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धर्म संसार / शौर्यपथ / प्रभु यीशु के जन्म की ख़ुशी में मनाया जाने वाला क्रिसमस का त्योहार पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यह त्योहार कई मायनों में बेहद खास है। क्रिसमस को बड़ा दिन, सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहा जाता है। प्रभु यीशु ने दुनिया को प्यार और इंसानियत की शिक्षा दी। उन्होंने लोगों को प्रेम और भाईचारे के साथ रहने का संदेश दिया। प्रभु यीशु को ईश्वर का इकलौता प्यारा पुत्र माना जाता है। इस त्योहार से कई रोचक तथ्य जुड़े हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।
क्रिसमस ऐसा त्योहार है जिसे हर धर्म के लोग उत्साह से मनाते हैं। यह एकमात्र ऐसा त्योहार है जिस दिन लगभग पूरे विश्व में अवकाश रहता है। 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला यह त्योहार आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च में 6 जनवरी को मनाया जाता है। कई देशों में क्रिसमस का अगला दिन 26 दिसंबर बॉक्सिंग डे के रूप मे मनाया जाता है। क्रिसमस पर सांता क्लॉज़ को लेकर मान्यता है कि चौथी शताब्दी में संत निकोलस जो तुर्की के मीरा नामक शहर के बिशप थे, वही सांता थे। वह गरीबों की हमेशा मदद करते थे उनको उपहार देते थे। क्रिसमस के तीन पारंपरिक रंग हैं हरा, लाल और सुनहरा। हरा रंग जीवन का प्रतीक है, जबकि लाल रंग ईसा मसीह के रक्त और सुनहरा रंग रोशनी का प्रतीक है। क्रिसमस की रात को जादुई रात कहा जाता है। माना जाता है कि इस रात सच्चे दिल वाले लोग जानवरों की बोली को समझ सकते हैं। क्रिसमस पर घर के आंगन में क्रिसमस ट्री लगाया जाता है। क्रिसमस ट्री को दक्षिण पूर्व दिशा में लगाना शुभ माना जाता है। फेंगशुई के मुताबिक ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। पोलैंड में मकड़ी के जालों से क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा है। मान्यता है कि मकड़ी ने सबसे पहले जीसस के लिए कंबल बुना था।
धमतरी/ राजशेखर नायर
कलेक्टर श्री जयप्रकाश मौर्य ने आज राजस्व अधिकारियों की समीक्षा बैठक लेकर निर्देशित किया कि जिले में गिरदावरी का काम पूर्ण हो चुका है, किन्तु इसके लिए सहकारी समितियों में शत-प्रतिशत किसानों से निर्धारित प्रारूप में स्वघोषणा पत्र प्राप्त करना अनिवार्य है। इसके अभाव में किसानों से धान क्रय करना संभव नहीं होगा, इसलिए प्रत्येक किसान से आवश्यक रूप से भरा हुआ घोषणा पत्र प्राप्त करें। इसके अलावा कलेक्टर ने अविवादित बंटवारा, नामांतरण फर्द बंटवारा जैसे प्रकरणों की समीक्षा करते हुए कहा कि प्रत्येक तहसील में दो-तीन साल से अनेक मामले लंबित हैं। इनके समुचित निबटारे के लिए जरूरी होने पर राजस्व अधिकारियों को प्रशिक्षण दिलाया जाएगा। उन्होंने हरहाल में प्रकरणों का शीघ्रता से निराकरण करने के निर्देश राजस्व अधिकारियों को दिए।
गंगरेल जलाशय में स्थित जल संसाधन विभाग के विश्राम गृह में आज सुबह 11 बजे से आयोजित बैठक में कलेक्टर ने कोरोना संक्रमण की व्यापकता को देखते हुए कार्यालयों में आवश्यक उपाय करने के लिए कहा। इसके तहत कार्यालय के स्टाफ सहित वहां आने वाले लोगों के लिए गुणवत्ता वाले मास्क की अनिवार्यता, सैनिटाइजर का नियमित उपयोग तथा कार्यालयों की सफाई के लिए सोडियम हाइपोक्लोराइट का उपयोग करने के निर्देश दिए। साथ ही नस्ती से संबंधित कार्य बार-बार न करके एक ही समय में करते हुए हाथों को सैनिटाइज करने के लिए कहा। कलेक्टर ने बताया कि जिले में हुई अब तक 40 मौतों में सिर्फ तीन मौतें ही कोरोना वायरस से हुई हैं, जबकि शेष 37 मरीज को-माॅर्बिडिटी (अन्य गम्भीर बीमारी जैसे मधुमेह, रक्तचाप, अस्थमा, टीबी, हृदय विकार