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शौर्य की बात । 8 जुलाई से तबियत कुछ ठीक नही लग रही थी ऐसे लग रहा जिंदगी थम जाएगी । 9 जुलाई को तबियत ज्यादा बिगड़ी और एम्स में पहुंच गए इलाज शुरू साथ ही डर व घबराहट शुरू किया होगा कैसे होगा । इसी उधेड़बुन में डॉ ने कहा दिया 48 घण्टे महत्त्वपूर्ण है । अभी तक ये शब्द फिल्मों में सुना अब जब जिंदगी में सामना हुआ तो मेरे साथ ही । खैर मुझे तो दोनों फैसले में खुशी थी । और मन मे ये बात आ गयी या तो शौर्य के पास या सिद्धि के पास । मैं तो शौर्य के पास रहूंगा या सिद्धि के पास दोनो हालातो में अपने किसी एक बच्चे के साथ रहूंगा लेकिन मेरी दोस्त, मेरी साथी , मेरी हमसफ़र , मेरी माँ , मेरी बहन सभी का रूप निभाने वाली रत्ना का क्या होगा ऐसा अन्याय क्यो यही सब सोंचते हुए 48 घण्टे बीत गए और ईश्वर का फैसला हुआ सिद्धि के पास रत्ना के पास ही रहना है शौर्य से मिलने में और वक्त है । पर जिंदगी की सच्चाई वार्ड में ऐसे रूप में नजर आई जिससे फैसला करना बहुत आसान है कि साथी बिना जिंदगी अधूरी बेमानी , दुनिया की सारी दौलत हो या तकलीफ अगर साथी नही तो कुछ भी नही । हमसफ़र नही तो सफर का कोई मतलब नही । मेरे बेड के सामने दो बुजुर्ग एक सी बीमारी से ग्रस्त है दोनो बुजुर्ग की एक एक औलाद बेटे के रूप में है एक बुजुर्ग के बेटे को चिंता नही की उसके पिता की हालत कैसी है बुजुर्ग की हमसफ़र दुखी है और पति की सेवा कर रही । दूसरे बुजुर्ग का बेटा साथ है पूरी तरह मददगार है किंतु उनकी हमसफर का भी दुख के कारण बुरा हाल । दोनो के दुख में रत्तीभर भी फर्क नही दिखा इतने में मेरी रत्ना आई नजरे चार हुई और मन ही मन कहा अब अगर शौर्य से मिलने जाएंगे तो दोनो साथ जाएंगे . शौर्य हम दोनों का बेटा है ....
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