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रायपुर / शौर्यपथ / आराधना और साधना का पावन मास सावन मनभावन होता है। प्रकृति और संस्कृति से प्रगाढ़ संबंधों की महत्ता को इस मास मे आने वाले पर्व हरेली,रक्षाबंधन उजागर करते हैं।ऐसे जनप्रिय मास की अमावस्या को छत्तीसगढ़ का महापर्व हरेली के साथ ही भगवान शनिदेव की जयंती मनाई जाती है।
हरेली मनाते हुए छत्तीसगढ़ के रहवासी खेत-खलिहान,पशुधन परिवार समाज की समृद्धि शांति हेतु कामना करते हैं।पुराने समय में इसे बड़े धूमधाम से मनाने का चलन था,पर बदलते वक्त और नये जमाने के रंग ने हरेली के रंग को बदरंग करना आरंभ कर दिया है।
*बदरंग होती हरेली की पीड़ा*
हरेली के बदरंग होने की पीड़ा छत्तीसगढ़ के बुजुर्गो,चिंतकों को घुन कीड़े की तरह खा रही थी। छत्तीसगढ़ के तीज त्यौहार विलुप्त होने की कगार पर थे।इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि गांव के बच्चे शहरों में पढ़ने के लिए बड़ी तेजी से जाने लगे हैं। ऐसी नई पीढ़ी के लोग शहरी चमक दमक को गांव गांव में पसारने लगे।जिससे छत्तीसगढ़ के तीज त्योहार,पकवान,खेल -खिलौनों की पूछ परख भी शनै शनै कम होने लगी।यह शुभ संकेत नहीं है क्योंकि"जिस गांव में पानी नहीं गिरता,वहां की फसलें खराब हो जाती हैं,जहां तीज त्यौहार का मान नहीं होता,वहां की नस्लें खराब हो जाती है।
हालांकि लोक पर्व हरेली पर राज्य सरकार द्वारा सार्वजनिक अवकाश देने का व्यापक प्रभाव आमजन पड़ा।नव पीढ़ी तक यह संदेश प्रचारित हुआ-"जीवन की किताबों पर बेशक नया कव्हर चढ़ाईये,पर बिखरे पन्नों को पहले प्यार से चिपकाइये"।
सामूहिक प्रयासों से नई पीढ़ी भी गॉव से जुड़ने,गेंड़ी चढ़ने,बैलगाड़ी दौड़,नारियल फेक,आदि लोक खेलों को और ग्रामीण गतिविधियों में भागीदारी देने बेहद लालायित दिखती है।
*दशमुल कांदा -बन गोंदली -लोंदी का उपयोग*
हरेली पर ग्रामीणजन पुस्तैनी किसानी औजारों की पूजा करते है। पशुओं को निरोगी रखने के लिए नमक और औषधियुक्त अंडी या खम्हार पत्तियों से निर्मित "लौंदी" बनाकर खिलाते है।दशमुल कांदा और बन गोंदली का वितरण किया जाता है,जनश्रुति है कि इससे व्याधियों से मुक्ति मिलती है।
*नीम पत्ती द्वार पर लगाने की प्रथा*
हरेली पर घरों के द्वार पर नीम की पत्ती लगाने की प्रथा है। दरअसल बरसात में विविध बीमारियां का जन्म होता है। इन्हें जन्म देने वाले कीटाणु को मारने, संक्रमण रोकने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में नीम पत्तियां सहायक है।
*आकाशीय बिजली से बचने चौखट पर कील*
हरेली पर्व पर गांव के लोहार घरो घर जाकर चौखट में कील ठोकते हैं ।इस प्रथा का राज है कि वर्षा काल में आकाशीय बिजली गिरने का खतरा होता है। ऐसी बिजली को लोहे से निर्मित वस्तुएं अपनी और खींच कर जमीन में समाहित कर देती हैं,जिससे जीव जंतुओं पर बिजली गिरने का खतरा कम हो जाता है। ऐसी पुरानी प्रथाएं वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं,जिन्हें हमारे पुरखों ने अपने व्यावहारिक ज्ञान के बूते आजमाया था। यद्यपि अब घरों में लोहे से निर्मित ग्रिल का प्रचलन बढ़ गया है,इसीलिए यह प्रथा समाप्त हो चली है।
*हरेली पर छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक*
हरेली का पर्व प्रकृति और संस्कृति से जुड़ने के अलावा आपसी भाईचारा ,मेल मिलाप को भी बढ़ावा देता है। इसे बनाए रखने इस पर्व पर छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक की शुरुआत प्रदेश सरकार द्वारा की गई है। हरेली पर्व 17 जूलाई से आरंभ होकर 27 सितम्बर 2023 तक चलने वाले इस ओलंपिक में सोलह किस्म के ग्रामीण खेल स्पर्धा होंगे। जो कि इस पर्व पर कीचड़ में चर्र चूं चर्र चूं करती गेंड़ी,गुरहा चीला-भजिया का स्वाद, सहेलियों के सवनाही झूले का आनंद द्विगुणित करते हुए कहेंगे-
भुंइयां हरियर दिखत हे,
जइसे संवरे दुलहिन नवेली,
सबके पीरा हरे बर,
आगिस हमर तिहार हरेली।
लेख - *विजय मिश्रा 'अमित’*
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