आदि से ग्रसित) के चलते हुई है। उन्होंने आमजनता की सहुलियतों को दृष्टिगत करते हुए छोटे राजस्व प्रकरणों के निबटारे के लिए संबंधित हल्का पटवारी के साथ कैम्प लगाने के भी निर्देश दिए, जहां पर नामांतरण, बंटवारा जैसे प्रकरणों का मौके पर निराकरण कराया जा सके। उन्होंने जिले की सभी तहसीलों में ऐसे प्रकरणों की लम्बी फेहरिस्त पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि पेशी को तारीख दर तारीख आगे बढ़ाने के बजाय सभी पक्षकारों की मौजूदगी में आम राय तैयार करें। पिछली बैठक में दिए गए निर्देश के अनुसार एक माह के भीतर पटवारी प्रतिवेदन प्राप्त करने व इश्तहार का प्रकाशन करने के लिए तहसीलदारों व नायब तहसीलदारों को निर्देशित किया। इसके लिए प्रक्रिया का अध्ययन कर फौरी तौर पर निर्णय देने पर जोर दिया, जिससे कि आवेदकों को वाद-प्रतिवाद के लिए अनावश्यक रूप से बार-बार परेशानी उठानी न पड़े। कलेक्टर ने कहा यह भी कहा कि कोर्ट में बैठने की निर्धारित तिथि में वह प्रत्येक तहसील का दौरा कर फर्द बंटवारे के लंबित प्रकरणों पर की जाने वाली कार्रवाई को स्वयं उपस्थित रहकर परीक्षण करेंगे। जरूरत पड़ने पर लंबित प्रकरणों के निष्पादन के लिए राजस्व अधिकारियों को पृथक् से प्रशिक्षण देने की बात भी उन्होंने कही। इसके अलावा सभी प्रकरणों की सुनवाई इस माह से ई-कोर्ट के माध्यम से ही करने तथा आदेश जारी वहीं से करने के लिए कलेक्टर ने निर्देशित किया। साथ ही आरबीसी 6-4 के प्रकरणों में जहां तक संभव हो, हितग्राहियों को अविलम्ब सहायता राशि का पूरा लाभ मिल सके, ऐसा प्रयास करने की बात कही। इसी तरह पंचायती राज अधिनियम के तहत धारा-40 की सही व्याख्या करने के लिए इसमंे निहित प्रावधानों व नियमों का अध्ययन करने के भी निर्देश दिए।
इसके अलावा कलेक्टर ने बैठक में डायवर्सन, नजूल पट्टा निर्माण एवं वितरण, अतिक्रमण एवं नियमितिकरण, नामांतरण, सीमांकन, विवादित एवं अविवादित बंटवारा, ई-कोर्ट में प्रकरण, पटेल एवं कोटवार नियुक्ति सहित विभिन्न राजस्व प्रकरणों की प्रगति की समीक्षा तहसीलवार करते हुए शीघ्रता से निष्पादित करने के निर्देश उपस्थित राजस्व अधिकारियों को दिए। बैठक में जिला पंचायत की सी.ई.ओ. श्रीमती नम्रता गांधी, अपर कलेक्टर श्री दिलीप अग्रवाल, संयुक्त कलेक्टर श्री जितेन्द्र कुर्रे सहित तीनों अनुभाग के अनुविभागीय (राजस्व) अधिकारी, डिप्टी कलेक्टर, तहसीलदार तथा नायब तहसीलदार मौजूद थे।
शौर्यपथ लेख / कंगना रनौत एक मशहूर हिरोइन देश की सबसे ज्यादा चर्चित महिला जो कभी ड्रग्स लेती थी , क्लबो में डांस करती थी , बीफ खाती थी आज फ़िल्मी दुनिया की पोल खोल रही है अपने आप को झाँसी की रानी , तो कभी अबला , तो कभी घर दुबारा बनाने के पैसे नहीं है की बात करने वाली एक ऐसी ज्ञानवान महिला जो चुनाव में उस जगह भी शिवसेना के उम्मीदवार को मज़बूरी में वोट डाल दी जहां शिवसेना का उम्मीदवार ही नहीं खडा था , एक ऐसी महिला जो अपने आप को महिलाओ की खैरख्वा बताती है जो इन्साफ की लड़ाई के लिए किसी से भी भीड़ जाती है यहाँ तक की मुंबई महानगर पालिका की कार्यवाही के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को दोषी मानती है और मुबई को pok जैसे शब्द से तुलना करने में भी पीछे नहीं हटती है , एक ऐसी महिला जो अपने अवैध रूप से बने घर को राम मंदिर से जोडती है , एक ऐसी बहादुर महिला जिसे केंद्र सरकार ने वाई श्रेणी की सुरक्षा दी है क्योकि वो महाराष्ट्र सरकार पर आरोप लगा रही है क्योकि जिसने अवैधानिक रूप से अपने कार्यालय का निर्माण किया है जिस पर मामला अब अदालत में विचाराधीन है ऐसी महान महिला ने वर्तमान में देश के सबसे बड़े काण्ड हाथरस काण्ड में घटना के १६ दिन बाद मृत मासूम के लिए इन्साफ की आवाज़ उठाई .
