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दुर्ग कांग्रेस: नए चेहरों से ही मिलेगी मजबूती
आज की राजनीति में कांग्रेस को अपने संगठन में बड़ा बदलाव लाने की सख्त जरूरत है। दशकों से चली आ रही परिवारवाद की राजनीति ने पार्टी को कमजोर किया है, जिससे कई समर्पित कार्यकर्ता अपनी पूरी जिंदगी पार्टी के लिए काम करते रहे, लेकिन उन्हें कभी शीर्ष नेतृत्व में जगह नहीं मिली। अगर कांग्रेस इस परिवारवाद से हटकर नए और अनुभवी चेहरों को मौका देती है, तो यकीनन वह मजबूत होगी।
अगर हम बात दुर्ग कांग्रेस की करें, तो मौजूदा समय में यह संगठन काफी कमजोर दिखाई देता है। इसकी निष्क्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुर्ग जिला मुख्यालय में होने वाले हर विरोध प्रदर्शन या आंदोलन की कमान अक्सर दुर्ग ग्रामीण कांग्रेस अध्यक्ष के हाथ में होती है, और बाकी सभी बड़े नेता उनके पीछे-पीछे चलते नजर आते हैं। चाहे वो पूर्व सांसद प्रत्याशी राजेश साहू हों, पूर्व महापौर आर.एन. वर्मा और धीरज बाकलीवाल हों, या पूर्व विधायक अरुण वोरा, सभी आज एक ही अगुवाई में आंदोलन करते दिखते हैं। मंच पर अपनी वरिष्ठता का हवाला देकर ये नेता अपनी जगह तो बना लेते हैं, लेकिन संगठन में इनकी सक्रिय भागीदारी कहीं नजर नहीं आती।
क्या सिर्फ मंच की राजनीति से काम चलेगा?
मंच पर पहुंचने की इस राजनीति के भरोसे अगर दुर्ग कांग्रेस के नेता बैठे रहे, तो वे आम जनता के बीच अपनी मजबूत पहचान कभी नहीं बना पाएंगे। जबकि, आज की राजनीति में जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की जरूरत है। आज दुर्ग में भाजपा के पास गजेंद्र यादव जैसे कैबिनेट मंत्री, ललित चंद्राकर जैसे दर्जा प्राप्त मंत्री और सरोज पांडे जैसी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। भाजपा में नए कार्यकर्ताओं को भी यह उम्मीद रहती है कि संगठन उन्हें कभी भी कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे सकता है।
वहीं, कांग्रेस में कार्यकर्ता आपस में यही चर्चा करते रहते हैं कि आखिर कब तक वे सिर्फ झंडे उठाएंगे और सड़कों पर लड़ते रहेंगे। हाल ही में हुए 'वोट चोर गद्दी छोड़' आंदोलन में कई समर्पित कार्यकर्ताओं को मंच पर जगह नहीं मिली, और पूर्व महापौर आर.एन. वर्मा और धीरज बाकलीवाल जैसे अनुभवी नेता भी दरकिनार नजर आए। दूसरी तरफ परिवार वाद के मंचाधीन वर्चस्व को प्रमुख स्थान पर देखकर एक बार फिर कार्यकर्ताओं के बीच यह चर्चा शुरू हो गई कि क्या उनका इस्तेमाल सिर्फ झंडे और डंडे के लिए ही होता रहेगा?
भविष्य की राह और कार्यकर्ताओं का विश्वास
वर्तमान और पिछली राजनीति में काफी अंतर आ गया है। कांग्रेस संगठन को यह बदलाव स्वीकार करना होगा। दुर्ग में राजेंद्र साहू, धीरज बाकलीवाल, क्षितिज चंद्राकर, जयंत देशमुख, दीपक दुबे, विजेंद्र पटेल, अभिषेक बोरकर, और अयूब खान जैसे कई युवा और अनुभवी नेताओ की लंबी फौज हैं, जिन्हें जिले की जिम्मेदारी दी जा सकती है। ये नेता हर क्षेत्र में आम जनता के बीच अपनी एक अलग छवि बनाए हुए हैं और सभी को साथ लेकर बखूबी काम कर सकते हैं।
राजनीति की यह मांग अब बढ़ती जा रही है कि सालों से जमे पुराने चेहरों की जगह नए चेहरों को सामने लाया जाए। एक ही चेहरे से आम जनता भी ऊब चुकी है। नए और ऊर्जावान नेता ही राजनीति में आम जनता के बीच पकड़ को मजबूत करते हैं। अगर कांग्रेस में कार्यकर्ताओं की अनदेखी होती रही, तो कोई बड़ी बात नहीं है कि आने वाले समय में दुर्ग कांग्रेस मुट्ठी भर लोगों तक सिमट कर रह जाएगी और दुर्ग में भाजपा का वर्चस्व और मजबूत होगा। कांग्रेस को यह समझना होगा कि जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ता ही पार्टी की असली ताकत हैं। अगर उन्हें सही सम्मान और जिम्मेदारी नहीं मिलेगी, तो पार्टी कमजोर होगी और जनता का विश्वास भी खो देगी। दुर्ग कांग्रेस को अब अपनी इस पुरानी राजनीति को छोड़कर भविष्य की ओर कदम बढ़ाना होगा। तभी वह विपक्ष की भूमिका को मजबूती से निभा पाएगी और आम जनता के बीच अपनी पहचान बना पाएगी।
क्षेत्र में चल रही राजनीतिक चर्चाओं केआधर पर
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