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शौर्यपथ / समुद्री तूफान से हुआ नुकसान जितना दुखद है, उतना ही चिंताजनक भी। दुख इसलिए कि भारतीय राज्यों- पश्चिम बंगाल और ओडिशा सहित बांग्लादेश में न केवल 25 से ज्यादा लोग मारे गए हैं, वहां जो माली नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई में कुछ वर्ष लग जाएंगे। कोरोना की वजह से आर्थिक परेशानी झेल रही एक विशाल आबादी ने अम्फान को अपने सीने पर झेला है। इस पूरी आबादी के साथ-साथ उसे पहुंचे पूरे नुकसान का अनुमान लगाना जरूरी है। पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों को दोहरी मदद की जरूरत पड़ेगी और इसके लिए केंद्र सरकार को कमर कस लेनी चाहिए। तूफान और तेज बारिश से मची तबाही की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उस समय अपने दफ्तर में मौजूद थीं और उन्हें ‘सर्वनाश’ व ‘तांडव’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ा। मुख्यमंत्री के ऐसे उद्गार से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में कुछ पीढ़ियां ऐसी हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी में ऐसी त्रासदी का सामना पहले कभी नहीं किया। असंख्य गरीबों और आम लोगों के आशियाने तबाह हो गए हैं। उन सभी को हरसंभव मदद और मुआवजे की जरूरत पडे़गी। इतनी बड़ी संख्या में पेड़ गिरे हैं, बिजली के खंभे टूटे हैं, टीन, छप्पर, बैनर, होर्डिंग उड़े हैं कि राज्य सरकारों ने प्रभावित इलाकों में लोगों को घर के अंदर ही रहने को कहा है। केवल तटीय इलाकों में ही नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल और ओडिशा के भीतरी इलाकों में भी अम्फान से मची तबाही का मंजर है।
पश्चिम बंगाल के बुजुर्ग 1970 में आए उस भोला तूफान को याद कर रहे हैं, जिसमें पांच लाख से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी थी और 1991 में आए गोर्की तूफान को भी याद किया जा रहा है, जो अपने साथ 1.39 लाख लोगों को ले गया था। शुक्र है, समय पर जारी हुई चेतावनी ने लोगों की जान की रक्षा की और सौभाग्य है, यह तूफान अपनी रफ्तार थोड़ी कम करते हुए तट पर पहुंचा। एक और अच्छी बात है कि यह भारत में पश्चिम या उत्तर की ओर आगे नहीं बढ़ा और इसका दबाव क्षेत्र बांग्लादेश की ओर मुड़ते हुए लगभग प्रभावहीन हो गया।
तूफान से प्रभावित हुए लोगों के प्रति देश में संवेदनाओं का ज्वार स्वाभाविक है, लेकिन हमें इन तूफानों से स्थाई बचाव के बारे में भी सोचना होगा। अव्वल तो तटीय जिलों में छप्पर या कच्चे मकानों पर पाबंदी समय की मांग है। गरीबों के लिए पक्के मकान बनाने की जो योजनाएं हैं, उन्हें तटीय इलाकों में युद्ध स्तर पर चलाना चाहिए। केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकारों के पास भी यह एक मौका है कि वे समुद्री तट से लेकर अंदर 200-300 किलोमीटर तक कच्चे घरों, भवनों, दुकानों को फिर न खड़ा होने दें। हम ऐसे दौर में हैं, जब समुद्री जल का तापमान बढ़ रहा है और हर दो या तीन वर्ष में एक बडे़ तूफान की आशंका बनेगी। ऐसे में, यह जरूरी है कि गरीबों और जरूरतमंदों तक पक्की या स्थाई सहायता पहुंचे, उन्हें फिर विस्थापित न होना पड़े। ऐसे निर्माणों, बिजली के खंभों और पेड़ों पर भी निगाह रखनी पडे़गी, जो ऐसे तूफानों के समय तबाही का सामान बनते हैं। दिल्ली, कोलकाता से सुदूर इन इलाकों तक प्रशासकों, शासकों को पहले की तुलना में और उदार हो जाना चाहिए, तभी वे पीड़ितों की पीड़ा दूर कर पाएंगे।
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