November 21, 2024
Hindi Hindi

आस्तीन में सांप नहीं होते तो आयुर्वेद की तरह एलोपेथिक के विस्तार की गाथा भी भारत में लिखी होती ...

शौर्य की बातें / आयुर्वेद का जन्म, ऋग्वेद से एक उपवेद या शाखा की तरह हुआ जिसे अनगिनत प्रयोगों के बाद तब के वैज्ञानिक जिन्हें आज हम ऋषि मुनि की संज्ञा देते हैं उनके द्वारा शुरू हुआ। ऐसा माना जाता है कि महर्षि अग्निवेश ने सर्वप्रथम इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया और लिपिबद्ध किया। महर्षि चरक ने इस ज्ञान को अपनाया और इसका अभूतपूर्व विकास किया। जिस कारण से वो मॉडर्न मेडिसिन के जनक कहे जाते हैं। 2600 साल पहले ही भारत ने इतनी उन्नति कर ली थी। इनकी लिखी पुस्तकें चरक संहिता आज आयुर्वेद का आधार बनी।चरक संहिता 8 भागों में विभाजित है जिसमे 12000 श्लोक हैं और 1 लाख औषधीय वनस्पतियों का वर्णन है जिससे 2000 दवाओं का निर्माण भी हुआ है। आयुर्वेद मुख्यतः 3 दोषों वात, पित्त और कफ को आधार मानकर चिकित्सा से ज्यादा प्रिवेंशन यानी बचाव को महत्व देता है और शरीर को स्वस्थ्य बनाने की अनुशंसा करता है।
हमारे पौराणिक ज्ञान में एक बड़े आधार स्तंभ के रूप में महर्षि सुश्रुत का नाम आता है जिन्होंने शल्य चिकित्सा( सर्जरी) की शुरुवात प्राचीन भारत मे ही कर दी थी। इनका जन्म विश्वामित्र के पुत्र के रूप में हुआ था और इनको गायत्री मंत्र का रचयिता भी माना जाता है। इनकी सुश्रुत संहिता का आयुर्वेद में बड़ा महत्व है।देवभूमि वाराणसी में इन्होंने बहुत से असाध्य रोगों का इलाज किया जब अन्य देश केवल मारकाट और अंधविश्वास में लिप्त थे तब भारत मे तक्षशिला और फिर नालंदा यूनिवर्सिटी की नींव पड़ चुकी थी। पूरे विश्व से यहां लोग ज्ञान प्राप्त करने आते थे। इतिहास में दर्ज अनेक अत्याचारों में से एक कुत्सित इतिहास का वर्णन यहां करना होगा।
एक बार खिलजी वंश के शासक बख्तियार खिलजी की तबियत बिगड़ी और उसका इलाज किसी भी हकीम से संभव न हो सका। तब किसी ने उन्हें नालंदा यूनिवर्सिटी से संपर्क करने की सलाह दी। बख्तियार मान गए पर शर्त थी बिना किसी दवा के इस्लामिक तरीके से इलाज। वहां के आयुर्वेदाचार्य ने उन्हें कुरान भेंट की और उसे पढ़ने की सलाह दी। खिलजी पढ़ने लगे साथ ही उनके स्वास्थ्य में अभूतपूर्व सुधार आने लगा। जल्द ही वो हष्ट पुष्ट तंदरुस्त हो गए पर शक से भी घिर गए। अपने गुप्तचरों से जानकारी हासिल करने के बाद उनके पैरों तले जमीन खिसक गई जब उनको पता चला कि कुरान के पेजों पर आयुर्वेदिक दवा का लेप किया गया था। जिसे चाट कर पेज पलटने की आदत के कारण उनका स्वास्थ्य ठीक होता चला गया। ये सुनकर खिलजी का मिजाज बिगड़ गया और इस धरोहर इस भारतीय शक्ति जिसमे विश्वगुरु बनने की क्षमताएं थी उसे नष्ट करने का संकल्प लिया गया।
कहते हैं बौध्य् भिक्षुओं, आचार्यो का कत्लेआम किया गया और नालंदा विश्वविद्यालय को आग लगा दी गई जो 6 महीने जलती रही अपने साथ 90 लाख किताबों का ज्ञान समेटे, राख में सिमट गई। शायद साँप को दूध न पिलाने का ज्ञान उस विश्व विद्यालय ने नही सिखाया था। ज्ञान की ये विरासत भारत से अरबों को और अरबों से यूरोपियनों को मिला। उसी आधार पर उनकी मेहनत ने एलोपैथी को विकसित किया जो आज के आधुनिक विज्ञान का आधार स्तंभ है।
