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विचार : भारत अपने आजादी का अमृत काल मना रहा है भारत वर्तमान समय में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र के रूप में भारत की पहचान है . लोकतंत्र जहां आम जनता की चुनी हुई सरकार होती है जहाँ न्यायपालिका का अपना महत्तव है, कार्यपालिका की जिम्मेदारी होती है , प्रशासनिक व्यवस्था का अपना एक अलग स्थान है , चुने हुए जनप्रतिनिधियों की अलग गरिमा होती है . आज भारत के लिए बड़ा महत्तवपूर्ण दिन है आज आजादी के अमृत काल में भारत अपने नए संसद भवन में प्रवेश कर रहा है . यह गौरव की बात है . नए संसद भवन की स्थापना नए भारत की दिशा में एक महत्तवपूर्ण कदम है . नए भारत के उदय पर पूरी दुनिया की निगाहें है किन्तु उसके साथ ही कई प्रश्न है जो मन में पीड़ा को भी जन्म दे रहे है . नव निर्माण की इस दिशा में क्या लोकतंत्र मजबूत हो रहा है या राजतन्त्र की ओर अग्रसर कई सवाल है जिनका जवाब किसी के पास नहीं . पिछले कुछ सालो में अगर देखा जाए तो कई बार जनता की भावनाओं को कुचला गया और जनता की भावनाओं को कुचलने का कार्य किसी और ने नहीं जनता के उन प्रतिनिधियों ने किया जिन्हें जनता ने ही चुना .
आम जनता के मताधिकार को कई बार कुचला गया ....
तात्पर्य यह है कि जनता की भावनाओ को दरकिनार कर चुने हुए जनप्रतिनिधि अपने हित की ओर कदम बढ़ने लगे . मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र , मेघालय , गोवा , दिल्ली , बिहार जैसे कई राज्य है जहां आमजनता कि भावनाओं को दरकिनार किया गया . महाराष्ट्र की बात ले तो महाराष्ट्र में शिवसेना बड़ी पार्टी बनकर उभरी और त्रिशंकु विधानसभा के आसार बन गए तब शिवसेना / एनसीपी/कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई यहाँ शिवसेना ने अपने पुराने राजनैतिक साथी को छोड़कर नए दलों के साथ गंठबंधन कर सरकार बनाई महाराष्ट्र की जनता ने शिव सेना पर ज्यादा भरोसा किया किन्तु बड़ा पद किसे की मंशा ने आम जनता के सोंच को बदल दिया और महा अघाड़ी के नेत्रित्व में सरकार बनी किन्तु क्या हुआ जब से सरकार बनी तब से ही इसे तोड़ने की लगातार कोशिशे जारी रही शायद यही कारण रहा कि कभी अधनगे कपड़ो में नशे के आगोश में पार्टियों में शिरकत करने वाली अभिनेत्री के मामले को इतना तुल दिया गया और ऐसे प्रचारित किया गया जैसे कि उसके साथ कोई बड़ा जुर्म हो गया हो और वह अबला अकेले सबला बनकर जंग लड़ रही हो यहाँ तक की केन्द्रीय एजेंसियों द्वारा उच्च श्रेणी की सुरक्षा भी दे दी गए राज्यपाल/केन्द्रीय मंत्रियो ने मुलाकाते शुरू कर दी तब यह कहा जाने लगा कि नारी के सम्मान के लिए सदैव तत्पर रहा जाएगा अच्छी बात भी है ऐसा होना चाहिए किन्तु यही सोंच अब क्यों नजर नहीं आ रही जब भारत के लिए कई अंतरराष्ट्रिय पदक ला कर विदेशो में देश का मान बढाने वाले महिला रेसलर आज हड़ताल पर है उनकी कोई क्यों नहीं सुन रहा क्योकि उनके साथ देने से खुद के सरकार के सदस्यों पर ही ऊँगली उठ रही . अब कहा गया नारी सम्मान जिस पर सब मौन यहाँ तक की महिला अभिनेत्री के विवाद में सरकार तक हिल गयी और महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन हो गया पर जनता की सोंच और मताधिकार का क्या हुआ कहा बनी उनके मन की चुनी हुई सरकार .