August 04, 2025
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पश्चिम बंगाल में वही रणनीति अपना रही हैं ममता बनर्जी, जो कुछ साल पहले तक PM नरेंद्र मोदी अपनाते थे...

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नई दिल्ली / शौर्यपथ / पश्चिम बंगाल के चुनाव में ममता बनर्जी की रणनीति साफ़ है. उन्‍होंने ख़ासतौर पर इस चुनाव में महिला मतदाताओं को चुना है.ममता को मालूम है कि महिला मुख्यमंत्री होने के नाते महिलाओं में उनके प्रति एक ख़ास आकर्षण है. यही वजह है कि वह अपनी रैलियों में महिलाओं को ख़ासी तौर पर संबोधित करती है. एक तो ममता बनर्जी की रैली बांग्ला भाषा में होती है और आप मानें या न मानें यहां पश्चिम बंगाल में भाषा एक ज़रूर मुद्दा है आपको कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो आपको सीधे तौर पर कहेगें कि हिंदी जानी नाय यानि उन्हें हिंदी नहीं आती, खासकर महिलाएं, यही वजह है कि ममता जब रैली में आती है तो महिलाओं से सीधे संवाद करने की कोशिश करती है वो बांग्ला में बोलती है वो बांग्‍ला बनाम अन्य का मुद्दा भी उठाती है. महिलाओं से पूछती है कि उन्होंने, उनके लिए जो काम की है उसका फ़ायदा उन्हें मिल रहा है या नहीं मिल रहा है और महिलाएं इसका जवाब भी 'ममता दीदी' को देती हैं इसलिए ममता बनर्जी की रणनीति साफ़ है उन्हें लगता है कि उन्हें अधिक संख्या में महिला वोट मिलें, अधिक संख्या में अल्पसंख्यक वोट भी लें और थोड़ी संख्या में बहुसंख्यक लोगों या कहें बचे हुए हिंदू वोट मिलें तो उनका एकबार फिर से मुख्यमंत्री बनना तय हो सकता है.
यही नहीं, ममता बनर्जी अपने भाषण में राजवंशी समुदाय, मतुआ समुदाय और गोरखा समुदाय का उल्लेख ज़रूर करती हैं. वे लोगों को बताती हैं कि उन्होंने, इनके लिए क्या क्या काम किए हैं. ये एकतरह से देखा जाए तो ममता बनर्जी अपने रैली में बांग्ला बनाम अन्य का मुद्दा बनाने से नहीं चूकती हैं वे बांग्ला बनाम बाहरी का जिक्र अपने भाषणों में करती हैं. वे भाषणों में कहती हैं कि वह बंगाल को गुजरात नहीं बनने देंगी, वे बंगाल को उत्तर प्रदेश नहीं बनने देंगी. यानी साफ़ है कि ममता बनर्जी वही काम कर रही हैं जो काम कुछ सालों पहले तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किया करते थे, जब वह गुजरात के चुनाव को गुजरात की अस्मिता से जोड़ते थे. आज पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी इस चुनाव को बंगाल की अस्मिता से जोड़ रही है और उसे वहीं बनाने की कोशिश कर रही हैं
ममता बनर्जी को मालूम है कि यहां पर पश्चिम बंगाल में जो हिंदी बोलने वाले लोग हैं वो अधिकतर BJP के साथ हैं. चाहे आप हावड़ा की बात करें या फिर हुबली या फिर कोलकाता की बात करें, इन इलाकों में बडी संख्या में हिंदी बोलने वाले लोग हैं. ये लोग प्रमुख रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश से आते हैं जिनमें में BJP ने अच्छी पैठ बना ली है. साथ ही BJP ने नॉर्थ बंगाल का जो इलाक़ा है, वहां पर भी BJP की पकड़ है ख़ास तौर पर राजबंसी, मतुआ और गोरखा समुदाय है उसमें. BJP के इसी 'कांबिनेशन' को तोड़ने के लिए ममता बनर्जी ने अल्पसंख्यक और महिला वोटरों पर अपनी पकड़ बनाए रखने की रणनीति अपनाई है. ममता बनर्जी की रैली में 'खेला होबे' के नारे लगते हैं, फ़ुटबॉल होता है, महिलाओं के लिए ख़ासा आकर्षण होता है 'खेला होबे' का गाना. ख़ासकर जब 'खेला होबे' बजता है तो उस पर महिलाएं खूब नाचती हैं और बाद में दीदी जो है वो लोगों को 'बाहरी बनाम बंगाली' का मुद्दा छेड़ देती हैं.
ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस की एकमात्र स्टार प्रचारक हैं. आप कह सकते हैं कि वे कप्तान भी हैं, कोच भी वही हैं, सेंटर फॉरवर्ड भी वही हैं और गोलकीपर भी वही हैं. यही वजह है कि ममता बनर्जी लोगों को बताती हैं कि कैसे वे एक अकेली महिला, BJP के ख़िलाफ़ लड रही हैं. BJP के तमाम संसाधनों के ख़िलाफ़ वे संघर्ष कर रही है और इसी आधार पर वह लोगों से वोट मांग रही हैं निश्चित रूप से लोग उसको पसंद भी करते हैं और उनकी रैलियों में भीड भी जुटती है और लोग खूब तालियां भी पीटते हैं. ममता को मालुम है कि उन्हें महिला और अल्पसंख्यकों का बहुमत वोट और अन्य समाज का थोड़ा वोट मिले तो वो फिर से सत्ता में आ सकती हैं. दूसरी तरफ चुनाव आयोग ने ममता पर प्रचार न करने का प्रतिबंध लगाया, उससे भी ममता के पक्ष में लोगों के मन में एक सहानुभूति पैदा हुई है जिसका फायदा भी तृणमूल कांग्रेस को मिलेगा. मगर सबसे बडा सवाल वही है कि बंगाल में 'खेला होबे' या फिर 'परिबोरतन होबे..'

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