November 22, 2024
Hindi Hindi

चीन की सीनाजोरी

          मेलबॉक्स / शौर्यपथ /चीन बदमाशी कर रहा है। पूरी दुनिया को कोरोना संकट में डालने के बाद भी वह आंखें तरेर रहा है। अपने ऊपर लगे आरोपों से वह नाखुश है। चीन के विदेश मंत्री का तो यह भी कहना है कि मुआवजे की मांग करने वाले देश दिवास्वप्न देख रहे हैं, अर्थात चीन का दुस्साहस इस कदर बढ़ गया है कि वह माफी मांगने की बजाय दूसरे देशों को धमका रहा है। सच यही है कि चीन ने कोरोना वायरस के बारे में दुनिया को बताना उचित नहीं समझा, जिसके कारण इसका फैलाव तेजी से हुआ। इसका प्रकोप सबसे ज्यादा अमेरिका में हुआ है, जहां एक लाख से अधिक लोग इसका शिकार बन चुके हैं। फिर भी, चीन की ऐठन कम नहीं हुई है। दुखद यह भी है कि डब्ल्यूएचओ परोक्ष रूप से उसी का बचाव कर रहा है।
नीरज कुमार पाठक, नोएडा

बनाना होगा दबाव
पूरे विश्व में चीन अपनी गुप्त रणनीति, गहरी साजिश और योजनाओं के लिए जाना जाता है। कभी वह कोरोना वायरस को एक जैविक हथियार के रूप में प्रयोग करता है, तो कभी सीमा-विवाद को बढ़ाकर पड़ोसी देशों पर दबाव बनाता है। कोरोना आपातकाल के इस दौर में भी वह लद्दाख, नेपाल, ताईवान, हांगकांग या भारत की सीमा में घुसपैठ करके अपना वर्चस्व बनाना चाहता है। वह यह जताना चाहता है कि उसकी सीमाओं का कोई अंत नहीं है। अपनी आर्थिक ताकत बढ़ाने के लिए ही उसने कोरोना वायरस को जन्म दिया, ताकि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं चौपट हो जाएं और उसका साम्राज्य बन जाए। निश्चित रूप से चीन दुनिया के साथ कॉकटेल गेम खेल रहा है, जिसे तभी रोका जा सकता है, जब पूरी दुनिया एकजुट होकर उस पर दबाव बनाएगी। पूरे विश्व को चीन से सजग रहना होगा।
संजय कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड

अव्यवस्था भरी यात्रा
रेल व हवाई यात्राओं के दौरान सामने आ रही अव्यवस्थाओं को देखते हुए भी संबंधित मंत्रियों का ध्यान समस्या के समाधान की तरफ कम है और विरोधियों को नीचा दिखाने में ज्यादा है। जब एक श्रमिक ट्रेन दो दिन की बजाय नौ दिनों में अपने गंतव्य पर पहुंचती है और ऐसी यात्राओं में कई श्रमिक अपनी जान गंवा देते हैं, तो इसको यात्रा नहीं, यातना ही कहा जाएगा। फिर भी मंत्रीगण ऐसा भाव बनाते हैं, मानो उनकी सरकार के कारण ही रेल चल रही है, वरना नहीं चलती। लॉकडाउन से पहले जहां हजारों ट्रेनें चलने के बाद भी किसी ट्रेन के अपने गंतव्य से भटकने का समाचार नहीं आया, वहीं अब कई ट्रेनें गलत जगहों पर पहुंच रही हैं। इससे भयानक अराजकता भला और क्या होगी?
जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर

स्वास्थ्य मद में बजट बढ़े
वर्तमान महामारी ने हमारी स्वास्थ्य नीति की अक्षमता को उजागर किया है। जहां सरकारी संस्थाएं अपनी पूरी क्षमता से महामारी के खिलाफ लड़ रही हैं, वहीं निजी क्षेत्र भारी-भरकम खर्चों के कारण आम आदमी की पहुंच से लगभग बाहर हो गए हैं। ऐसे में, स्वास्थ्य क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण की मांग स्वाभाविक है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के भारी-भरकम खर्च उठाने के कारण ही प्रतिवर्ष करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। ऐसे में, सरकार द्वारा सभी तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाए बिना गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों की सफलता संभव नहीं है। दिक्कत यह है कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी का महज 1.2 फीसदी खर्च किया जाता है। बेशक, विशाल जनसंख्या और सरकार के सीमित संसाधनों को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है, लेकिन सार्वजनिक खर्च में वृद्धि करना सबसे जरूरी है, ताकि सभी लोगों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मिल सकें।
वीरेंद्र बहादुर पाण्डेय, गोंडा

Rate this item
(0 votes)

Leave a comment

Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.

हमारा शौर्य

हमारे बारे मे

whatsapp-image-2020-06-03-at-11.08.16-pm.jpeg
 
CHIEF EDITOR -  SHARAD PANSARI
CONTECT NO.  -  8962936808
EMAIL ID         -  shouryapath12@gmail.com
Address           -  SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)