अब भई कंगना ने आवाज़ उठाई है तो बात तो बड़ी होगी ही और चर्चा तो होगी ही क्योकि वो कंगना है देश की सबसे मशहूर सेलिब्रिटी जिसे तुरंत वाई श्रेणी की सुरक्षा मिल गयी उस कंगना ने मनीषा के साथ हुए उत्तर पप्रदेश की बेटी हाथरस जिले की रहने वाली मासूम मनीषा के साथ हुए घटना पर १६ दिन बाद अपना आक्रोश जताया . किन्तु इस बार आक्रोश जताने का अंदाज़ कुछ जुदा था जो कंगना अपने कार्यालय के टूट जाने पर सीधे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पर आरोप लगाईं उस कंगना ने मनीषा के साथ हुए दुर्दांत हादसे पर एक ट्वीट किया उसके ट्वीट पर नज़र डालते है देखिये कंगना जी ने क्या कहा
"अपना गुस्सा ट्विटर पर ज़ाहिर किया. उन्होंने लिखा, “मुझे हमारे योगी आदित्यनाथ पर पूरी तरह से विश्वास हैं. उन्होंने जिस तरह से प्रियंका रेड्डी के दोषियों को घटनास्थल पर ही गोली मारने का हुकुम दिया था, वैसे ही हाथरस भी उनसे इस न्याय की उम्मीद कर रहा है.”
ट्वीट को ध्यान से पड़ने वालो को ये बात तो साफ़ समझ आ जाएगी की इतने बड़े काण्ड और १५ दिन बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जिन्होंने घटना को संज्ञान में तब लिया जब हमारे देश के यशस्वी , लोकप्रिय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र दामोदर दास जी मोदी ने संज्ञान लेने की बात कही . वो तो भला हो हमारे प्रधानमंत्री जी का जिन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को घटना की जानकारी दे दी और कार्यवाही की बात कही वरना अगर कही प्रधानमंत्री जी किसी राजनितिक यात्रा पर विदेश प्रवास में होते और किसी कारणवश कुछ दिन और बीत जाते तो ना जाने क्या होता खैर जो हुआ अब उस पर जांच होगी क्योकि अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भारत के सच्चे देशभक्त मोहमाया से दूर श्री योगी आदित्यनाथ जी ने मामले को संज्ञान लिया और १५ दिन बाद कड़ी कार्यवाही की बात की तो ऐसे में १५ दिन तक मौन रहने वाली आदरणीय कंगना जी भला कैसे चुप रहती एक ट्वीट तो बनता ही है और दे मारा एक ट्वीट और करने लगी इन्साफ की उम्मीद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से . इन्साफ तो खैर अब होगा ही मनीषा के साथ हुए कृत्य का , मनीषा की मृत देह के साथ हुए कृत्य का और उस कृत्य का भी जिसमे एक माँ को जिसने ९ माह अपनी कोख में जिस बेटी को पाला और दुनिया से १९ साल तक बचा के रखा जिसका अंतिम दर्शन करना भी नसीब नहीं हुआ चंद पुलिस वालो के कारण उन पुलिस वालो के कारण जो ला एंड आर्डर की रक्षा करते है जिसका नियंत्रण प्रदेश के मुखिया के हाथ में है किन्तु यहाँ कंगना जी ने प्रदेश के मुखिया से उम्मीद जाहिर की इन्साफ की अपनी ही नियत का दोहरा चेहरा दिखा दी कंगना ने अरे कंगना जी जब आपका कार्यालय टुटा तो वो कार्य बीएमसी का था तब क्यों नहीं आप प्रदेश के मुखिया से इन्साफ की उम्मीद करते हुए गुहार लगाईं क्या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने आपका बंगला तोडा था जिस तरह मनीषा के साथ हुए हादसे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कोई गलती नहीं है उसी तरह आपका आशियाना तोड़ने में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कोई गलती नहीं है . अगर आप सोंचती है कि प्रदेश के मुखिया की गलती है तो यह बात दोनों ही प्रदेश में लागू होगी अगर आप घटना की ही तुलना कर लेती तो घर टूटना और अस्मत लूटना दोनों में जमीन आसमान का अंतर है घर तो फिर बन जायेगा किन्तु क्या मनीषा वापस आएगी . दुनिया की कोई ताकत अब उसे वापस नहीं ला सकती . ऐसी दोहरी निति से आपने स्वयं ही साबित कर दिया की तलुवे चाटो और मौज करो ......
