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विशेष लेख /शौर्यपथ/
छत्तीसगढ़ के रीति रिवाज,तीज त्यौहार जनमन को प्रकृति,पशु पक्षी से जुड़ने और उनके संरक्षक बनने का संदेश अनादिकाल से देते आ रहे हैं।ऐसा ही एक पर्व "अक्षय तृतीया" हैजिसे छत्तीसगढ़ में अक्ती के नाम से जानते हैं।,इस वर्ष अक्ती 3 मई को है।इस पर्व में मिट्टी के मटके,सुराही दान करने की प्रथा है।इस पर्व में प्यासों के लिए सुराही-मटके दान करने की परम्परा के साथ साथ पक्षियों के लिए सुराही से घोसला बनाने की अभिनव पहल करें।इस पहल से आपकी जिंदगी में खुशनुमा सुबह की शुरुआत अवश्य होगी।
सुराही- मटके केवल पानी भरने के लिए ही नहीं,बल्कि पक्षियों के घोसला बनाने के लिये भी बेहद उपयोगी है।गर्मी बीत जाने के बाद इन्हें फेंके नहीं।इन्हें पेड़ की शाखाओं पर,घरों में मुंडेर पर अथवा अन्य किसी भी सुरक्षित स्थान पर लटका दें। ऐसे लटके हुये सुराही में गौरैया,गिलहरी,उल्लू, नीलकंठ,पहाड़ी मैना,जैसे पक्षी बड़ी सहजता से अपना बसेरा बना लेते हैं।मानव समुदाय का सबसे करीबी पक्षी गौरैय्या को सुराही में घर बनाना विशेष पसंद है।आंगन में फुदकती गौरैया अहसास कराती है कि -"परिंदे जिनके करीब होते हैं,वे बड़े खुशनसीब होते हैं"।
यह सर्वविदित है कि पुराने बृक्षों की संख्या लगातार घटती जा रही है। ऐसे बृक्षों की खोह में बसेरा बनाने वाले प्रजातियों के पक्षियों को विकल्प के रूप में पेड़ पर लटकते सुराही मिल जाते हैं।पेड़ों में लटकाए सुराही में बसेरा बनाकर वे बिना कैद किये आपके आसपास चहकते हुए परिवार के सदस्य बन जाते हैं।
पक्षी मित्र बनने,लुप्त होते पक्षियों को बचाने का उत्तम उपाय यही है कि उन्हें पिजरें में कैद करना तत्काल बंद कर दें।अपने करीब रखने के लिए घर आंगन के पेड़ पौधे,मुंडेर पर सुराही,मटकी बांधने के साथ ही हर सुबह दाना-पानी देना आंरभ करें। इससे बारहों महीना चौबीस घण्टे पक्षियों के कलरव से आपका मन आनंदित होगा।पक्षियों का परिवार आशीष देते हुए कहेगा- समाज उसे ही पूजता है, जो अपने लिए ही नहीं दूसरों के लिए भी जीता है।
अतः धरा को हरा बनाने का संकल्प लेते हुये धरती के आभूषण पशु,पक्षी,पेड़ पौधे की हिफाज़त करें।याद रखें ऐसे सभी कार्य किसी ईबादत से कम नहीं है।
विजय मिश्रा "अमित"
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