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नई दिल्ली/शौर्यपथ /उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजे चौकाने वाले रहे हैं. साल 2022 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने वाली बीजेपी इस बार करिश्मा नहीं कर पाई.बीजेपी 33 सीटों पर सिमट गई है. उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा करिश्मा अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन ने किया है. इस गठबंधन ने प्रदेश की 80 में से 43 सीटें जीत ली हैं.उत्तर प्रदेश के ये परिणाम कमंडल पर मंडल की जीत की तरह लग रहे हैं.आइए जानते हैं कि आखिर उत्तर प्रदेश में हुआ क्या और इसके पीछे का समीकरण क्या थे.
बीजेपी का गेम प्लान
नरेंद्र मोदी को 2013 में बीजेपी के चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाया गया था. इसके बाद बीजेपी ने उत्तर प्रदेश के लिए रणनीति बनानी शुरू कर दी. उसकी रणनीति का प्रमुख हिस्सा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को कमजोर करना था. इसके लिए बीजेपी ने गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों को महत्व देने की रणनीति बनाई.चुनाव में टिकट वितरण में इस बात का ध्यान रखा गया.इसका फायदा बीजेपी को 2014 और 2019 के चुनाव में हुआ.बीजेपी और उसके सहयोगी 2014 में 73 सीटें जीतने में कामयाब रहे. सपा पांच और बसपा शून्य पर पहुंच गई.बीजेपी ने इसी को ध्यान में रखकर 2024 में भी टिकट बांटे.इसी वजह से करीब सवा दो करोड़ की आबादी वाली चमार जाति को बीजेपी का एक भी टिकट नहीं मिला.केवल दो जाटवों को टिकट बीजेपी ने दिए.
लोकसभा चुनाव में जीत का जश्न मनाते सपा कार्यकर्ता.
इसके बाद 2019 के चुनाव में बीजेपी के पक्ष में 2014 से भी बड़ा माहौल था. इससे निपटने के लिए सपा और बसपा ने हाथ मिला लिया. चुनाव परिणाम आए तो इस गठबंधन के पक्ष में सीटें गईं.सपा की सीटें तो नहीं बढ़ीं, लेकिन बसपा 10 सीटें जीतने में कामयाब रही. इस वजह से बीजेपी 62 सीटों पर आ गई.
अखिलेश यादव का पीडीए
साल 2024 के चुनाव से पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पीडीए का फार्मूला ईजाद किया. पीडीए मतलब-पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक. पिछड़ों के बड़े वर्ग और अल्पसंख्यकों में सपा की पैठ पहले से थी. लेकिन दलित सपा के साथ नहीं था. पीडीए को मजबूत करने के लिए अखिलेश यादव ने काफी मेहनत की. इसके उन्होंने पार्टी और संगठन में इस फार्मूले के आधार पर पद दिए. टिकट बंटवारे की बात आई तो उन्होंने इसका ख्याल रखा. यादवों की पार्टी होने का ठप्पा रखने वाली समाजवादी पार्टी ने केवल पांच यादवों को ही टिकट दिए. ये यादव उनके अपने परिवार के थे.इससे पहले सपा ने 2019 में 10 और 2014 में 12 यादवों को टिकट दिए थे.दलित वोटों पर पकड़ को मजबूत करने के लिए समाजवादी पार्टी ने सामान्य सीटों पर भी दलित उम्मीवार खड़े कर दिए. इनमें अयोध्या और मेरठ प्रमुख थी.अयोध्या से सपा प्रत्याशी ने जीत भी दर्ज की है.सपा ने टिकट बंटवारे में वोटों का बंटवारा रोकने की भरपूर कोशिश की है. इसके लिए मुस्लिम बहुल्य सीटों पर भी हिंदू उम्मीदवार उतार दिए. मुरादाबाद सीट इसका उदाहरण है, जहां सपा का रुचि वीरा ने जीत दर्ज की है.सपा ने इस बार केवल चार मुस्लिमों को ही टिकट दिए थे.
