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दुर्ग / शौर्यपथ / कोरोना आपदा के कारण शहर सहित देश दो महीनो के लॉक डाउन में जिन्दगी गुजार दी . कोरोना का संक्रमण से दुर्ग शहर अभी अछुता ही है और जन जीवन लॉक डाउन में मिली ढील के साथ सुचारू रूप से चल रहा है . इस कोरोना आपदा के दरमियान सुखा राशन वितरण की पहल दुर्ग विधायक और निगम महापौर द्वारा की गयी जिसके उपरान्त दुर्ग निगम के सभी पार्षदों की पार्षद निधि पहले २ लाख फिर बाद में २ लाख की स्वीकृति की गयी साथ ही विधायक व महापौर के द्वारा भी निधि दी गयी लगभग २ करोड़ ६० लाख रूपये की कीमत का सुखा राशन का वितरण दुर्ग निगम क्षेत्र में किया गया साथ ही कई संस्थाओ द्वारा भी सुखा राशन का दान निगम को किया गया .. राशन वितरण और खरीददारी का सारा जिम्मा निगम के एक ही अधिकारी प्रभारी ईई गोस्वामी के हांथो में निगम प्रशासन ने सौपा .
कई सामानों में हुआ प्रति नग एक से दो रूपये का खेल ..
राशन वितरण में शक्कर , आंटा , साबुन , चाय पत्ती , मसाला , तेल ,चावल , दाल , आलू , प्याज आदि जरुरत की वस्तुए वार्ड के ज़रूरतमंदों लोगो को दी गयी . कोरोना आपदा में शासन के पैसे का इससे अच्छा उपयोग नहीं हो सकता था किन्तु इन वस्तुओ के खरीददारी में किन मानको का उपयोग किया गया वही सबसे बड़ा भ्रष्टाचार का खेल है आइये हर सामान के कीमतों का आंकलन करते है जिसके बारे में आम जनता को भलीभांति ज्ञात होगा ही कि कैसे एक अधिकारी द्वारा सोयाबीन की बड़ी के एक रूपये से दाल के १० रूपये तक का घोटाला किया गया ....
साबुन में एक से ढेढ़ रूपये प्रति नग में गड़बड़ी
निगम प्रशासन द्वारा एक लोकल साबुन की खरीदी की गई जिसकी प्रिंट कीमत ही 5 रुपये थी जबकि बड़ी बड़ी कम्पनी जो जीएसटी व सभी शासकीय टेक्स भुगतान के बाद भी 4 रुपये थोक भाव मे मिल जाती है किंतु निगम के ज़िम्मेदार अधिकारी द्वारा उसकी तय खरीदी मूल्य 5 रुपये ही दर्शायी गई खरीदी की संख्या हज़ारों नग थी वैसे ही नहाने के साबून और डिटर्जेंट पाऊडर में भी यही खेल चला । शौर्यपथ समाचार द्वारा जब इस बात को उजागर किया गया तब कपड़ा धोने के साबुन घड़ी साबुन और डिटर्जेंट को राशन के थैले में जगह मिली किन्तु तब तक साबुन के खेल में हज़ारों के बारे न्यारे हो गए ।
आलू प्याज में भी खूब चला खेल
सूखा राशन में आलू प्याज भी पेकिंग कर दिया गया । विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आलू प्याज की तय मात्रा की खरीदी पहले ही हो गई किन्तु प्रतिदिन के पेकिंग में अलग अलग कीमत अंकित कर आलू प्याज में भी हजारों का खेल हो गया ।
चावल दाल में चली अंधाधुन कमाई
सूखा राशन के पैकेट में चावल व दाल भी दिया गया कई पार्षदों के पैकेट में उसना चावल पालिस वाला भी वितरित किया गया जिसकी बाजार कीमत 24-25 रुपये है किंतु यहां भी चावल की कीमत प्रति पैकेट में 36 रुपये प्रति किलो अंकित की गई । वही मिक्स दाल जो बाजार में 55-57 रुपये प्रति किलो आसानी से चिल्हर भाव मे मिलता है की कीमत पैकेट में 70 रुपये अंकित की गई यानी एक किलो पर ही 10 से 12 रुपये का खेल हुआ ।
तेल की कीमत में बदलाव
एक ही कम्पनी के तेल की कीमत कभी 86 तो कभी 88 रुपये दर्शाए गए यह भी निगम के जिम्मेदार अधिकारी द्वारा हजारों के वारे न्यारे की संभावना व्यक्त की जा रही है क्योंकि तेल प्रति पैकेट ही दिया गया और सूखा राशन के वितरण की संख्या एक दो नही हजारों में थी ।
निम्न स्तर के चाय पत्ती में भी कमाई
सूखा राशन के पैकेट में निम्न स्तर के लोकल चाय पत्ती के वितरण में भी हज़ारों के वारे न्यारे हुए है और इन सामनो की खरीददारी की जिम्मेदारी भी प्रभारी ईई और निगम के सर्वेसर्वा मोहन पूरी गोस्वामी की थी ये वही मोहन पूरी गोस्वामी है जिन पर दीपावली में अपने खास मीडिया कर्मियों को लिफाफा देने का आरोप एक दैनिक समाचार पत्र में लगा था ।
सोयाबीन बड़ी में भी लगा दिए 4 रुपये प्रति पैकेट का चूना (80 ग्राम प्रति पेकेट )
निगम के सूखा राशन में सोयाबीन बड़ी और मुर्रा का भी वितरण किया गया । बाज़ार में अच्छी क्वालिटी का सोयाबीन बड़ी 1170 से 1200 रुपये बोरी (20 किलो ) आसानी से मिलता है किंतु निगम प्रशासन द्वारा यहां भी 4 रुपये की हेरा फेरी का अंदेशा है । प्राप्त जानकारी के अनुसार निगम के ईई ने अपने खासमखास व्यक्ति को इसकी जिम्मेदारी दी और यहां भी बड़ी घोटाला हो गया । शहर के नए महापौर बाकलीवाल राशन के भी व्यापारी है इस तरह से हुए राशन घोटाले में शहर की आम जनता का शक सीधे महापौर बाकलीवाल की तरफ जाता है किन्तु निगम की कार्यप्रणाली को करीबी से जानने वाले ही अच्छी तरह समझ सकते है कि निगम आयुक्त बर्मन के आदेश के अनुसार खरीदी का पेकिंग का सारा कार्य ईई मोहनपुरी गोस्वामी के जिम्मे है . प्राप्त जानकारी के अनुसार अब जब सुखा राशन वितरण का कार्य खत्म हो गया तो बिलिंग के कार्य के लिए डमी एजेंसी का सहारा लिया जा रहा है . जो सिर्फ बिलिंग का कार्य करेगी जबकि असली ठेकेदार कोई और है . कोरोना आपदा के पैसे की बंदरबाट होना निगम प्रशासन के कार्य प्रणाली और लचर व्यवस्था को दर्शाता है . क्या निगम आयुक्त बर्मन इन सब बातो से अनजान है या फिर किसी अनदेखी लाभ के कारण मौन है . अगर आयुक्त बर्मन इन सब बातो से अनजान है महापौर बाकलीवाल इन सब बातो से अनजान है तो समाचार के माध्यम से प्रकाशित खबर के आधार पर मामले की निष्पक्ष जाँच कर दोषी अधिकारी और फर्जी ठेकेदारों पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही कर आम जनता को ये सन्देश दे कि प्रशासन निष्पक्ष होकर बिना लालच के कार्य कर रहा है .
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