स्पष्ट है कि आयुर्वेद और एलोपैथी दो अलग अलग ज्ञान न होकर एक ही विज्ञान के अंश हैं। लेकिन कोई भी सभ्यता कोई भी ज्ञान स्वार्थियो और अधर्मियों से अछूता नही रह सका। चिकित्सा जब ज्ञान से व्यापार बनी तो धूर्त व्यावसायिक कंपनियों ने इसे ओवरटेक करना शुरू कर दिया।भारतीय आस्थाओं का दुरुपयोग करते हुए अब आयुर्वेद के नाम का फायदा उठाते हुए जबरदस्ती के दावों के दौर शुरू हो गया। सड़को पर बाबा बन लोग मजमा लगाकर दवा, जड़ीबूटी, विभूति, लिंग वर्धक यंत्र, ताबीज, भस्म सब बेचना शुरू कर दिया। आयुर्वेद का प्रचार कोई आयुर्वेदाचार्य करे पर योगगुरुओ ने भी आयुर्वेद पर अधिकार जमाना शुरू कर दिया और एलोपैथी को शून्य बताने का षड्यंत्र भी शुरू कर दिया।यह बात तय है कि इन्होंने याेग का परचम पूरी दुनिया में लहराया है,और जन जन में योग और व्यायाम के महत्व को पंहुचाया है ।लेकिन जब कल्पना से अधिक प्रसिद्धि, शोहरत और दौलत मिल जाय, तो उसे पचा नही पाते, और खुद को ईश्वर समझने लगते हैं, और उसी भावावेष में जिस दुनिया ने मान सम्मान दिया है, उसी का अपमान करना शरू कर देते हैं । अपने आपको बड़ा साबित करने के लिये दूसराें को छोटा साबित करना एक ओछापन है, बेशक आप अपनी लाईन बड़ी करिये, पर दूसरों की लाईन मिटाकर बड़ा बनने का ख्वाब मूर्खता की निशानी है, सम्हल जाओ बाबाजी, वरना आपका अहं ( सबकुछ मैं ही हूं ) आपको बरबाद कर देगा । क्योंकि वक्त की मार बहुत खतरनाक होती है, ये किसी को नही छोड़ती।
यदि हर मर्ज की दवा खोजी जा चुकी होती किसी भी पैथी में, तो आज कोई अंधा कोई गूंगा कोई काना कोई बहरा नही होता। क्या भैंगेपन का इलाज आयुर्वेद में अब तक है बाबाजी? अगर कोरोनिल से कोरोना 3 दिन में ठीक हो सकता तो आपके पतंजलि के पदाधिकारियों की मृत्यु कोरोना से नही होती न 82 पॉजिटिव मिलते।
पहले आयुष मंत्रालय से प्रमाणित कहा पर खंडन खुद आयुष मंत्रालय ने किया। फिर डब्लू एच ओ ने सर्टिफिकेट दे दिया कहा पर उसी ने ट्वीट कर मना किया। आखिर ऐसे झूठे दावों से सिवाय बदनामी के क्या हासिल होगा बाबाजी? क्यो आप आयुर्वेद और पतंजलि का नाम खराब करने में लगे हैं?
एलोपैथी ने तो कभी सम्पूर्ण विजय का दावा नही किया चाहे वो दवा हो चाहे वैक्सीन। कई इलाजों का पहले प्रयोग किया चाहे वो प्लाज़्मा थेरेपी हो, अजिथ्रोमायसिन, ivermectin हो या ओवर use of स्टेरॉयड हो। एलोपैथी ने बार बार गलतियों में सुधार किया और बेहतर विकल्प तलाशा और आज भी तलाश रहे हैं।
क्या यही विनम्रता आयुर्वेद में नही आ सकती? क्यो आप उसी दवा पर टिके हैं जिसकी खोज भी आपने नही की। अश्वगंधा, गिलोय और तुलसी का प्रयोग तो सदियों से किया जा रहा है। तो क्या पहले लोग मरते नही थे? कोरोनिल को संजीवनी बूटी की तरह प्रस्तूत करने के पीछे आपका व्यावसायिक हित हो या आपके ज्ञान की कमी पर डॉक्टर की मृत्यु का उपहास उड़ना आपके इंसानियत पर भी सवाल उठाता है। जिन फ्रंट लाइन कोरोना वारियर्स पर मोदी जी ने हैलीकॉप्टर से फूल बरसाए आपने उन्ही doctors को अपनी मौत का कारण उन्ही की दवाओं को बता दिया और उपहास किया? ऑक्सीजन नाक से लो कह दिया क्या ये उन मरीजों का मखौल नही जिन्होंने ऑक्सीजन की कमी से अपनी जान गवाँई?इम्युनिटी बूस्टर शब्द का पतंजलि ने खूब फायदा उठाया। कोरोना की इम्युनिटी बूस्टर क्या होता है??
इसका शाब्दिक अर्थ तो कोरोना की ताकत बढ़ाना हुआ। डब्लू एच ओ की गाइड लाइन यही थी कि जो दवा इम्युनिटी बढ़ाये वो इम्युनिटी की दवा कहला सकती है उस बीमारी की दवा नही। फिर भी कानून की कमजोरियों का फायदा उठाकर इसे कोरोना की दवा के रूप में स्थापित किया गया। भारतीय भावनाओ को दमित करने का साहस किसी मे नही इसलिए इसके रिलॉन्च पर खुद स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी शामिल थे। क्या इनका दायित्व दवा का प्रचार था? क्या ये सीधा सीधा कानून का उलंघन नही? जबकि वो सरकारी पद पर हैं। क्या ये सही समय है जब भारत कोरोना से बुरी तरह प्रभावित है, दोनो विज्ञान को मिलकर इस बीमारी से लड़ना चाहिए पर ये आपस मे भिड़े हुए हैं?
अति सर्वत्र वर्जयेत। यदि किसी भी दवा का सेवन आवश्यकता से अधिक हो तो वो जहर बन जाती है।
आयुर्वेदिक कंपनियों के फैलाये झूठ
1 आयुर्वेद में एलर्जी या हानि नही पहुचती