सपा ने कैसे लगाई बीजेपी के वोट बैंक में सेंध
सपा ने बीजेपी का मजबूत वोट बैंक माने जाने वाले निषाद वोटों में भी जबरदस्त सेंध लगाई है. सपा ने तीन निषादों को टिकट दिया था. उसमें से दो सीटों पर उसे जीत मिली है. संतकबीर नगर में सपा लक्ष्मीकांत उर्फ पप्पू निषाद ने जीत दर्ज की है. निषाद ने निषाद पार्टी के प्रमुख के बेटे को मात दी है. वहीं सुल्तानपुर सीट पर मेनका गांधी को सपा के रामभुआल निषाद ने हराया है. मेनका के खिलाफ चुनाव लड़ाने के लिए अखिलेश यादव निषाद को गोरखपुर से लेकर गए थे. गोरखपुर में सपा का निषाद उम्मीदवार जीत तो नहीं पाई. लेकिन बीजेपी के उम्मीदवार के वोटों में जबरदस्त सेंध लगा दी. वहां सपा उम्मीदवार ने रवि किशन का जीत का मार्जिन पौने चार लाख से घटाकर एक लाख कर दिया है.
विपक्षी इंडिया गठबंधन ने इस चुनाव में संविधान बचाने और आरक्षण बचाने को बड़ा मुद्दा बनाया. विपक्ष इस मुद्दे पर शुरू से लेकर अंत तक टिका रहा.विपक्षी इंडिया गठबंधन ने जाति जनगणना और 30 लाख नौकरियां देने का वादा किया.इस मुद्दे ने जमीन पर काम किया. इसका परिणाम नतीजों में नजर आया. सपा 37 सीटें जीतने में कामयाब रही.सपा ने न केवल अपनी सीटें बढ़ाईं बल्कि अपना वोट बैंक बढ़ाने में भी कामयाब रहीं. इस चुनाव में सपा को 33.59 फीसदी वोट मिले हैं. यह सपा का अबतक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है. साल 2019 के चुनाव में बीजेपी केवल 18.11 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई थी. यहां तक की जब 2004 के चुनाव में सपा को 35 सीटें मिली थीं, तब भी उसके केवल 26.74 फीसदी वोट ही मिले थे.
बसपा को कितनी सीटें मिली हैं?
इस चुनाव में सबसे अधिक घाटा बसपा को उठाना पड़ा है. बसपा ने 2019 में सपा के साथ मिलकर 10 सीटें जीती थीं. लेकिन इस चुनाव में वह फिर शून्य पर पहुंच गई है.साल 2019 में 19.43 फीसदी वोट हासिल कर पाने वाली बसपा का वोट फीसद गिरकर 9.39 फीसदी रह गया है.
वहीं इस चुनाव में बीजेपी को हुए नुकसान की बात करें तो साल 2019 की तुलना में बीजेपी को 2024 में 8.61 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ है.इससे 2019 में 62 सीटें जीतने वाली बीजेपी 33 सीटों पर पहुंच गई है.राजनीति के जानकारों का कहना है कि दलितों और ओबीसी का एक बहुत बड़ा हिस्सा बीजेपी से दूर हुआ है. यह हिस्सा सपा के पक्ष में गया है.इस चुनाव में कांग्रेस अपना वोट शेयर और सीटें दोनों बढ़ाने में कामयाब रही है.साल 2019 में कांग्रेस ने 6.36 फीसदी वोट के साथ केवल एक सीट ही जीत पाई थी.वहीं इस चुनाव में कांग्रेस ने 9.46 फीसदी वोटों के साथ छह सीटें जीती हैं.
मंडल की ओर लौटते अखिलेश यादव
साल 2024 का चुनाव ऐसा पहला चुनाव था, जब अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव उनके साथ नहीं थे. उनका 2022 में निधन हो गया था. इस चुनाव के नतीजों से लगा की अखिलेश यादव मंडल की राजनीति की ओर लौट रहे हैं, जिस पर एक समय उनके पिता मुलायम सिंह यादव चला करते थे. अब अखिलेश यादव खुद को एक ऐसे नेता के रूप में पेश कर रहे हैं, जो पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, दलितों और गरीब-गुरबा की बात करता है. उन्होंने जाति जनगणना, आरक्षण पर हमले को जोरदार मुद्दा बनाया. इसका फायदा भी हुआ. इसकी बदौलत सपा अबतक का शानदार प्रदर्शन करने में कामयाब रही.
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