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शौर्यपथ लेख ( डॉ. सिद्धार्थ शर्मा ) /बाबा रामदेव द्वारा कोरोना के उपचार के दावे के साथ एक आयुर्वेदिक दवा बाजार में उछाल दी गयी. उस दवा के बाजार में आते ही रामदेव के समर्थकों और विरोधियों ने उस दवा के विरोध और समर्थन में गजब हंगामा और हुड़दंग शुरू कर दिया है. दवा के पक्ष और विपक्ष में हो रहा यह हंगामा किसी अंधेर नगरी का आभास करा रहा है.
विरोधियों की बात बाद में पहले बात समर्थकों के हंगामे और हुड़दंग की... इस बार यही वर्ग ज्यादा दोषी दिख रहा है.
ध्यान रहे कि एक अमेरिकी कम्पनी ने 6 जून तक कोरोना के उपचार की वैक्सीन की 20 लाख खुराक बना कर रख ली है और वैक्सीन का उत्पादन युद्ध स्तर पर रात दिन लगातार किया जा रहा है. लेकिन अमेरिका में अब तक हो चुकी एक लाख से अधिक मौतों के बावजूद वह वैक्सीन बाजार में नहीं उतारी गयी है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कम्पनी की उस वैक्सीन का त्रिस्तरीय परीक्षण पूर्णतया सफल रहा है किन्तु वैक्सीन का अन्तिम परीक्षण अभी चल रहा है. यह प्रक्रिया सम्भवतः अगस्त/सितम्बर के अन्त में पूर्ण होगी. क्योंकि कम्पनी अपनी वैक्सीन की सफ़लता के प्रति पूर्णतया आश्वस्त है इसलिए उसने भारी आर्थिक जोखिम उठा कर उस वैक्सीन का उत्पादन कर के स्टॉक जमा करना प्रारम्भ कर दिया है. क्योंकि वैक्सीन उत्पादन की प्रक्रिया बहुत जटिल और धीमी होती है इसलिए कम्पनी ने यह आर्थिक जोखिम उठाया है. अगर अपने अन्तिम परीक्षण में वह वैक्सीन सफल हुई तो उसी दिन से वह वैक्सीन बाजार में उपलब्ध हो जाएगी और यदि अन्तिम परीक्षण में वह वैक्सीन सफल नहीं हुई तो सारा तैयार स्टॉक नष्ट कर दिया जाएगा. यह होती है एक सभ्य शिक्षित जागरूक समाज की सोच.
अब बात बाबा रामदेव की... ज्ञात रहे कि आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने और बेंचने का धंधा बाबा रामदेव द्वारा पिछले लगभग डेढ़ दशक से किया जा रहा है. अतः हमको आपको, किसी आम आदमी को भले ही ज्ञात नहीं हो लेकिन बाबा रामदेव को यह भलीभांति ज्ञात है कि किसी भी रोग के उपचार की दवा को बाजार में उतारने से पहले कुछ परीक्षणों की औपचारिकताओं की पूर्ति करना अनिवार्य है. अतः इस बार उन औपचारिकताओं की पूर्ति के बिना बाबा रामदेव अपनी दवा लेकर बाजार में क्यों कूद गए.? ध्यान रहे कि केन्द्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने बाबा रामदेव की दवा के गुण-दोष, गुणवत्ता पर कोई टिप्पणी नहीं की है इसके बजाय उन औपचारिकताओं की पूर्ति नहीं किए जाने पर अपनी आपत्तियां दर्ज करायी हैं. आयुष मंत्रालय की वह आपत्तियां शत प्रतिशत सही हैं. उन आपत्तियों को बाबा रामदेव भी नकार नहीं पा रहे हैं. उन आपत्तियों का तार्किक तथ्यात्मक उत्तर देने के बजाय बातों के बताशे फोड़ रहे हैं. ध्यान रहे कि देश में आयुर्वेदिक दवाएं बनाने वाली वैद्यनाथ डाबर, ऊंझा ,झंडू सरीखी बहुत पुरानी और बहुत बड़ी लगभग दर्जन भर कम्पनियां हैं. इन. कम्पनियों की एक साख है देश में. मंझोले और छोटे स्तर की हज़ारों आयुर्वेदिक कम्पनियां भी देश में हैं. एकबार बाबा रामदेव को उन अनिवार्य परीक्षणों की औपचारिकताओं की पूर्ति से छूट देने का अर्थ उन सभी कम्पनियों को ऐसा करने की खुली छूट दे देना होगा. इससे जो अराजकता फैलेगी वह बहुत भयानक होगी.
रही बात स्वदेशी की तो यह याद रखिए कि कोरोना के उपचार के लिए जिस ग्लेनमार्क कम्पनी की दवा सामने आयी है वो ग्लेनमार्क शत प्रतिशत भारतीय कम्पनी ही है, जो आज दुनिया के कई देशों में व्यापार कर रही है.
अतः बाबा रामदेव की दवा के पक्ष में लाठी भांज रहे समर्थक यह ध्यान रखें कि परीक्षण की औपचारिकताओं की पूर्ति के बिना दवा को बाजार में उतार देना बहुत घातक होगा. जो लोग यह तर्क दे रहे हैं कि वो दवा कोई ज़हर नहीं है तो वो यह भी समझ लें कि दवा पर विश्वास कर 15 दिन खाने वाले व्यक्ति पर यदि दवा प्रभाव नहीं डालेगी तो तब तक बहुत देर हो चुकेगी. अतः परीक्षण की औपचारिकताएं अत्यन्त आवश्यक हैं. या फिर बाबा रामदेव वह दावा वापस लें कि यह कोरोना की दवा है उसके पश्चात उसे बेचे. देश को ऐसी अंधेर नगरी ना बनाये जहां ना खाता ना बही... जो रामदेव कहे वही सही.
दवा का विरोध कर रहा वर्ग वो है जिसे भारतीय संस्कृति सभ्यता की कोख से उपजी किसी भी विद्या और विधा से ही घृणा है. उसकी यह घृणा इतनी पाशविक हो चुकी है कि उस वर्ग को अब किसी दवा का भी विरोध करने में कोई हिचक नहीं है. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा. इससे पूर्व अतीत में भी बाबा रामदेव की दवाओं और यहां तक कि योग विद्या का तीव्र विरोध भी यह वर्ग करता रहा है. अतः इसबार भी उसका विरोध उसकी पाशविक प्रवृति और प्रकृति के ही अनुरूप है.
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