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शौर्यपथ लेख । कोरोना एक दहशत का नाम है अभी इस दुनिया मे इसका कोई इलाज मौजूद नही है ऐसे में दूरी और सफाई ही एक मात्र इलाज रह गया । इतनी दहशत की टेस्ट कराने में भी लोगो को भय हो रहा ऐसी खतरनाक बीमारी की पॉजिटिव आने से भला किसी को खुशी हो सकती है क्या किसी बेटे के पॉजिटिव रिपोर्ट आने से माँ की जिंदगी के दुख भरे दिन खुशियों में बदल सकते है । किंतु कहते है ना कि जिंदगी के हर मोड़ पर सुख पर दुख पर कोई न कोई सीख मिलती ही है बस ग्रहण करने वाला चाहिए ऐसी ही एक घटना ने एक माँ के एकांत को दूर कर दिया । 10 दिन की जद्दोजहद के बाद सुरेश अपनी कोरोना नेगटिव की रिपोर्ट हाथ मे लेकर अस्पताल के रिसेप्शन पर खड़ा था। आसपास कुछ लोग तालियां बजा रहे थे,उसका अभिनंदन कर रहे थे। एक जंग जो जीत कर आया था वो। लेकिन सुरेश के चेहरे पर बेचैनी की गहरी छाया थी। गाड़ी से घर के रास्ते भर उसे याद आता रहा "आइसोलेशन" नामक खतरनाक दौर का संत्रास। न्यूनतम सुविधाओं वाला छोटा सा कमरा,अपर्याप्त उजाला,मनोरंजन के किसी साधन की अनुपलब्धता,ये सब था वहां। कोई बात नही करता था ना नजदीक आता था। खाना भी बस प्लेट में भरकर सरका दिया जाता था। कैसे गुजारे उसने 10 दिन वही जानता था। बस! मन मे कुछ ठोस विचार और उस का चेहरा संतोष से भर गया। घर पहुचते ही स्वागत में खड़े उत्साही पत्नी,बच्चों को छोड़ कर सुरेश सीधे घर के एक उपेक्षित से कोने के कमरे में गया,माँ के पावों में पड़कर रोया और उन्हें ले कर बाहर आया। पिता की मृत्यु के बाद पिछले 5 वर्ष से एकांतवास/आइसोलेशन भोग रही माँ से कहा की आज से तुम हम सब एक साथ एक जगह पर ही रहेंगे। माँ को लगा बेटे की नेगटिव रिपोर्ट उन की जिंदगी की पॉजिटिव रिपोर्ट हो गयी है।
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