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नजरिया /शौर्यपथ /एक वेबिनार में केरल की एक महिला ने कहा कि उसके रिश्तेदार अमेरिका में रहते हैं। लॉकडाउन के इन दिनों में माता-पिता, दोनों को काम पर जाना पड़ रहा है, जबकि दोनों छोटे बच्चे घर में अकेले रहते हैं। वे भारी परेशानी में हैं कि क्या करें। बच्चों की सुरक्षा की चिंता में काम भी ठीक से नहीं कर पाते हैं। दूसरी रिश्तेदार महिलाओं ने कहा कि अमेरिका के अधिकांश स्थानों पर बच्चों के स्कूल और कॉलेज इस पूरे साल के लिए बंद कर दिए गए हैं। उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि अब नौकरी पर कैसे जाएं। वैसे भी करोड़ों नौकरियां जा चुकीं। हर एक की नौकरी पर अमेरिका में संकट मंडरा रहा है। आज बच्चों के लिए नौकरी छोड़ दें, तो कल मिलना बेहद मुश्किल है। एक नौकरी में खर्चा भी नहीं चल सकता। कल बच्चे बड़े होंगे, तो उनके खर्चे बढ़ेंगे। आज कमाए पैसे कल काम आएंगे। ऐसे में क्या करें? बच्चों को पूरे दिन के लिए अकेला कैसे छोड़ें। वे किसी दुर्घटना या अपराध के शिकार हो जाएं, तो क्या करेंगे?
अमेरिका में इन दिनों बहुतायत में ऐसे बच्चे हैं, जो स्कूल बंद होने के कारण घरों में हैं। स्कूल के अलावा खेल-कूद तथा अन्य गतिविधियों में भी भाग लेने कहीं नहीं जा सकते। अमेरिका में बहुत से माता-पिता चाहते हैं कि स्कूल खुलें और वे बच्चों को वहां भेज सकें।
इन दिनों लॉकडाउन के कारण विमान सेवाएं भी बंद ही हैं, आवाजाही की कोई गुंजाइश नहीं, इसलिए ऐसा भी नहीं हो सकता कि भारत से माता या पिता अपने माता-पिता को बुला लें। वैसे भी भारतीय माता-पिताओं के बारे में विदेश में मशहूर है कि वे अपने बच्चों के बच्चे पालने विदेश आते हैं। ऐसा भी देखा गया है कि अकसर बच्चों को अपने माता-पिता तभी याद आते हैं, जब उन्हें अपने बच्चे पलवाने होते हैं या कोई और काम होता है। लेकिन दादा-दादी या नाना-नानी इसे खुशी-खुशी मान लेते हैं। तीसरी पीढ़ी से उनका लगाव हजार परेशानियों और उपेक्षा के होते हुए भी कम नहीं होता, लेकिन इस दौर की मजबूरी का क्या करें? देश-विदेश में बिखरे हुए ऐसे परिवार परेशान हैं। वह तो भला हो तकनीक का कि बात हो जाती है।
लेकिन अपने देश भारत में क्या हाल है? हाल ही में दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा था कि अभी तो स्कूल खोलने की बात सोची भी नहीं जा सकती। बहुत से स्कूल ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं। बहुतों ने बिना परीक्षा लिए बच्चों को अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया है, लेकिन इस लेखिका ने फेसबुक पर बहुत-सी युवा माताओं की लिखी बातें पढ़ी हैं। वे कह रही हैं कि स्कूल खुल भी जाएं, तो वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगी। एक मां ने लिखा कि अगर बच्चे का एक साल का नुकसान हो भी जाए, तो परवाह नहीं, बच्चे की जान से ज्यादा कीमती कुछ भी नहीं है। बच्चा ठीक रहा, तो पढ़-लिख भी लेगा। एक मां ने तो यह भी लिखा कि अगर बच्चे को घर से पढ़ाने के लिए नौकरी छोड़नी पड़ी, तो वह छोड़ देगी। शायद बच्चों के पिता भी ऐसा ही सोचते होंगे। जब समाज और परिवार में बदलाव हो रहे हैं, तो सभी को थोड़ा बदलना होगा। समय केअनुरूप समझौते करने पडें़गे। आज परिवार में परस्पर एक-दूसरे की ज्यादा चिंता करना जरूरी है और मां-बाप की चिंता ऐसे माहौल में सबसे ज्यादा है।
माता-पिता की चिंता तब और भी जायज हो उठती है, जब बार-बार कहा जा रहा है कि कोरोना की जद में अब बच्चे भी हैं। एक अध्ययन में पिछले दिनों कहा गया था कि नौ साल के बाद बच्चों के लिए कोरोना का खतरा बढ़ जाता है। जबकि अब बता रहे है कि कोई भी इस वायरस के खतरे से बाहर नहीं है। ऐसे में, आखिर कौन माता-पिता होंगें, जो अपने बच्चों की जान खतरे में डालना चाहेंगे। भारत में रहने वाले माता-पिता अब भी अपने बच्चों की सुरक्षा से ज्यादा किसी और बात को नहीं मानते। अपने यहां चूंकि बुजुर्गों के अलावा घर में मदद करने के लिए घरेलू सहायक भी आसानी से मिल जाते हैं, उनका खर्चा भी अमेरिका में मिलने वाले सहायकों के मुकाबले बहुत कम होता है, इसलिए हो सकता है कि कई माता-पिता बच्चों के घर में रहते हुए भी नौकरी पर चले जाएं। अमेरिका हो या भारत, हर जगह समय के साथ तालमेल बिठाना होगा और हम बच्चों के आसपास एक नई तरह की सामाजिकता का विकास देखेंगे।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं) क्षमा शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार
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