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शौर्यपथ लेख ( शरद पंसारी )/ कोरोना एक ऐसी महामारी बनकर दुनिया के सामने आयी जिसे सदियों तक याद रखा जायेगा . एक छोटे से शहर से जन्म कोरोना आज पूरी दुनिया पर राज कर रहा है . दुनिया में क्षेत्रफल की तुलना के हिसाब से सर्वाधिक जनसँख्या वाला देश भारत ही है . भारत में कहने को कोरोना का आगाज जनवरी माह के अंत में ही हो गया था किन्तु तब संख्या ऊँगली पर गिनी जा सकती थी . आज देश में कोरोना मरीज संक्रमितो की संख्या लाखो में है देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट हो चुकी है और ऐसी हालत में अर्थव्यवस्था सुधारने की जिम्मेदारी देश के वित्त मंत्री की होती है किन्तु जिस तरह प्याज के दाम बढ़ने पर वित्त मंत्री ने कह दिया था कि वो तो प्याज खाती ही नहीं है . मतलब वो अगर प्याज ना खाए तो क्या आम इंसान भी प्याज का सेवन छोड़ दे . तब क्या प्याज के दाम बढ़ने से रोकने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं रही . ऐसे ही ब्यान वर्तमान में वित्त मंत्री ने दे दिया कि कोरोना का प्रकोप ईश्वर की देन है मतलब सरकार अब कुछ नहीं कर सकती जब सरकार कुछ कर नहीं सकती तो फिर सत्ता में क्यों है . सत्ता भी त्याग दे इस्श्वर सब देख लेगा . तिरुमाला मंदिर के वे पुजारी जो सालो से भगवन की सेवा कर रहे है और कोरोना संक्रमित होने के बाद भी ईश्वर को दोष नहीं दिए फिर प्रभु राम की तथाकथित अनुयायी ये कैसे कह सकते है कि महामारी में उनका कोई दोष नहीं . फ़रवरी में देश के एक बड़े नेता ने सरकार से कहा था कि अगर जल्द ही कोई सार्थक कदम नहीं उठाया जाएगा तो परिणाम भयंकर होंगे किन्तु तब भी सत्ता में बैठे जिम्मेदार इस बात को मजाक में लिए और हल्लो ट्रम्प , सत्ता परिवर्तन का खेल चलता रहा फिर एक दिन अचानक बिना किसी तैयारी के बिना किसी राज्य सरकार को सूचित किया ये फैसला आ गया कि देश लॉक डाउन में जायेगा और जो जहां है वही रहेगा . तैयारी के नाम पर खूब ताली बजी थाली बजी ईश्वर को प्रसन्न किया गया किन्तु क्या हुआ भुखमरी बढ़ी , बेरोजगारी बढ़ी , अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी इन सबके बीच अपने गृह ग्राम जाते हुए हजारो मौत के आगोश में समा गए , इधर संक्रमण का विस्तार होता रहा उधर संक्रमण का कारण एक समुदाय विशेष को दिया जाने लगा जिस पर बाद में कोर्ट की फटकार भी मिली किन्तु इसके बाद भी माहौल कोरोना का नहीं बना राफेल का स्वगत हुआ , राम मंदिर की चर्चा हुई ,20 लाख हजार करोड़ से अर्थव्यवस्था पत्री पर उतारने का प्रचार हुआ जब सब खत्म हो गया और स्थिति बिगड़ने लगी तो देश का मुख्य मुद्दा सुशांत का हत्यारा कौन पर टिक गया . सुशांत की आत्महत्या से सभी दुखी है किन्तु क्या सिर्फ सुशांत की मौत हुई क्या उन हजारो लोगो की मौत जो सफ़र करते हुई , जो कोरोना संक्रमण से हुई , जो भुखमरी से हुई , जो दंगे से हुई की कोई कीमत नहीं . क्या उनका परिवार नहीं , बेरोजगारी पर चर्चा , व्यापार पर चर्चा , स्वास्थ्य पर चर्चा से ज्यादा जरुरी लगा विकाश दुबे कैसे मरा उसका एनकाउन्टर कैसे हुई , कितना दुर्दांत था . वाह क्या बात चली किन्तु इन सब बातो में उनकी बात नहीं चली जो रोजगार हीन हो गए उनकी बात नहीं चली जो भुखमरी में जी रहे है उनकी बात नहीं चली जो कोरोना काल में ड्यूटी करते हुए मौत के आगोश में चले गए .
२० लाख हजार करोड़ तो पता नहीं कहा गए किसे मिले और किसे मिलेंगे किन्तु ५ किलो चलावल महिना देकर वाह वही का खेल चलता रहा , पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाकर देशभक्ति का परिचय दिया जाने लगा , तरह तरह के फोटो खिंचवाकर देश को उल्लू बनाने का खेल चलता रहा बस नहीं चला तो स्वास्थ्य की सेवा को कैसे बेहतर करे , रोजगार के लिए क्या कदम उठाये , शिक्षा के लिए क्या करे , भुखमरी से कैसे छुटकारा पाए . माना ऐसी महामारी १०० साल बाद आयी और पूरी दुनिया इसकी चपेट में है किन्तु जिस तरह से भारत में कोरोना संक्रमण तेजी से फ़ैल रहा है और बेकाबू होते जा रहा है ऐसे समय में सरकार के वित्त मंत्री जिसके एक एक फैसले से देश की व्यवस्था उपर नीचे होती है एक सर्वोच्च पद पर बैठकर इस तरह भगवान् को दोष देना कहा तक सही है क्या भगवान् अपनी औलाद को कभी तकलीफ दे सकता है जिन्दगी और मौत तो ईश्वर के हाँथ में है किन्तु बेहतर जिन्दगी देने का कार्य सुशासन का कार्य तो सत्ता में बैठे लोगो को ही करना है . सवाल तो उनसे ही पूछे जायेंगे जिनके पास सत्ता की शक्ति हो . जिनके पास फैसले लेने की ताकत नहीं हो उनसे कैसे सवाल करे . क्या देश में बेरोजगारी , महंगाई , स्वास्थ्य , शिक्षा , भुखमरी से निजात के लिए कोई कदम उठाएगी या अब सब भगवान् भरोसे ही चलेगा अगर ऐसा है तो ये लॉक डाउन - अनलाक का खेल किस लिए छोड़ दो भगवान् भरोसे जिसको जो करना हो वो करे जिसको जैसे जीना हो जिए क्या जरुरत कानून का , क्या जरुरत शासन का और क्या जरुरत सत्ता का जब सब भगवान् के ऊपर है तो भगवान् ही सब संभालेगा और बिगाड़ेगा .( लेखक के निजी विचार )
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