( शरद पंसारी - संपादक शौर्यपथ दैनिक समाचार )
हाथरस / शौर्यपथ / उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए कथित गैंगरेप की घटनास्थल से कुछ दूर दो युवा खड़े हैं. एक ने कमर पर कीटनाशक छिड़कने वाली मशीन बांध रखी है. वो अपनी फ़सल पर कीटनाशक छिड़कने निकले थे. खेत पर जाने के बजाए वो यहाँ चले आए हैं.
ये दलित युवा बेहद आक्रोशित हैं. वो पीडि़ता को नहीं जानते. पूछने पर कहते हैं, "हमारी बहन के साथ दरिंदगी हुई है. हमारा ख़ून उबल रहा है. जबसे सोशल मीडिया पर उसके बारे में पढ़ा है, हम बेचैन हैं. हम अब ऐसी घटनाओं को बर्दाश्त नहीं करेंगे. चुनाव आने दो, इसका जवाब दिया जाएगा."
हालांकि यूपी के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार का कहना है कि फ़ोरेंसिक रिपोर्ट में ये साफ़ कहा गया है कि महिला के साथ रेप नहीं हुआ. बल्कि मौत का कारण गर्दन में आई गंभीर चोटें हैं.
वहीं दूसरी ओर दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल की ओर से जारी बयान में कहा गया है, 'Ó20 वर्ष की महिला को 28 सितंबर को सफ़दरजंग अस्पताल में लाया गया और उनकी हालत काफ़ी गंभीर थी. जब उन्हें भर्ती किया गया तो वह सर्वाइकल स्पाइन इंजरी, क्वेड्रिफ़्लेजिया (ट्रॉमा से लकवा मारना) और सेप्टिकेमिया (गंभीर संक्रमण) से पीडि़त थीं. 'Ó
हालांकि यूपी पुलिस ये बार बार कह रही है कि रीढ़ की हड्डी नहीं टूटी बल्कि गर्दन की हड्डियां टूटी थी जो गला दबाने की कोशिश में टूट गईं. और यही मौत का कारण है.
यहाँ बाजरे के खेत हैं. गाँव को मुख्य मार्ग से जोडऩे वाली सड़क से कऱीब 100 मीटर दूर बाजरे के ही खेत में कथित गैंगरेप हुआ था. घटनास्थल पर पत्रकारों का आना-जाना लगा है. यहाँ मिले कुछ स्थानीय पत्रकार कहते हैं, "ये घटना उतनी बड़ी थी नहीं, जितनी बना दी गई है. इसकी सच्चाई कुछ और भी हो सकती है."
जब मैंने उनसे पूछा कि अगर सच्चाई कुछ और है, तो फिर आपने रिपोर्ट क्यों नहीं की, उनका कहना था, "इस घटना को लेकर भावनाएँ उबाल पर हैं. हम अपने लिए कोई ख़तरा मोल क्यों लें?" हालाँकि अपनी बात के समर्थन में उनके पास कोई ठोस सबूत नहीं थे. वो सुनी-सुनाई बातें ही ज़्यादा कह रहे थे. ये 'बातेंÓ आगे चलकर गाँव में भी सुनाई दीं.
स्थानीय पत्रकारों के साथ हुई अनौपचारिक बातचीत से उठे सवाल को हाथरस के एसपी विक्रांत वीर का ये बयान और गहरा करता है कि 'मेडिकल रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉक्टरों ने अभी रेप की पुष्टि नहीं की है. फ़ॉरेंसिक जाँच की रिपोर्ट का इंतज़ार किया जा रहा है. उसके बाद ही इस बारे में स्पष्ट राय दी जा सकेगी.Ó
कथित गैंगरेप का शिकार हुई पीडि़ता के परिवार को अभी भी मेडिकल रिपोर्ट नहीं दी गई है. जब पीडि़ता को दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तब भी उनके परिजनों के पास मेडिकल रिपोर्ट नहीं थी.
पीडि़ता के भाई कहते हैं, "पुलिस ने हमें पूरे कागज़़ नहीं दिए हैं. हमारी बहन की मेडिकल रिपोर्ट भी अभी हमें नहीं दी गई है." जब इस बारे में एसपी विक्रांत वीर से सवाल किया गया तो उनका कहना था कि ये जानकारी गोपनीय है. जाँच का हिस्सा है. हम घटना से जुड़े हर सबूत जुटा रहे हैं. फ़ॉरेंसिक सबूत भी इक_े किए गए हैं.