ऐसा ही मध्यप्रदेश की बात ले तो मध्यप्रदेश में आम जनता ने बहुमत कांग्रेस को दिया किन्तु सरकार चलना तो दूर रेंगने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा आखिर में सिंधिया ने अपने राजनैतिक फायदे को देखते हुए भाजपा का दामन थाम लिया और शिवराज चौहान की वह बात सही साबित हुई जब उन्होंने मुख्यमंत्री आवास छोड़ते समय कहा था कि छह महीने में वापस आ जायेंगे आवास में . यहाँ भी जनता की भावनाए कुचली गयी कारण सिंधिया रहे और रही उनकी महत्तवकाक्षा . दिल्ली की बात करे तो सरकार तो केजरीवाल की किन्तु बड़े फैसले लेने का कोई अधिकार नहीं अध्यादेश इसका सबसे बड़ा उदहारण जिससे न्यायपालिका के आदेश की भी महत्ता पर सवाल उठा गए . बिहार की बात करे तो यहाँ जनता ने नितीश सरकार पर भरोसा जताया और भाजपा गठबंधन की सरकार को फिर बहुमत दिया किन्तु क्या हुआ रातो रात मतलब के लिए खुर्सी के लिए पलटने में माहिर नितीश कुमार ने फिर से वही रास्ता अपनाया और जिस तरह से भाजपा के समर्थन में सरकार बनाई एक बार फिर लालू यादव की पार्टी के सहयोग से सरकार बना ली यहाँ भी जनता सिर्फ देखती रही . कर्णाटक में भी सत्ता परिवर्तन का खेल कई बार हो चुका है . ऐसे में जनता के मत सिर्फ दिखावा मात्र ही रह गए है सरकार किसे बनानी और पद पर किसे कब किसके साथ बीतना यह जनप्रतिनिधि ही कर रहे जनता की भावनाए तो अब कही नजर नहीं आ रही क्या यही लोकतंत्र है ...
2014 के बाद बदली भारत की तस्वीर ...
इन दिनों एक ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है कि भारत में जो भी कार्य हुए 2014 के बाद हुए 2014 के पहले भारत में कुछ भी नहीं था सब निर्माण और उन्नति 2014 के बाद हुई तब यह क्यों भूल जाते है कि 2014 के पहले इसी भारत में निवास करते हुए मजबूत न्यायपालिका ,कार्यपालिका के सहारे ही आज यह स्थिति हुई है .2014 के पहले सर्वोच्च पदों पर बैठे राजनेताओ का अपमान जायज था आज देश की आन के साथ जोड़ा जाने लगा जो हाँ में हाँ मिलाये वो देशभक्त जो ना मिलाये वो देश द्रोही क्या अभिव्यक्ति की आजादी यही है . क्या इसे ही लोकतंत्र कहते है जहा राजा के सुर में सुर मिलाया जाता है जिसे किसी की सुनना नहीं सिर्फ अपनी ही कहना यह परता राजतन्त्र में होती थी जहां सिर्फ राजा की बात ही सही होती थी अब लोकतंत्र कहा है ....
कौन है भारत का राजा ....
राजतंत्र में एक राजा होता था जो हर कार्य का श्रेय स्वयं लेता था अगर कुछ गलत भी करे तो चाटुकारों की फौज तैनात रहती थी राजा की बात को सही साबित करने के लिए राजतन्त्र में राजा सिर्फ अपनी कहता किसी सवालों का जवाब देना राजा के लिए जरुरी नहीं होता क्या आज भी ऐसी ही स्थिति है कुछ क्षण ऐसे भी आये है जो यह सोंचने पर मजबूर करते है नोटबंदी का मामला ही देखे तो कालाधन वापसी की बात हुई थी पर आज नोटबंदी के सालो बाद भी यह ज्ञात नहीं हुआ कि कितना कालाधन वापस आया यह भी ज्ञात नहीं हुआ कि इस कालेधन के प्रकरण में कितने लोग घेरे में आये , पुलवामा की बात करे तो देश में इतने बड़े कांड के बाद भी अभी तक इस विषय पर और इसके जाँच पर कोई नतीजे वाली पहल नहीं हुई वही पूर्व राज्यपाल के आरोपों पर भी तथ्यात्मक जवाब नहीं मिलना भी लोकतान्त्रिक देश में आम जनता के साथ एक धोखा ही प्रतीत हो रहा है . जहाँ एक ओर मोदी जाति को लेकर एक महीने में ही सुनवाई पूरी हो गयी और सजा भी हो गयी वही दिल्ली के जंतर मंतर पर देश का मान विदेशो में बढाने वाले खिलाडी अभी भी न्याय की आस में बैठे है .
