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नई दिल्ली / शौर्यपथ / प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज भारतीय उद्योग परिसंघ के 125वें सालाना सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि कोरोना वायरस की वजह से अर्थव्यवस्था में पड़े असर को दूर करने के लिए कई दूरगामी कदम उठाए गए हैं. पीएम मोदी ने कहा कि वायरस से लड़ने के लिए और सख्त कदम उठाने होंगे साथ ही अर्थव्यवस्था का भी रखना ध्यान होगा. उन्होंने सरकार की ओर से हाल ही में किए गए लघु उद्योंगों और किसानों के लिए किए गए फैसलो का जिक्र किया. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कई श्रम कानूनों भी बदलाव किए जा रहे हैं. आपको बता दें कि उद्योग इन श्रम कानूनों की मांग काफी समय से कर रहा था. कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने श्रम कानूनों में ढील दी है. इसके पीछे तर्क निवेश को बढ़ावा देना था ताकि रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकें. जिससे बेरोजगारों की रोजी-रोटी का इंतजाम किया जा सके. लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन भारतीय मजदूर संघ और तमाम दूसरे संगठनों ने इन फैसलों को मजदूरों के खिलाफ बताया है.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ के महासचिव विरजेश उपाध्याय ने एनडीटीवी से कहा, 'हम राज्य सरकारों के इस पहल के खिलाफ हैं. हम उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत श्रम कानून में बदलाव करने पर विचार कर रहे हर राज्य सरकार से ये पूछना चाहते हैं की अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने में मौजूदा श्रम कानून कैसे रोड़ा बन रहे हैं? हम किसी भी हालत में श्रमिकों के अधिकारों को स्थगित करने के फैसले के सख्त खिलाफ हैं ".
मध्य प्रदेश सरकार ने क्या किए बदलाव
श्रम कानूनों बदलाव की वो बातें जो सीधे मजदूर विरोधी हैं तो पहले अगर कोई न्यूनतम मज़दूरी ना दे तो लेबर इंस्पेक्टर को अधिकार थे ...कानून तोड़ने वाले पर वो मुकदमा लगा सकता है जिसमें 6 महीने की जेल, 7 गुना जुर्माने का भी प्रावधान था लेकिन अब जांच और निरीक्षण से मुक्ति दे दी गई है.
पहले ये भी प्रावधान थे कि श्रम आयुक्त आदेश दे तो निरीक्षण कराया जा सकता था, शिकायत करने पर वो ऐसे आदेश दे सकते थे लेकिन अब उसे हटा दिया गया है.
पहले से ही 90 प्रतिशत से ज्यादा में श्रम कानूनों का उल्लंघन होता है फिर चाहे 8 घंटे काम की शर्त हो, साप्ताहिक अवकाश या फिर ओवरटाइम की लेकिन अब इस शिकायत के मायने नहीं है.
मध्यप्रदेश औद्योगिक संबंध अधिनियम 1960 लागू थे तो कम से सत्तारूढ़ दल से संबंधित ही सही कामगारों के यूनियन को मान्यता मिल जाती थी जो अब नहीं होगी.
श्रमिक को अधिकार था सीधे लेबर कोर्ट चला जाए लेकिन उसमें जो संशोधन होते रहे पहले ही प्रक्रिया को बहुत जटिल और थकाऊ बनाया जा चुका है जिसमें विवाद की स्थिति में पहले लेबर ऑफिस जाए वो बैठक करेंगे. महीने, सालों फिर लेबर कमिश्नर के पास जाएगा, फिर लेबर कोर्ट उसमें फिर बदलाव हो गया.
दुकान एवं स्थापना अधिनियम 1958 में जो संशोधन हुआ उसमें 6-12 बजे रात तक दुकानें खुली रह सकती हैं. लेकिन जिन लोगों से दुकानों में काम कराया जाता है उसमें से कितनों को डबल शिफ्ट या दूसरी शिफ्ट के लिये कामगार रखे जाएंगे उनके श्रम कानूनों के लिये क्या आवाज़ उठाने की गुंजाइश बची है?
पहले प्रावधान थे कि किसी उद्योग में जहां 100 मजदूर हैं उसे बंद करने के लिये इजाज़त लेनी होगी, कामगारों को सुनना होगा लेकिन 1000 दिन खुले रहने यानी लगभग 3 साल काम हुआ तो किसी तरह का कानून लागू नहीं होगा ...
उत्तर प्रदेश में भी कुछ ऐसा ही हुआ
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्री परिषद की बैठक में ''उत्तर प्रदेश चुनिंदा श्रम कानूनों से अस्थाई छूट का अध्यादेश 2020'' को मंजूरी दी गई, ताकि फैक्ट्रियों और उद्योगों को तीन श्रम कानूनों तथा एक अन्य कानून के प्रावधान को छोड़ बाकी सभी श्रम कानूनों से छूट दी जा सके.
महिलाओं और बच्चों से जुड़े श्रम कानून के प्रावधान और कुछ अन्य श्रम कानून लागू रहेंगे. यहां भी अब मजदूरों की शिफ्ट 8 घंटे के बजाए 12 घंटे की होगी.ॉ
पहले ओवरटाइम का पैसा सैलरी के प्रतिघंटे का दोगुना मिलता था अब इसमें सैलरी के ही हिसाब से मिलेगा.
यानी किसी मजूदरी मजदूरी अगर 8 घंटे की 80 रुपये है तो 12 घंटे के हिसाब से 120 रुपये मिलेंगे. इसी अनुपात में अब 12 घंटे की शिफ्ट वाली नौकरी में सैलरी दी जाएगी.
12 घंटे की शिफ्ट में 6 घंटे बाद 30 मिनट का ब्रेक दिया जाएगा.
औद्योगिक विवादों का निपटारा, व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों का स्वास्थ्य व काम करने की स्थिति संबंधित कानून खत्म कर दिए गए हैं.
ट्रेड यूनियनों को मान्यता देने वाला कानून भी अनुबंध श्रमिकों व प्रवासी मजदूरों से जुड़े कानून खत्म, भी समाप्त कर दिए गए हैं.
उद्योगों को अपनी सुविधानुसार शिफ्ट में काम कराने की छूट दी गई है
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