एसपी बार-बार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि पीडि़ता के साथ उस तरह की दरिंदगी नहीं हुई, जिस तरह मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है. वो कहते हैं, "उनकी जीभ नहीं काटी गई थी. रीढ़ की हड्डी भी नहीं टूटी थी. गले पर दबाव बढऩे की वजह से उनकी गले की हड्डी टूटी थी जिससे नर्वस सिस्टम प्रभावित हुआ था." घटना के कुछ देर बाद रिकॉर्ड किए गए एक वीडियो में पीडि़ता ने अपने साथ बलात्कार की बात नहीं की है. इसमें उन्होंने मुख्य अभियुक्त का नाम लिया है और हत्या के प्रयास की बात की है.
हालाँकि अस्पताल में रिकॉर्ड किए गए एक दूसरे वीडियो में और पुलिस को दिए गए बयान में पीडि़ता ने अपने साथ गैंगरेप की बात की है. इस वीडियो में पीडि़ता कहती है कि मुख्य अभियुक्त ने उसके साथ पहले भी छेडख़़ानी और रेप करने की कोशिश की थी. घटना के दिन के बारे में वो बताती हैं, "दो लोगों ने रेप किया था, बाक़ी मेरी माँ की आवाज़ सुनकर भाग गए थे."
घटना के दिन को याद करते हुए पीडि़ता की माँ कहती हैं, "मैं घास काट रही थी, मैंने बेटी से कहा कि घास को इक_ा कर ले, वो घास इक_ा कर रही थी. एक ही ढेरी बना पाई थी. मुझे जब वो नहीं दिखी तो मैं उसे ढूँढती फिरी. घंटा भर तक उसे ढूँढती रही. मुझे लगा कहीं घर तो नहीं चली गई है. मैंने खेतों के तीन चक्कर काटे. फिर मेढ़ के पास खेत में पड़ी मिली. गले में चुन्नी खींच रखी थी. वो बेहोश पड़ी थी. सारे कपड़े उतरे पड़े थे."
वो पीछे गर्दन की ओर इशारा करते हुए कहती हैं, "रीढ़ की हड्डी टूटी हुई थी. जीभ कटी हुई थी. ऐसा लग रहा था जैसे फ़ालिज मार गया हो. मेरी लड़की में बिल्कुल जान नहीं थी." पीडि़ता ने अपने सबसे पहले बयान में सिफऱ् एक युवक का ही नाम लिया था. इस सवाल पर उसकी माँ कहती हैं, "जब हम उसे बाजरा में से निकाल के ले गए, वो पूरी तरह बेहोश नहीं हुई थी, तब उसने एक का ही नाम बताया था. फिर एक घंटे बाद बेहोश हो गई. चार दिन बाद सुध आई तो पूरी बात बताई कि चार लड़के थे."
पीडि़ता का परिवार उसे अस्पताल ले जाने से पहले चंदपा थाने लेकर गए थे. ये थाना घटनास्थल से कऱीब पौने दो किलोमीटर दूर है. उसकी माँ कहती हैं, "वो रास्ते भर ख़ून की उल्टियाँ कर रही थी. जीभ नीली पड़ती जा रही थी. मैंने उससे पूछा कि बेटा कुछ बता, उसने बस इतना कहा कि मेरा गला दबा हुआ है, मैं बता नहीं सकती हूँ. फिर वो बेसुध हो गई."
सफ़दरजंग अस्पताल ने पीडि़ता की जो ऑटॉप्सी रिपोर्ट जारी की है, "उसमें मौत का कारण गले के पास रीढ़ की हड्डी में गहरी चोट और उसके बाद हुई दिक़्क़तों को बताया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि उसके गले को दबाए जाने के निशान हैं, लेकिन मौत की वजह ये नहीं है. मेडिकल रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि अभी विसरा रिपोर्ट आनी बाक़ी है और उसके बाद ही मौत की सही वजह बताई जा सकेगी."
पीडि़ता की मौत के बाद सफ़दरजंग अस्पताल की प्रवक्ता ने कहा था, "20 वर्ष की महिला 28 सितंबर को साढ़े तीन बजे नए इमरजेंसी ब्लॉक में न्यूरो सर्जरी के तहत दाख़िल हुई थी. उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज से रेफऱ किया गया था. भर्ती के समय उनकी स्थिति बहुत नाज़ुक थी. उन्हें सर्वाइकल स्पाइन इंजरी, क्वाड्रीप्लीजिया और सेप्टीसीमिया था. भरसक प्रयास और इलाज के बावजूद उनका कल 29 सितंबर को सुबह 6.25 बजे देहांत हो गया."
14 सितंबर को हुए इस कथित गैंगरेप के मामले में पुलिस ने एफ़आईआर की धाराओं को तीन बार बदला है. पहले सिफऱ् हत्या के प्रयास का मुक़दमा दर्ज किया गया था. उसके बाद गैंगरेप की धाराएँ जोड़ीं गईं. दिल्ली के अस्पताल में 29 सितंबर को पीडि़ता की मौत के बाद हत्या की धाराएँ भी जोड़ी गई हैं.