चाटुकार मिडिया का भी अहम् हिस्सा लोकतंत्र को कुचलने में ....
देश में इनदिनों चाटुकार मिडिया चेनल की भरमार है जो सत्य की जगह अपनी ही धुन में एक तरफ़ा प्रचार में लगे है . जिस तरह महिला अभिनेत्री पर अत्याचार की बात पर 24 घंटे आवाज़ बुलंद करने वाली मिडिया अब महंगाई पर बात नहीं करती रोजगार की बात पर मौन , सरकार के कार्यो पर जवाब विपक्ष से मांगती कार्य न करने पर आरोप विपक्ष पर लगाती . पत्रकार का धर्म होता है कि सरकार के कामो की /कमियों की बात करे किन्तु वर्तमान परिदृश्य में देखा जा रहा है कि काम करे तो सरकार की सफलता और काम ना करे तो विपक्ष की आलोचना जबकि फैसले लेने का सम्पूर्ण अधिकार सत्ता के पास फिर भी आरोप विपक्ष पर जिस प्रदेश में गैर भाजपा सरकार वो सरकार देश द्रोही . सभी को याद होगा कि किस तरह कुछ चेनल के चाटुकार पत्रकार एक तरफ तो देश के प्रधान मंत्री के बारे में टिपण्णी को देश की आन के साथ जोड़ते हुए दिखते है वही प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बारे में खुले आम अनगर्ल बाते करते हुए अपमान जनक टिपण्णी करने से भी बाज नहीं आते . देश का मुखिया हो या प्रदेश का मुखिया दोनों ही लोकतंत्र में देश व प्रदेश में प्रमुख होते है दोनों का ही सम्मान होना चाहिए किन्तु अक्सर यह देखा गया है कि इसमें भी भेदभाव की झलक देखने को मिल जाति है . हास्यपद खबर भी सरकार के पक्ष में चलाने वाली घटनाएं बहुत हुई सभी ने देखा है कि जब देश में नोटबंदी के बाद 2000 का नोट आया तो कैसे कई मिडिया चेनल्स ने इसमें नेनो चिप की बात को प्रमुखता से उठाया और सरकार के कदम की सराहना की अब जब 2000 के नोट को एक बार फिर बंद करने का आदेश जारी हुआ तो नेनो चिप की प्रशंशा करने वाले मौन है क्या आम जनता की भावनाओं से खेलने का अधिकार मिल गया चाटुकार पत्रकारों को जो अपनी जिम्मेदारियों को भी दफ़न कर देते है . ये सत्य है कि सत्ताधारी के पक्ष की बाते वर्तमान समय में जरुरत बन जाती है किन्तु क्या उनकी कमजोरियों को उजागर कर समाज हित में कार्य नहीं किया जा सकता . अगर कमजोरियों को उजागर किया जाता तो हो सकता है उसमे सुधार हो किन्तु यहाँ गलत कार्यो को भी सही करार देने की प्रथा क्या आने वाले समय में मजबूत भारत की दिशा में रुकावट नहीं ...
ईडी की कार्यवाही प्रश्नीय और एक अच्छे प्रथा का उदय ....
आज जिस तरह प्रवर्तन निदेशल कार्य कर रहा है वह सराहनीय है आज भले ही ईडी ने विगत 9 सालो में 95 % कार्यवाही विपक्ष पार्टियों के नेताओं पर की है किन्तु इस प्रथा से यह तो उम्मीद जगी है कि सत्ता परिवर्तन की दिशा में सत्ताधारी भी ऐसे ही कार्यवाही की दिशा में आगे बढेगा . आज कोई भी यह नहीं कह सकता कि फला राजनायक ने कोई घोटाला ना किया हो परोक्ष अपरोक्ष रूप से सभी शामिल रहते है किन्तु सत्ताधारी की ताकत के सामने कार्यवाही विपक्ष पर ही होती है जिसके पास राजदंड वही आदेश जारी करेगा ऐसी प्रथा से आने वाले समय में सभी का नंबर लगेगा जो भ्रष्टाचार में लिप्त होंगे कम से कम तब राजनेताओ को इस बात का डर तो रहेगा कि अगर भ्रष्टाचार हुआ तो आज नहीं तो कल उनका भी नंबर आया . यह भारत देश है यहाँ ना तो पंडित नेहरु का हमेशा शासन रहा ना इंदिरा का रहा और ना मोदी का रहेगा शासन की बागडोर परिवर्तित होगी ही क्योकि किसी ने भी अमृत नहीं पिया आज नहीं तो कल ईश्वर के आगे सभी को नतमस्तक होना ही होगा .....
