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दुर्ग / शौर्यपथ विशेष /
दुर्ग का नाम राजनीती के क्षेत्र में जब भी पुरे भारत में लिया जाएगा तो उस कड़ी में स्व. मोतीलाल वोरा जी का नाम जरुर याद किया जाएगा . स्व. मोतीलाल जी वोरा दुर्ग कांग्रेस के ही नहीं अपितु देश के सभी राजनितिक दलों में अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए थे . कांग्रेस के सच्चे सिपाही स्व. मोतीलाल वोरा दशको तक गाँधी परिवार के करीबी रहे . विगत 22 दिसंबर 2020 को स्व. मोतीलाल वोरा जी ने अंतिम साँस ली . स्व. मोतीलाल जी वोरा का पूरा जीवन निर्विवाद रहा किन्तु अब उनके मरणोपरांत दुर्ग में कुछ ऐसी घटनाएं निर्मित हुई जिसमे स्व. मोतीलाल जी वोरा के नाम का भी कई संगठनों , समाज के लोगो ने विरोध किया .
सबसे पहले मामला आया ठगडा बाँध का जैसा की सभी को मालुम है कि कई सालो पहले ठगडा दाऊ ने जनहित को देखते हुए इस जमीन को शासन को दान कर दिया था ताकि आम जनता के पानी की निस्तारी सम्बन्धी जरूरते पूरी हो सके .वर्तमान में ये दुर्ग निगम क्षेत्र में आता है ऐसे में दुर्ग निगम परिषद् जिसमे वर्तमान समय में कांग्रेस की सत्ता है . कांग्रेस की सत्ता होने के कारण सत्ताधारी दल ने एमआईसी परिषद् में प्रस्ताव पारित कर दिया कि ठगडा बाँध का नाम स्व. मोतीलाल जी वोरा के नाम पर रखा जाए . बात खुलते ही ठगडा दाऊ के परिवार सहित अन्य समाज के लोगो द्वारा इसका पुरजोर विरोध हुआ कई लोगो ने निगम प्रशासन में आपत्ति स्वरुप शिकायत भी दर्ज कराई .
ये बड़े ही आश्चर्य और दु:ख की बात है कि जिस मोतीलाल वोरा जी के जीवन काल में उनका किसी ने भी विरोध नहीं किया ऐसे व्यक्तित्व का इस तरह विरोध होना कही से भी सही नहीं है . परिषद् की जल्दबाजी का नतीजा रहा जिसके कारण मामला तूल पकड़ा जबकि इस बारे में स्व. मोतीलाल वोरा जी के पुत्र विधायक वोरा ने किसान नेता राजकुमार गुप्त के विरोध के बाद कहा की निगम परिषद् ने बिना पूझे ही फैसला लिया . स्वयं विधायक अरुण वोरा भी नहीं चाहते कि स्व. मोतीलाल वोरा के नाम का किसी भी रूप में विरोध हो .
ऐसे में अब एक नया मामला सामने आ गया जिस पर किसी के पास जवाब नहीं . बात हो रही मुक्ति धाम में निर्मित समाधी स्थल की जहा स्व. मोतीलाल वोरा जी का अंतिम संस्कार किया गया था . शिवनाथ नदी तट पर स्थित मुक्तिधाम की जमीन शर्मा परिवार द्वारा दान की हुई जमीन है वही मुक्ति धाम के पीछे निर्मित पुष्पवाटिका का भी कुछ ऐसा ही हाल है जिसमे एक बड़ा हिस्सा शर्मा परिवार का है इस पुष्प वाटिका और मुक्तिधाम के बीच एक जमीन का टुकड़ा खसरा न. 373 व 374 पटेल परिवार का है जिन्होंने इस भूमि को शासन को मुक्तिधाम के लिए दान दे दिया .चुकी शहर लगातार बड़ा होता जा रहा है और ऐसे में शहर में शिवनाथ नदी के तट पर स्थित एकमात्र मुक्तिधाम है जिसके संधारण के लिए राज्यसभा सांसद सरोज पाण्डेय द्वारा एक करोड़ की राशी दी गयी ताकि शहर में स्थित मुक्तिधाम में सुविधाओ की ज़रूरत पूरी हो सके ऐसे में इस मुक्तिधाम के एक बड़े हिस्से में स्व. मोतीलाल वोरा का समाधी स्थल बनाया जा रहा है बड़ी बात यह है कि समाधी स्थल किस मद से बनाया जा रहा है इसकी भी जानकारी निर्माण करने वाले ठेकेदार सराफ द्वारा नही दी गयी सिर्फ इंतना कहा गया कि ट्रस्ट से अनुमति मिली है .
बड़ा सवाल यह है कि जिस खसरा न. में मुक्ति धाम बन रहा है पहले तो उसकी पटेल परिवार द्वारा एग्रीमेंट के तहत एक ग्राहक से दुसरे और फिर तीसरे तक सौदा हुआ किन्तु बाद में पटेल परिवार के सभी सदस्यों द्वारा शपथ पत्र देकर यह जमीन मुक्तिधाम के लिए शहरवासियो की सुविधा को ध्यान में रखते हुए शासन को दे दी गयी जब इसका मालिकाना हक शासन के पास है तो फिर कोई ट्रस्ट कैसे अनुमति दे सकता है वही दूसरा पहलु यह है कि इस निर्माण में दुर्ग निगम के इंजीनियरों की निगाह है उन्ही के निरिक्षण में कार्य हो रहा है ऐसा मुक्तिधाम के आस पास के लोग कह रहे है .
इस बारे में जब दुर्ग निगम आयुक्त से चर्चा की गयी तो उनका कहना है कि उनके पास मुक्तिधाम में समाधी स्थल बनाने के लिए अनुमति पत्र जरुर आया था जिसे उनके द्वारा जिलाधिष कार्यालय पंहुचा दिया गया मार्गदर्शन के लिए किन्तु अभी तक जिला कार्यालय से किसी भी तरह की कोई अनुमति प्राप्त नहीं हुई है . जब निगम के अधीन संचालित मुक्तिधाम में निर्माण हो और इसकी कोई जानकारी निगम प्रमुख को भी ना हो वही निर्माण कार्य भी तीव्र गति से चल रहा हो किन्तु निर्माण किस मद से हो रहा कौन करा रहा इसकी जानकारी कही से भी नहीं हो रही .
ऐसे में तो कुछ सालो में नए मुक्तिधाम की आवश्यकता होगी
मुक्तिधाम जहाँ हिन्दुओ द्वारा अपने मृत परिजनों का अंतिम संस्कार किया जाता है .पहले शहर छोटा था तो शिवनाथ नदी और शिक्षक नगर मुक्तिधाम प्रयाप्त था किन्तु शहर तेजी से बढ़ रहा है जनसँख्या का विस्तार हो रहा ऐसे में अगर भविष्य में किसी और राजनितिक हंस्तियो द्वारा मुक्तिधाम में समाधी स्थल बनाने की प्रथा को आगे बढाया जाने लगेगा तो भविष्य में दुर्ग शहर को नए मुक्तिधाम की तलाश करनी होगी क्योंकी आम जनता तो मजबूर है सिर्फ मौन विरोध कर सकती है और सत्ता के दम पर ऐसे समाधी स्थल बनते रहे तो शहर में आने वाले समय में जिसकी भी सरकार रहेगी वो इस प्रथा को आगे बढ़ाएगा और आम जनता देखती ही रह जाएगी क्योकि आम जनता का काम सिर्फ पांच साल में एक बार ही होता है वोट देने का उसके बाद सिर्फ इंतज़ार एक नई सुबह का जो जाने कब आएगी ...
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