पुलिस ने इस मामले में पहली गिरफ़्तारी पाँच दिन बाद की थी. क्या पुलिस से जाँच में लापरवाहियाँ हुई हैं, इस सवाल पर पुलिस अधीक्षक कहते हैं, "14 सितंबर को सुबह लगभग साढ़े नौ बजे पीडि़ता अपनी माँ और भाई के साथ थाने आईं थीं. पीडि़ता के भाई ने पुलिस को दी शिकायत में कहा था कि मुख्य अभियुक्त ने हत्या की मंशा से उसका गला दबाया है. साढ़े नौ बजे मिली इस सूचना पर हमने साढ़े दस बजे एफ़आईआर कर ली थी."
एसपी विक्रांत वीर कहते हैं, "पीडि़ता को तुरंत जि़ला अस्पताल भेजा गया था. जहाँ से उसे अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज रेफऱ कर दिया गया था. इलाज भी तुरंत शुरू हो गया था. तहरीर के आधार पर पहली एफ़आईआर 307 और एससी-एसटी एक्ट की दर्ज की गई थी. फिर पीडि़ता जब कुछ बोलने लायक़ हुई, तो इंवेस्टिगेटिंग ऑफि़सर, जो सर्किल ऑफि़सर हैं, ने बयान लिए, उसमें पीडि़ता ने एक और लड़के का नाम लिया और कहा कि उसके साथ छेडख़़ानी की गई. ये बयान हमारे पास ऑडियो-वीडियो में है. इस बयान के बाद एक और अभियुक्त का नाम रिपोर्ट में जोड़ा गया."
"इसके बाद 22 तारीख़ को पीडि़ता ने अपने साथ दुष्कर्म और चार लोगों के शामिल होने की बात बताई. जब उससे पूछा गया कि पहले उसने दो लोगों का नाम क्यों लिया था और छेड़छाड़ की बात क्यों बताई थी तो उसने कहा इससे पहले उसे बहुत होश नहीं था. पीडि़ता के इस बयान के बाद हमने 376डी यानी गैंगरेप की धारा जोड़ी और अभियुक्तों की गिरफ़्तारी के लिए टीमें गठित कर दीं. जल्दी ही बाक़ी तीनों अभियुक्तों को भी गिरफ़्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया."
पीडि़ता ने अस्पताल में दिए अपने बयान में गैंगरेप का जि़क्र किया है. लेकिन क्या मेडिकल रिपोर्ट में गैंगरेप की पुष्टि होती है? इस सवाल पर एसपी कहते हैं, "मेडिकल रिपोर्ट एक अहम सबूत है. अभी जो मेडिकल रिपोर्ट हमें मिली है, उसमें डॉक्टरों ने चोटों का अध्ययन किया है लेकिन सेक्शुअल असॉल्ट (यौन हमले) की पुष्टि नहीं की है. अभी उन्हें फ़ॉरेंसिक रिपोर्ट मिलने का इंतज़ार है. उसके बाद ही वो उस पर राय देंगे. पीडि़ता के प्राइवेट पाट्र्स पर भी किसी चोट का जि़क्र नहीं है. ये मेडिकल रिपोर्ट हमारी केस डायरी का हिस्सा होगी."
रात के अंधेरे में अंतिम संस्कार
पुलिस ने मंगलवार देर रात पीडि़ता का अंतिम संस्कार कर दिया था. परिजनों का आरोप है कि उन्हें घर में बंद करके ज़बरदस्ती अंतिम संस्कार किया गया. हालाँकि पुलिस का कहना है कि परिजनों की मौजूदगी में अंतिम संस्कार हुआ.
इस तरह रात के अंधेरे में ज़बरदस्ती किए गए अंतिम संस्कार के बाद परिजनों और दलित समुदाय का ग़ुस्सा और भड़क गया है. कुछ लोग इसे पीडि़ता का 'दूसरा बलात्कार बता रहे थे.Ó वहीं पुलिस के इस कृत्य को साक्ष्य मिटाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है. आक्रोशित लोगों का कहना था कि पुलिस ने इस तरह अंतिम संस्कार करके 'दोबारा पोस्टमार्टम की संभावना को ख़त्म कर दिया है.Ó
पीडि़ता के भाई ने बीबीसी से कहा, "हमारे रिश्तेदारों को पीटा गया. ज़बरदस्ती उसे जला दिया. हमें तो पता भी नहीं कि पुलिस ने किसका अंतिम संस्कार किया है. आखऱिी बार चेहरा तक नहीं देखने दिया गया. पुलिस को ऐसी क्या जल्दी थी?"