राजदंड की प्रथा क्या लोकतंत्र में जरुरी ...
आज राजदंड सेंगोल पर हर तरफ चर्चा हो रही है कि एक राज को उसके राज्याभिषेक के समय यह शक्ति दी जाति है और इसकी पौराणिक महत्ता भी है किन्तु क्या भारत में राजदंड की आवश्यकता है . भारत लोकतान्त्रिक देश है लोकतान्त्रिक देश में कार्यपालिका , न्यायपालिका का अपना अपना महत्तव है किसी एक को सर्वशक्तिमान घोषित नहीं किया जा सकता जैसा कि राजतन्त्र में होता है लोकतंत्र में सभी एक दुसरे के पूरक है भारत के इस नव निर्माण में अगर लोकतंत्र से ज्यादा महत्तव राजतन्त्र को दिया जाएगा तो क्या भारत में एक बार फिर राजतंत्र की दिशा में बढ़ रहा भारत .बात अगर राजदंड के स्वरुप सेंगोल की करे तो सेंगोल आज के लोकतंत्र में कई बातो को भी याद दिलाता है भारत शुरू से ही तपोभूमि के रूप में इतिहास के पन्नो में दर्ज है यहाँ धर्म,न्याय,सर्वभाव,समृद्धि सभी को महत्तव दिया जा रहा है सेंगोल सिर्फ एक राजदंड ही नहीं नंदी का स्वरुप समर्पण का प्रतिक ,नंदी की स्थापना एक गोल मंच पर की गई है, यह गोल मंच संसार का प्रतीक ,लक्ष्मी का रूप राज्य के वैभव का प्रतिक ,देवी लक्ष्मी के आस-पास हरियाली के तौर पर फूल-पत्तियां, बेल-बूटे उकेरे गए हैं, जो कि राज्य की कृषि संपदा का प्रतीक . ऐसी खूबियों से शोभित है सेंगोल जिसकी स्थापना की गयी है . यह सेंगोल भृत्य लोकतंत्र में यह भी दर्शाता है कि लोकतंत्र में राजधर्म का भी विशेष महत्तव है और हिन्दू प्रधान देश में धार्मिक आस्थाव का भी महत्तव . भारत की जनता एक स्वस्थ लोकतंत्र की कल्पना ही कर रही जहां पक्ष विपक्ष और कार्यपालिका समाज और देश हित में फैसले ले . अब से कुछ देर में ही नए संसद भवन का उद्घाटन होगा जिसमे लोकतंत्र के कई हिस्से ( विपक्षी पार्टी ) शामिल नहीं होंगे ऐसे में क्या यह उद्घाटन राजतन्त्र की दिशा में सिर्फ एक शुरुवात है .
मेरे विचार से लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर का उद्घाटन का दृश्य ऐसा होना चाहिए था कि जिसमे न्यायपालिका /कार्यपालिका पक्ष विपक्ष सभी मौजूद हो और पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल बने कि भारत के लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद भवन के उद्घाटन पर सभी पुरे मन से मौजूद है और सभी का सम्मान लोकतंत्र की खुबसूरत तस्वीर के रूप में आने वाली पीढ़ी याद रखे काश ऐसा होता किन्तु यह सत्य है कि ऐसा नहीं हो रहा . संसद भवन के उदघाटन पर विपक्ष का बड़ा धडा नहीं , देश की प्रथम नागरिक उपस्थित नहीं और इसके जिम्मेदार सत्ता पक्ष ही नहीं विपक्ष भी है जो लोकतंत्र के मंदिर में भी राजनितिक कर रहे है ...
शरद पंसारी ...
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