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बिलासपुर / शौर्यपथ / बिलासपुर में कई दिनों के बाद ऐसा हुआ कि प्रदेश के मुख्यमंत्री 2 दिन बिलासपुर में है । और 428 करोड़ की लागत के शिलान्यास तथा लोकार्पण कार्यक्रमों में हिस्सा लिया । लोकार्पण उन योजनाओं का होगा जिनका शिलान्यास पिछले शासन में हुआ था और शिलान्यास उन योजनाओं का होगा जो इस शासन के हैं। मुख्यमंत्री बिलासपुर आए और राजनैतिक कयास न लगे ऐसा नहीं हो सकता पिछले एक माह में कई बार निगम मंडलों में नियुक्ति का कयास लगाया जा रहा है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मरकाम ने दिसंबर माह में 15 दिनों के भीतर नियुक्ति का वादा किया था पर यह वादा अभी तक पूरा नहीं हुआ है। दिसंबर माह में ही कांग्रेस ने अपनी सत्ता में वापसी का त्यौहार मनाया और इस त्यौहार के बाद से ही कार्यकर्ताओं को यह लगने लगा है कि अब सरकार चुनाव वोट पर आ गई है।
भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने भी जिस तरह से अपने प्रदेश संगठन पर ध्यान दिया है उससे लगता है कि भाजपा ने भी चुनाव के लिए भी तैयारी शुरू कर दी है, और भाजपा का यह इतिहास है कि जब वह केंद्र में शासन में होती है और किसी भी राज्य में चुनाव की तैयारी करती है तब राज्य सरकार से उसके संबंध लगातार खट्टे होते जाते हैं । इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजनीति में भी ऐसा दिखाई दे रहा है जानकारों की माने तो केंद्र और राज्य के बीच यह खटास अब बढ़ती ही जाएगी। जिसका सीधा अर्थ है की छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का अधिकतर समय केंद्र के साथ मतभेद निपटाने में लगेगा एक तरफ से यह मुख्यमंत्री बघेल के लिए चुनौती भी रहेगा कि वे केंद्र से किस तरह के संबंध रखें, ममता जैसा टकराव या फिर एक परिपक्व नेता की तर्ज पर अपनी जनता का हित देखकर रोज अपना काम निकालने का रास्ता प्रदेश का मुख्यमंत्री होने के नाते जनता तो उनसे यही उम्मीद करेगी कि वे वैसा मार्ग निकालें जिससे उन्होंने अपने घोषणा पत्र में जो वादे किए हैं उसे पूरा कर सकें ।
जबकि भाजपा पग पग पर उन्हें धोखेबाज मुख्यमंत्री के रूप में प्रचारित कर रही हैं। और अब भाजपा के नेताओं की जुबान भी तीखी होती जाएगी इस बीच में भाजपा संगठन के दोनों बड़े नेता छत्तीसगढ़ में लगातार दौरा कर रहे हैं । और उनका लक्ष्य सीधे कार्यकर्ताओं से बात करना है जबकि कांग्रेसी नेताओं के पास दो काम है जनता के हित करने वाली योजनाओं को लागू करना और अपने ही कार्यकर्ताओं के बीच बढ़ रहे असंतोष पर काबू पाना । भूपेश सरकार के मंत्रिमंडल में रविंद्र चौबे, टी एस सिंह देव, मोहम्मद अकबर जैसे दिग्गज नाम के मंत्री तो हैं किंतु वे अपने विभागों के साथ प्रभावी नजर नहीं आते। जिला पंचायत के कार्यक्रमों के दम पर सरकार जनता के हित में काम करती नजर तो आती है किंतु इस विभाग का मंत्री प्रभावी तौर पर खड़ा नहीं दिखाई देता कारण योजनाओं का श्रेय सीएम अपने खाते में डालते हैं यही हाल स्वास्थ्य विभाग का है पिछला 1 साल कोविड-19 से जूझते हुए बीता पर यहां भी इस विभाग का मंत्री वैसा प्रभाव नहीं छोड़ पाया जैसा उम्मीद थी खेती किसानी के मुद्दे पर भी बघेल मंत्रिमंडल के सदस्य मीडिया में प्रभाव छोड़ते नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस का मीडिया प्रभारी रायपुर छोड़ किसी भी अन्य जिले में प्रभावी नहीं है लोकार्पण और शिलान्यास विज्ञापन की दम पर कुछ घंटे प्रभाव दिखाया जा सकता है किंतु इससे नए छत्तीसगढ़ की संकल्पना कैसे पूरी होगी, और अपने आखरी कार्यकाल में यही गलती विश्वसनीय छत्तीसगढ़ के नाम पर डॉक्टर रमन ने की थी।
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