August 02, 2025
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सम्पादकीय: चुपचाप लड़ते वो साए – NSG कमांडो की वीरता को सलाम

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 शौर्यपथ सम्पादकीय / जब देश नींद में होता है, तब कुछ आंखें खुली रहती हैं — न सायरन बजता है, न तिरंगा लहरता है, न तालियाँ बजती हैं — लेकिन वो लोग हैं, जो हर ख़तरे की आहट पर बुलेटप्रूफ जैकेट पहनकर अंधेरे में कूद जाते हैं। वे हैं — NSG कमांडो, जिन्हें हम ब्लैक कैट्स के नाम से जानते हैं।

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) कोई सामान्य बल नहीं, बल्कि विशेष परिस्थितियों में कार्यरत एक अत्यंत कुशल, गोपनीय और तकनीकी रूप से उन्नत बल है। इनकी पहचान उनकी वर्दी से नहीं, बल्कि अदृश्य साहस, मौन वीरता और दृढ़ संकल्प से होती है।
?️ 26/11: जब वीरता अमर हो गई

26 नवंबर 2008, मुंबई – वो काला दिन जब आतंकियों ने देश की व्यस्ततम महानगर को लहूलुहान कर दिया। सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान खतरे में थी। तब NSG कमांडो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई में उतरे।

उनके अंतिम शब्द, "Don't come up, I will handle them", आज भी हर सच्चे भारतीय के हृदय को झकझोर देते हैं। उन्होंने ताज होटल में अकेले मोर्चा संभालते हुए, अपने घायल साथी को बचाया और आतंकियों को निष्क्रिय किया, लेकिन स्वयं वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी शहादत, सिर्फ एक व्यक्ति का बलिदान नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय चेतना का जागरण है।
?️ NSG: जो हर खामोश जंग लड़ते हैं

NSG का गठन 1984 में हुआ था, लेकिन उनकी अधिकांश कार्यवाहियां आज भी गुप्त रहती हैं। ये वही बल है जो आतंकवाद, अपहरण, वीआईपी सुरक्षा, और शहरी युद्ध जैसे कार्यों में अंतिम विकल्प के रूप में सामने आता है।

जब देश ऑपरेशन ब्लू स्टार की पीड़ा को भूला नहीं था, तब ऑपरेशन ब्लैक थंडर (1988) में NSG ने बिना किसी बड़ी क्षति के उग्रवादियों को निष्क्रिय किया — यह उनकी रणनीतिक कुशलता और मानवीय सोच का परिचायक था।
?️ वीरता का सम्मान शब्दों से परे है

क्या हम कभी हवलदार सुरेंद्र सिंह या कर्नल संदीप सेन का नाम याद करते हैं? शायद नहीं, क्योंकि ये कमांडो गोपनीयता की शपथ के साथ जीते हैं, और मरते भी हैं। ना कैमरों के सामने आते हैं, ना सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं — लेकिन हर बार जब देश पर संकट आता है, सबसे पहले यही लोग आगे बढ़ते हैं।
?? हमारी जिम्मेदारी

आज जब सोशल मीडिया पर झूठी तस्वीरों और नकली कहानियों से वीरता की छवि बनाई जा रही है, हमें वास्तविक नायकों की पहचान करनी होगी। NSG कमांडो की कहानियाँ न केवल प्रेरक हैं, बल्कि हमें याद दिलाती हैं कि स्वतंत्रता और सुरक्षा, दोनों मुफ्त नहीं होतीं।
✍️ अंत में...

इन कमांडोज़ की कोई "फैन फॉलोइंग" नहीं होती, ना ही ये गले में मेडल टांगे घूमते हैं। ये परछाइयों में लड़ने वाले योद्धा हैं, जिनके कारण हम उजालों में चैन की सांस ले पाते हैं।

उनके लिए, एक सलामी काफी नहीं — सचेत नागरिकता, फर्जी खबरों से परहेज, और राष्ट्रहित में जागरूकता ही उनकी असली श्रद्धांजलि है।

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Last modified on Saturday, 05 July 2025 10:10

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