February 05, 2025
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नववर्ष चिंतन आलेख *रोते कैलेंडर को हंसाएं*

*विजय मिश्रा 'अमित'*वरिष्ठ हिंदी-लोकरंगकर्मी
       आलेख /शौर्यपथ / नये वर्ष के आगमन की खुशी में पुराने वर्ष की न आखरी रात लोग झूम रहे थे। गांव-शहर, गली में नाच-गाना, खाना-पीना चल रहा था, पर मैं चूंकि अपने नये वर्ष की शुरूआत हिन्दू पंचांग के मुताबिक चैत्र के माह को मानता हूं, अतः इन सबसे दूर था और रोज की तरह बिस्तर पर जल्दी ही लुढ़क गया था, किन्तु नये वर्ष के ढोल ढमाका, हो हल्ला और बीच-बीच में फूटने वाले कान फोड़ पटाखों की आवाज से मेरी नींद उचट गई थी। तभी मेरे कान में किसी के सिसकने की आवाज सुनाई दी। मैं उस दिशा में चल पड़ा जहां से सिसकने की आवाज आ रही थी।
            कुछ कदम आगे जाने के उपरान्त मैंने देखा कि बरान्डे की दीवाल पर कील में टंगा कैलेंडर फड़फड़ाते हुए सिसक रहा है मानो छाती पीट-पीट कर रो रहा हो। मैं उसे देख कर भौंचक रह गया और करीब जाके पूछा- क्यों भाई कैलेंडर, पूरी दुनिया नये वर्ष के आगमन के उल्लास में डूबी हुई है और तुम कलप-कलप कर रो रहे हो। ऐसी क्या पीड़ा तुम्हें हो रही हैं ?
      मेरे इस सवाल को सुन कर कैलेंडर अपने बहते हुए आंसू पोछते हुए बोला-अजीब आदमी हो, क्या तुम्हें मालूम नहीं कि आज मेरी जिंदगी की आखरी रात है। कल मेरी जगह नया कैलेंडर टंग जायेगा और मैं कचरे की तरह फेंक दिया जाउंगा। मुझे कोई याद करने वाला भी नहीं बचेगा।
     अच्छा...... तो तुम्हें इसी बात का दुःख है कि अब तुम्हें कोई पूछेगा नहीं। अरे भाई कैलेंडर तुम्हें तो खुश होना चाहिये क्योंकि कल सुबह नये वर्ष पर तुम्हारें छोटे भाई अर्थात् नये कैलेंडर को तुम्हारी जगह सुशोभित होने का अवसर मिलेगा।
    मेरी यह बात सुन कर कैलेंडर गुस्से में फड़फड़ा उठा और बोला- आदमी की जात सिर्फ अपने स्वार्थ और अपने फायदे को पहले देखते हो तभी मेरी यह बात सुन कर कैलेंडर गुस्से में फड़फड़ा उठा और बोला- आदमी की जात सिर्फ अपने स्वार्थ और अपने फायदे को पहले देखते हो, तभी तो मेरे लिए भी ऐसी घटिया सोच तुम्हारी बन गई हैं। कान खोल करसुनो, मैं इसलिए नहीं रो रहा हूं कि कल मेरी जगह नया कैलेंडर आ जायेगा। मैं तो ये सोच-सोच कर रो रहा हूं कि बारह महीने मैं तुम लोगों को होली, दीपावली, ईद, क्रिसमस जैसे अनेक त्योंहारों की तारीख बताते रहा। ऐसे त्यौहार और विशेष दिनों की सूचना देते आपसी भाईचारा को बढ़ाने, पर्यावरण संरक्षण हेतु पेड़-पौधा लगाने, पानी बचाने, नशापान से दूर रहने का संदेश देता रहा पर तुम लोगों ने मेरी बातों की परवाह नहीं की।
      क्या बात कर रहे हैं कैलेंडर भाई ? मैं कैलेंडर को टोंकते हुए बोला-हम तो आपके बताये त्यौहार के मुताबिक खूब जश्न मनाते रहे। वर्ष भर हमनें अलग-अलग त्यौहारों का मजा लिया। भला हमारे त्यौहार मनाने में तुम्हें क्या कमी, क्या खोट दिखाई दी जो कि इतना गुस्सा कर रहे हो ?
        मेरा यह सवाल सुन कर कैलेंडर दबंग आवाज में बोला- आग लगे तुम लोगों के त्यौहार मनाने के ढंग में। अरे तुम लोग तो बारहों महिना त्यौहारों की आड़ में लड़ते-झगड़ते रहे। तुम्हारा कोई भी त्यौहार बिना नशा, शराबखोरी के बिना पूरा होते नहीं दिखा। इसीलिए मै अपनी जिंदगी को व्यर्थ गया कहते हुए रो रहा हूं। वर्ष भर हरेक दिन की महिमा को बताते-बताते मैं पानी में डूबे मिट्टी के डल्ले की तरह घुलता रहा, पर तुम नहीं सुधरे कुत्ते की पूंछ की टेढ़े के टेढ़े रह गये और आज मेरा अंतिम दिन आ गया।
             कैलेंडर अपने आंख से धार-धार बहते आंसू को पोछने रूका और एक गहरी सांस लेने के बाद फिर गंभीर आवाज में बोला- अरे, मुझे तो मालूम था कि एक जनवरी को मेरा जन्म हुआ और इकतीस दिसम्बर की रात मेरी जिंदगी की आखरी रात होंगी, पर तुम लोगों को तो इस बात का जरा भी ज्ञान नहीं होता कि तुम्हारी जिंदगी का दीपक कब बुझ जायेगा ? इसीलिए समझा रहा हूं कि नये वर्ष में अच्छे-अच्छे काम करना। मैं और मेरा के चक्कर में पड़ने के बजाय हम और हमारे के भाव को लिये हुए प्रेम की डोर में बंध जाना। रूपया-पैसा और पद-प्रतिष्ठा के घमण्ड में पड़े अकड़े मत रहना, नहीं तो जिंदगी के आखिरी दिन कोई नाम लेने वाला भी नहीं बचेगा।
            कैलेंडर की बातें ध्यान से सुनते-सुनते मैंने फिर सवाल किया- अरे भईया कैलेंडर जरा साफ-साफ बताओ कि नये वर्ष में हमें क्या करना चाहिए। मेरे इस सवाल पर शायद कैलेंडर को नई उम्मीद की किरण दिखाई दीं वह थोड़ा सा मुस्काया और बोला-नये वर्ष में अपनी मिट्टी, अपनी भाषा, अपनी संस्कृति की रक्षा का संकल्प लो और ये गांठ मन में बांध लो कि नये वर्ष में नये भारत का सृजन करेंगे, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा से दूर रहेंगे। देश की रक्षा खातिर जो हुए बलिदान उनको नित नमन करेंगे।
          कैलेंडर के ऐसे विचारों को सुनकर मेरे हृदय में उत्साह की नई उमंगे हिलोरे मारने लगी। मैं कैलेंडर को अपने दोनों हाथों से लिपटाते हुए बोला- कैलेंडर भईया, आप भरोसा रखो नये वर्ष के नये कैलेंडर की जिंदगी को हम व्यर्थ जाने नहीं देंगे। हर दिवस, पर्व, उत्सव की महिमा के अनुरूप कार्य करेंगे। मेरे ऐसे विचार को सुन कर कैलेंडर के चेहरे पर खुशी के भाव उभर आये और वह मां की गोद में किलकारी भरते बच्चे की भांति आंखे बंद कर सो गया।

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Last modified on Tuesday, 31 December 2024 15:09

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