जब हमने एसपी से यही सवाल किया तो उनका कहना था, "मौत हुए काफ़ी देर हो चुकी थी. पोस्टमार्टम और पंचनामे की कार्रवाई होते-होते 12 बज गए थे. कुछ कारणों से पीडि़ता का शव तुरंत नहीं लाया जा सका था. पीडि़ता के पिता और उनके भाई शव के साथ ही आए थे. परिजनों ने रात में ही अंतिम संस्कार करने का फ़ैसला किया था. पुलिस ने क्रियाकर्म के लिए लकडिय़ाँ और अन्य चीज़ें इक_ा करने में मदद की थी. परिजनों ने ही अंतिम संस्कार किया था."
क्या कहना है अभियुक्तों के परिजनों का?
पीडि़ता के घर से अभियुक्तों का घर बहुत दूर नहीं है. एक बड़े संयुक्त घर में तीन अभियुक्तों के परिवार रहते हैं. जब मैं यहाँ पहुँचा, तो घर में सिफऱ् महिलाएँ हीं थीं. उनका कहना था कि उनके बच्चों को झूठा फँसाया गया है. एक अभियुक्त 32 साल का है और तीन बच्चों का पिता है. दूसरा 28 साल का है और उसके दो बच्चे हैं. बाक़ी दो की उम्र 20 साल के आसपास है और उनकी शादी नहीं हुई है.
जब उनकी माओं से पूछा गया कि अगर उनके बेटे शामिल नहीं हैं, तो फिर उनका नाम क्यों लिया गया है तो उनका कहना था, "बहुत पुरानी रंजिश है. इनका तो काम ही यही है. झूठे आरोप लगा दो. फिर बाद में पैसा ले लो. सरकार से भी मुआवज़ा लेते हैं और लोगों से भी."
परिजनों का कहना था कि पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया था बल्कि उन्हें हाजिऱ किया गया था. एक महिला कहती हैं, "जब नाम आ गया तो हमने अपने बालक पुलिस के हाथ में दे दिए." एक अभियुक्त की माँ कहती हैं कि उनका बेटा दूध की डेयरी पर काम करता है और घटना के दिन वहीं था. उसकी हाजिऱी की जाँच की जा सकती है.
अभियुक्तों के परिजन बार-बार अपने ठाकुर होने और पीडि़ता के परिवार के दलित होने का जि़क्र कर रहे थे. अभियुक्त की माँ कहती हैं, "हम ठाकुर हैं, वो हरिजन, हमसे उनका क्या मतलब. वो रास्ते में दिखते हैं तो हम उनसे वहाँ दूरी बना लेते हैं. उन्हें छुएँगे क्यों, उनके यहाँ जाएँगे क्यों?"
अभियुक्तों के बारे में क्या कहना है गाँव के लोगों का?
अभियुक्तों के बारे में गाँव की लोगों की राय उनके परिवार से अपने रिश्तों के आधार पर बँटी है. पास के ही ठाकुर परिवार की कुछ महिलाएँ कहती हैं कि एक अभियुक्त तो पहले से ही ऐसा था. सड़क चलती लड़कियों को छेड़ता था. अपने खेत पर काम कर रहे कुछ ठाकुर परिवारों से जुड़े युवक भी कहते हैं, "ये परिवार ऐसा ही है. लड़ाई-झगड़े करते रहते हैं. बड़ा परिवार है, तो इनके डर से कोई कुछ बोलता नहीं है. सभी एकजुट हो जाते हैं. इनका दबदबा है. गाँव में इनके ख़िलाफ़ कोई कुछ नहीं बोलेगा."
कुछ दूर एक दूसरे खेत पर काम कर रहा एक और युवक कहता है, "सर इस घटना के बारे में जैसा आप सोच रहे हैं वैसा नहीं है. अब एसआईटी जाँच करेगी. एक हफ़्ते में सब पता चल जाएगा कि क्या हुआ. देखते रहिए. टीम गाँव आ रही है."
पड़ोस के ही दलित परिवार के एक बुज़ुर्ग कहते हैं, "ये पहली बार नहीं है कि हम पर इस तरह का हमला किया गया है. हमारी बहू-बेटी अकेले खेत पर नहीं जा सकती है. और ये बेटी तो माँ-भाई के साथ गई थी तब भी उसके साथ ये हो गया. इन लोगों ने हमारी जि़ंदगी को नर्क बना दिया है. हम ही जानते हैं इस नर्क में हम कैसे रह रहे हैं."
गांव में जातिवाद
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से कऱीब 160 किलोमीटर दूर बसे इस गाँव में अधिकतर ठाकुर और ब्राह्मण परिवार ही रहते हैं. दलितों के कऱीब दर्जनभर घर हैं, जो आसपास ही हैं.
