्णय सिर्फ़ राजनीतिक दबाव और दिखावे के तहत लिया गया?”
आगे की राजनीतिक दिशा
एक तरफ भाजपा सरकार अपने नए मंत्रियों के साथ प्रशासनिक गति पकड़ने की तैयारी कर रही है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष इस “ग़ैरक़ानूनी मंत्रिमंडल” के मुद्दे पर आर-पार की लड़ाई की रणनीति बना रहा है। आने वाले दिनों में इस मसले पर न केवल विधानसभा में तेज़ हलचल देखने को मिलेगी, बल्कि प्रदेश की जनता भी सरकार और विपक्ष दोनों की राजनीतिक चालों पर कड़ी नज़र बनाए रखेगी।
? यह खबर राजनीतिक निहितार्थों से भरपूर है और सीधे तौर पर जनता के विश्वास बनाम संवैधानिक वैधता की बहस खड़ी करती है।
दुर्ग शहर की अव्यवस्था से जनता निराश, अतिक्रमण और गंदगी ने बढ़ाई परेशानी; कैबिनेट मंत्री बने गजेंद्र यादव से विकास की नई गाथा लिखने की आस
दुर्ग / शौर्यपथ / नगरीय निकाय चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी श्रीमती अलका बाघमार ने शहरवासियों से अतिक्रमण मुक्त दुर्ग, स्वच्छ और व्यवस्थित बाजार, भ्रष्टाचार पर कड़ी कार्रवाई जैसी कई बड़ी घोषणाएँ की थीं। इन वादों पर भरोसा जताते हुए दुर्ग की जनता ने मतदान के माध्यम से उन्हें महापौर के रूप में चुना। लेकिन महज़ कुछ महीनों के कार्यकाल में ही नगर सरकार की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है।
शहर के मुख्य मार्गों पर आवारा पशुओं का जमावड़ा, जवाहर नगर से सुराना कॉलेज तक फैली गंदगी और कचरे के ढेर, सड़कों के किनारे अवैध अतिक्रमण, जगह-जगह बुझी पड़ी स्ट्रीट लाइटें और थोड़ी-सी बारिश में ही पूरे शहर का जलभराव जैसी समस्याओं ने जनता को निराश किया है। दो महीने तक चले 'महासफाई अभियानÓ का परिणाम भी कुछ घंटों की बारिश में ही धुल गया।
इन हालातों ने न केवल महापौर की कार्यशैली पर बल्कि महापौर चयन में निर्णायक भूमिका निभाने वाले दुर्ग लोकसभा सांसद विजय बघेल की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं। जनता का मानना है कि जिस प्रत्याशी को उन्होंने सांसद के प्रभाव से चुना, वही अब अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पा रही हैं।
जनता की आवाज़
व्यापारीयो का कहना है – "बाजार क्षेत्र में हर दिन ट्रैफिक जाम और गंदगी से जूझना पड़ता है। हम उम्मीद कर रहे थे कि महापौर बनने के बाद कुछ सुधार होगा, परंतु हालात जस के तस हैं।"
स्थानीय निवासियों ने कहा – "महज कुछ घंटों की बारिश में ही पूरा इलाका जलमग्न हो जाता है। बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। जनता पूछ रही है कि आखिर सफाई और नालों की देखरेख का जिम्मा किसका है?"
सुराना कॉलेज के छात्र बोले – "हमारे कॉलेज के सामने कचरे के ढेर और आवारा मवेशियों की समस्या महीनों से बनी हुई है। प्रशासन और नगर निगम दोनों ही सिर्फ आश्वासन देते हैं।"
अब नजरें टिकी हैं मंत्री गजेंद्र यादव पर
ऐसे में अब उम्मीद की किरण दिख रही है दुर्ग शहर के विधायक गजेंद्र यादव से, जिन्हें हाल ही में प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। यह संयोग स्वर्गीय हेमचंद यादव के बाद पहली बार आया है जब दुर्ग शहर विधानसभा का कोई विधायक मंत्री पद से सुशोभित हुआ है।
जनता को विश्वास है कि गजेंद्र यादव के मंत्री बनने से शहर के विकास की नई गाथा लिखी जाएगी। बड़े पद के साथ बड़ी जिम्मेदारी भी आती है और अब नागरिकों की अपेक्षा है कि मंत्री गजेंद्र यादव गुटबाजी और राजनीतिक खींचतान से ऊपर उठकर दुर्ग के लिए ठोस कार्य करेंगे।
दुर्ग की जनता चाहती है कि—
सड़कों और नालों की तत्काल मरम्मत हो,
अतिक्रमण पर कड़ी कार्रवाई की जाए,
स्वच्छता और प्रकाश व्यवस्था को प्राथमिकता मिले,
और जिला मुख्यालय के रूप में दुर्ग का विकास पूरे प्रदेश में मिसाल बने।
आज दुर्ग की जनता जिस अव्यवस्था और उपेक्षा से गुजर रही है, उससे निकलने का रास्ता केवल मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और संवेदनशील नेतृत्व ही दिखा सकता है। ऐसे में शहरवासियों की निगाहें एक बार फिर अपने विधायक और अब मंत्री बने गजेंद्र यादव पर टिकी हैं कि वे दुर्ग की तकदीर बदलने की दिशा में निर्णायक कदम उठाएँ।
?? विश्लेषण बॉक्स
राजनीतिक समीकरण:दुर्ग महापौर चुनाव में विजय बघेल की भूमिका ने भाजपा की स्थानीय राजनीति में हलचल मचाई थी। महापौर पर सवाल खड़े होने से उनकी साख भी प्रभावित हो रही है। गजेंद्र यादव की सक्रियता अब भाजपा के भीतर संतुलन साधने में अहम साबित हो सकती है।
मुख्य चुनौतियाँ:
नगरीय निकाय में भ्रष्टाचार और अव्यवस्था पर अंकुश लगाना
सफाई व्यवस्था और जलभराव की स्थायी समस्या का समाधान
शहर में अवैध अतिक्रमण और यातायात अव्यवस्था पर सख्त कार्रवाई
जनता की उम्मीदों को जल्द ठोस कामों में बदलना
संभावनाएँ:यदि गजेंद्र यादव अपने मंत्री पद का प्रभाव शहर के विकास में दिखा पाते हैं तो वे न केवल दुर्ग बल्कि प्रदेश स्तर पर भी एक मजबूत नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर सकते हैं। वहीं, यदि अव्यवस्था जस की तस रही तो इसका सीधा राजनीतिक असर आगामी चुनावों पर पड़ सकता है।