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शौर्यपथ / गांव के सामान्य किसानों में प्रदीप भोले की गिनती होती थी।जमीन कम थी मगर उसका हौसला गज़ब का था। थोड़ी सी खेती में कुछअच्छा उपजा लेने की आस लिए बैंक से लोन लेने शहर के बैंक में भोले पहुंचा था।दो तीन महीने तक वह बैंक के चक्कर काट चुका था,पर फायदा ढेले भर का नहीं हुआ था।आखिर में बैंक के बड़े बाबू ने कुछ ले देकर भोले को लोन दिलाना पक्का कर दिया।
लोन देने के पहले उसके खेत जमीन का प्रत्यक्ष मुआईना करने बड़े बाबू लोन के कागजात लेकर भोले के गांव पहूंचा।वह रात की पार्टी के बहाने भोले के घर रुका।आधी रात तक मुर्गा शराब खाने पीने के बाद मुंह फाड़ते हुए बाबू सोने के लिए पंलग के करीब पहुंचा।पंलंग में मछरदानी नहीं लगा था।इसे देखकर बौखलाए सांड़ की तरह वह भड़क उठाऔर बोला-बिना मच्छरदानी के मैं सो नहीं पाऊंगा।साले मच्छर तो रात भर में मेरे शरीर का पूरा खून चूस डालेंगे।
बाबू की बातें सुनकर भोले सकपकाया हुआ दौड़ते गयाऔरअपने बच्चे की खाट पर लगे मछरदानी को निकाल कर बैंक बाबू के पलंग में लगा दिया।बैंक बाबू अपने रूदबे के असर में डुबा बेखबर शीघ्र ही चैन की नींद सो गया।यह सब देखकर भोले का बच्चा पूछ पड़ा- बाबूजी,बैंक बाबू जैसे मच्छर हमें ना चूस सकें इसके लिए कोई मछरदानी नहीं बनी है क्या ? बच्चे के इस प्रश्न से भोले की सोई आत्मा जाग उठी।उसका स्वाभिमान उसे ललकारते हुए धिक्कारने लगा।
भोले तमतमा उठाऔर सोते हुए बैंक बाबू के पलंग के करीब जा पहुंचा।उसने पलंग में लगे मछरदानी को झटके से निकाल कर वापस अपने बच्चे की पलंग पर लगा दिया।भोले का ऐसा भयानक रूप देखते ही बैंक बाबू सहम गया।थूक निगलते हुए वह उठाऔर साथ में लाए लोन के कागज पर कांपते हाथों से धड़ल्ले से हस्ताक्षर करता चला गया।
हस्ताक्षर करने के उपरांत वह गिड़गिड़ाते हुए बोला -भोले ,मुझे अभीआधी रात को घर से मत भगाना।इस वक्त शहर जाना माने अपनी जिंदगी को खतरे में डालना है।दया करना मेरे छोटे छोटे बच्चे हैं।भोले ने हंसते हुए कहा-चिंता मत करो साहेब।हम मच्छर नहीं किसान हैं।अपना पेट भरने के लिए हम दूसरों का खून नहीं चूसते,बल्कि दूसरों का पेट पालने के लिएअपना खून-पसीना बहाते हैं। इसीलिए शोषक नहीं पालनहार पोषक कहलाते हैं। भोले की बातें सुनकर बैंक बाबू की आंखें शर्म से झुकी जा रही थीं।
विजय मिश्रा "अमित"
पूर्व अति महाप्रबंधक (जन.)
छग पावर कम्पनी,
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