दलितों और गाँव के बाक़ी लोगों के बीच सीधा संबंध नजऱ नहीं आता है. इस घटना के बाद तथाकथित उच्च जाति के लोगों ने पीडि़ता के घर जाकर सांत्वना नहीं दी है. पीडि़ता के रिश्तेदार भी यही कहते हैं कि दूसरी जाति के लोगों से उनका संबंध नहीं है. एक अभियुक्त का नाबालिग़ भाई अपने भाई को निर्दोष बताते हुए बार-बार अपनी जाति का जि़क्र करता है. वो कहता है, "हम गहलोत ठाकुर हैं, हमारी जाति इनसे बहुत ऊपर है. हम इन्हें हाथ लगाएँगे, इनके पास जाएँगे."
दलितों में भड़कता आक्रोश
पुलिस ने गाँव पहुँचने के सभी रास्तों पर बैरिकेडिंग की है. अधिकतर लोगों को बाहर ही रोका जा रहा है. पत्रकारों को भी पैदल ही गाँव जाने दिया जा रहा है. दलित समुदाय से जुड़े लोग पीडि़ता के घर पहुँचकर सांत्वना देना चाहते हैं. लेकिन पुलिस उन्हें बाहर ही रोक रही है.
उत्तराखंड से आए दलितों के एक प्रतिनिधिमंडल को भी पुलिस ने बाहर ही रोक दिया. इसमें शामिल लोग कहते हैं, "सरकार हमारे साथ बहुत अन्याय कर रही है, हम इसे अब और नहीं सहेंगे. हम अपने लोगों के घर जाकर उन्हें ढांढस भी नहीं बंधा सकते." इस समूह में शामिल एक युवा कहता है, "इस सरकार का घमंड अब चुनावों में ही टूटेगा."
मैंने गाँव से मुख्य मार्ग तक जाने के लिए एक बाइक सवार से लिफ़्ट ली. ये यहाँ से कऱीब 30 किलोमीटर दूर स्थित एक गाँव का कोई 18-20 साल की उम्र का युवा था. वो नोएडा में नौकरी करता है और घटना का पता चलने के बाद यहाँ आया है.
वो कहते हैं, "जब से अपनी बहन के बलात्कार के बारे में पता चला है. चैन से नहीं बैठा हूँ. रोज़ सोशल मीडिया पर उसके बारे में पढ़ रहा था. उसकी मौत की ख़बर सुनते ही तुरंत गाँव चला आया. अगर वो दरिंदे मेरे सामने आए तो गोली मार दूँ."
एसआईटी जाँच
सरकार ने अब इस घटना की जाँच के लिए तीन सदस्यों की स्पेशल इंवेस्टिगेटिंग टीम गठित कर दी है, जो बुधवार शाम हाथरस पहुँच गई. अब गाँव की सीमाओं को मीडिया समेत बाक़ी सभी के लिए सील कर दिया गया है. एसआईटी ने जाँच शुरू कर दी है.
एक सप्ताह बाद एसआईटी को अपनी रिपोर्ट सौंपनी हैं. एसआईआटी की जाँच में ही घटना का पूरा सच पता चल सकेगा. घटना का सच जो भी है, इससे शायद अब बहुत ज़्यादा फ़कऱ् नहीं पड़ेगा. दलित समुदाय का ग़ुस्सा इस घटना के बाद भड़क गया है, उसे अब थामना बहुत आसान नहीं होगा.
पुलिस की भूमिका पर उठते सवाल
इस घटना के बाद पुलिस की शुरुआती जाँच और भूमिका पर कई गंभीर सवाल उठे हैं, जिनके जवाब अभी नहीं मिल सके हैं.
1. पुलिस ने घटना स्थल को सील क्यों नहीं किया. घटना के पहले दिनों में वहाँ से साक्ष्य क्यों नहीं जुटाए?
2. रात के अंधेरे में ज़बरदस्ती अंतिम संस्कार क्यों किया?
3. पीडि़ता के परिवार के साथ उसकी मेडिकल रिपोर्ट साझा क्यों नहीं की?
4. तकनीकी साक्ष्य क्यों नहीं जुटाए गए और अभियुक्तों की गिरफ़्तारी में देर क्यों की गई?
हालाँकि इन सवालों पर हाथरस के एसपी विक्रांत वीर का कहना था, "पुलिस ने अपने काम में कोई लापरवाही नहीं की है. सभी सबूत जुटाए गए हैं और जुटाए जा रहे हैं. घटना की विवेचना निष्पक्षता से की जा रही है. कोई गुनाहगार बचेगा नहीं और किसी बेगुनाह को झूठा फँसाया नहीं जाएगा."
वो कहते हैं, "हमारी जाँच अपनी रफ़्तार से चल रही है, हम मामले को फ़ॉस्ट ट्रैक अदालत ले जाकर पीडि़ता को इंसाफ़ दिलाएँगे."
(समाचार संकलन बीबीसी हिंदी से )