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कन्नौज / शौर्यपथ / कोरोनावायरस लॉकडाउन के चलते एक परिवार मई में तमिलनाडु से उत्तर प्रदेश के कन्नौज लौटा था. यूपी लौटते ही परिवार के पास खाने तक को कुछ नहीं था. राशन और दवाई खरीदने के लिए मजबूरन उन्हें अपनी ज्वैलरी 1500 रुपये में बेचनी पड़ी. मीडिया में मामला सामने आने के बाद जिला प्रशासन परिवार को मदद को आगे आया. प्रशासन की ओर से परिवार का राशन कार्ड व मनरेगा का जॉब कार्ड बनवा दिया गया है.
मिली जानकारी के अनुसार, कन्नौज स्थित फतेहपुर जसोदा गांव निवासी श्रीराम तीन दशक पहले अपनी शादी के बाद परिवार के साथ तमिलनाडु शिफ्ट हो गए थे. वहां वह कुल्फी बेचकर परिवार का गुजारा करते थे. श्रीराम, उनकी पत्नी और 9 बच्चे किराए के मकान में रहते थे. श्रीराम ने बताया कि मई के तीसरे हफ्ते में मकान मालिक ने उनसे घर खाली करने को कहा और कहा कि वह अपने गांव लौट जाएं.
श्रीराम ने कहा कि परिवार की परेशानी यहीं से शुरू हो गईं. 19 मई को पूरा परिवार कन्नौज जाने के लिए ट्रेन से निकला. 21 मई को वह लोग गांव पहुंच गए. श्रीराम की बेटी राजकुमारी ने बताया, 'वापस लौटते ही हमें खाने को 10 किलो चावल और दाल दी गई. हमारा बड़ा परिवार है, लिहाजा राशन जल्द खत्म हो गया. वहीं मेरी मां और दो भाई-बहन बीमार हो गए. पापा ने कोशिश की तो हमें एक-दो दिन का खाना और मिल गया. जिसके बाद हमारे पास मेरी मम्मी के कुछ गहने, जो वो पहना करती थीं, को बेचने के सिवा कोई रास्ता नहीं था. उसे बेच हमने खाना और दवाइयां खरीदीं. हमने राशन कार्ड बनवाने की भी कोशिश की लेकिन हमसे कहा गया कि अभी नए राशन कार्ड नहीं बन रहे हैं.'
कन्नौज के जिलाधिकारी राकेश मिश्रा ने इस बारे में कहा, 'मैंने ब्लॉक डेवलेपमेंट ऑफिसर और सप्लाई इंस्पेक्टर को इस मामले की जांच के लिए भेजा. जांच में पता चला कि ये परिवार दो हफ्ते पहले लौटा है. परिवार ट्रांसिट कैंप में रह रहा था. उन्हें रजिस्टर किया गया और 15 किलो की राशन किट दी गई. उनके पास जॉब कार्ड भी नहीं था, तो उनके लिए जॉब कार्ड भी बनवाया गया. परिवार के लिए राशन कार्ड भी बनवाया गया है. अब उन्हें कोई दिक्कत नहीं है.'
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