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नियमों की उड़ रही धज्जियाँ, आदेश की शर्तें टूटीं — फिर भी अधिकारी मौन, ऐसे में कार्यवाही करेगा कौन?
By- नरेश देवांगन
जगदलपुर, शौर्यपथ। लगातार समाचारों के माध्यम से मीना बाजार की अनियमितता, लापरवाही और सुरक्षा मानकों की अनदेखी को उजागर किया जा रहा है। फिर भी विभागीय जिम्मेदार अधिकारी आज भी कार्रवाई से बचते दिख रहे हैं। प्रशासन की यह चुप्पी अब सवालों के घेरे में है — क्या मीना बाजार वाकई विभागीय संरक्षण में चल रहा है?
नगर दण्डाधिकारी कार्यालय, जगदलपुर द्वारा जारी आदेश पत्र 11/09/2025 में स्पष्ट उल्लेख है कि —
“मीना बाजार / प्रदर्शनी में आयोजन के दौरान यदि किसी प्रकार की दुर्घटना होती है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी आयोजन संचालक की होगी।”
साथ ही आदेश में यह भी कहा गया है कि —
“उपरोक्त शर्तों के उल्लंघन पाये जाने की स्थिति में अनुमति स्वयंमेव निरस्त मानी जावेगी एवं संचालक के ऊपर नियमानुसार कार्यवाही की जावेगी।”
लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।
आदेश की लगभग हर शर्त का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है — फिर भी न अनुमति निरस्त हुई, न किसी संचालक पर कार्रवाई हुई। यानी आदेश अब बस कागज़ों पर ज़िंदा है, जबकि मैदान में उसकी कोई औकात नहीं बची? यह स्थिति यह दर्शाती है कि न तो संचालक प्रशासनिक आदेशों को गंभीरता से ले रहे हैं, और न ही निगरानी करने वाले अधिकारी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। ऐसा लग रहा है मानो आदेश सिर्फ फाइलों और नोटिस बोर्डों तक सीमित रह गया है, जबकि मैदान में जिम्मेदारी से बचने का खेल खुलकर खेला जा रहा है।
मीना बाजार परिसर में लगे हर झूले, और मनोरंजन साधनों पर संचालकों ने पोस्टर चस्पा कर रखे हैं —
“किसी भी प्रकार की दुर्घटना होने पर कम्पनी जिम्मेवार नहीं होगी।”
यह वही संचालक हैं जिन्हें आदेश के अनुसार जनता की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी उठानी थी। मगर वे पहले ही अपने हाथ खड़े कर चुके हैं — और प्रशासन सब देखकर भी मूकदर्शक बना हुआ है।ऐसे मे अगर कोई हादसा होता है तो आखिर जनता न्याय के लिए किसके दरवाजे पर दस्तक देगी? क्या संचालक यह कहकर बच जाएंगे कि झूला कंपनी जिम्मेदार है, या कंपनी यह कहकर कि हमने पहले ही लिखा था कि हम जिम्मेदार नहीं हैं?
अब सवाल उठना लाजिमी है
जब आदेश में साफ लिखा है कि उल्लंघन पर अनुमति स्वतः निरस्त मानी जाएगी, तो अब तक कार्रवाई क्यों नहीं?
क्या प्रशासन किसी दबाव में है?
क्या मीना बाजार को विभागीय संरक्षण प्राप्त है?
स्थानीय नागरिकों और समाजसेवियों का कहना है कि अगर यही स्थिति किसी छोटे व्यापारी या स्थानीय आयोजन में होती, तो अगले ही दिन नोटिस और सीलिंग की कार्यवाही शुरू हो जाती। लेकिन यहाँ अधिकारी खुद मौन हैं — जैसे सब कुछ किसी “सेटिंग सिस्टम” के तहत चल रहा हो? मीना बाजार में जारी यह अव्यवस्था अब केवल लापरवाही नहीं, बल्कि प्रशासनिक आदेशों का मखौल बन चुकी है।कानून और नियमों की खुली अवहेलना के बीच सवाल यही उठता है कि — क्या बस्तर प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी कुर्सी की छाया में कहीं खो दी है? अब वक्त आ गया है कि बस्तर प्रशासन जागे और अपने ही आदेश का सम्मान करे। वरना जनता यह मानने को मजबूर होगी कि यह पूरा खेल विभागीय संरक्षण की छाया में चल रहा है?
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