फैक्ट- एलर्जी व्यक्ति के शरीर मे ही उपस्थित होती है उसका प्राकृतिक या कृत्रिम होने से कोई संबंध नही होता। जहर भी प्राकृतिक होता है इसलिए हर वस्तु इसी आधार पर सुरक्षित नही हो जाती। व्यक्ति को दूध से भी एलर्जी हो सकती है( लैक्टोस इनटॉलेरेंस) शहद , आयोडीन से भी । अस्थमा का अलेरजेंट फूलों का पराग वो भी प्राकृतिक है।
शुगर के मरीज शक्कर नही झेल पाते। इसलिए प्राकृतिक वस्तु होने के चलते अमृत बताना भी नुकसानदेह है। जड़ से इलाज वाली बात अब तक पुष्ट नही हुई पर देर से परिणाम आने की उम्मीद पर दुनिया आयुर्वेद पर कायम है। बाबाजी एक बात बताइए यदि कोई कोरोना मरीज सांस नही ले पा रहा, धड़कन बन्द हो रही, ऑक्सीजन की कमी है तो क्या कोरोनिल खिलाकर उसे ठीक किया जा सकता है यदि नहीं फिर क्यो आप Dr के ज्ञान को कटघरे में लाते हैं जब आपने खुद वो किताबें नही पढ़ी?
आज अमेरिका ने वैक्सीन लगाए लोगो को मास्क फ्री घोषित कर दिया क्या कोरोना विजय पर आपको शुभकामनाओं से भी परे रखा है आपके पूर्वाग्रह ने?
रामलीला मैदान अनशन के बाद आप खुद एम्स में भर्ती थे। आचार्य बालकृष्ण का भी इलाज वही हुआ था पर बाहर आकर आप उनको ही ठग बताते हैं। क्या अश्वगंधा, गिलोय, तुलसी का खर्च इतना है कि कोरोनिल का रेट 500 रखा गया? आपदा में अवसर तो आपने भी खोजा, ब्लैक में जो बिका उसकी चर्चा व्यर्थ है। यदि आप स्वदेशी के समर्थक होते तो पूर्णतः स्वदेशी टेक्निक से बनी देश की वैक्सीन को- वैक्सीन को आप नकारते नही। पर आपने लेने से ही इनकार कर दिया। आपको लोग भारतीयता और आध्यात्मिक गुरु मानते हैं पर कई इंटरव्यू पर आपने वास्तुशास्त्र, ज्योतिष और ब्राम्हणवाद को जमकर कोसा। क्या ये भारतीय परंपराओं का अपमान नही? क्या सिर्फ भगवा वस्त्र धारण करना ही सनातनी परंपरा का सबूत है?

आयुर्वेद की आड़ में मूर्ख बनाने की बानगी-

क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है?
नींबू की शक्ति वाला विम बार
हल्दी और चंदन का गुण समाए संतूर
दाने दाने में केसर का दम राजश्री इलायची, विमल बोलो जुबां केसरी
वैद्यराज धनवंतरी का बनाया च्यवनप्राश
नीम की शक्ति
इम्युनिटी बूस्टर आईल
चारकोल(कोयले) वाला फेसवाश और पेस्ट
विको टर्मरिक नही कॉस्टमैटिक
मर्दों की त्वचा के लिए अलग क्रीम
गंगा के पानी से बना गंगा साबुन
जब भारत के मार्केट में उतरना होता है तो भारतीय मनोविज्ञान का फायदा उठाना जरूरी हो जाता है। हमारे दादी माँ के नुस्खों की किताबों को पढ़ना जरूरी हो जाता है। पर स्थिति कैसे जानलेवा हो जाती है बानगी देखिए
1 एक प्रतिष्ठित हॉस्पिटल में तब हड़कंप मच गया जब एक मरीज का ऑक्सीजन लेवल 65 पर पहुँच गया। वो व्यक्ति मास्क निकालकर कपूर सूंघ रहा था क्योकि उंसने व्हाट्सअप पर ये इलाज पढ़ा था ऑक्सीजन बढ़ाने का।
2 एक व्यक्ति की फ़ोटो वायरल हुई जो पीपल के पेड़ पर ऑक्सीजन लेने चढ़ जाता था। हालांकि वेदों में भी रात्रि को पीपल के पास जाना भी प्रतिबंधित है क्योंकि जब पौधा किसी दूसरे पेड़ पर एपिफ़ाइट की तरह उगता है तो जरूर रात को ऑक्सीजन देता है पर मिट्टी में उगाया गया वृक्ष नही।
3 गोबर जलाकर ऑक्सीजन बनाने के वैज्ञानिक प्रयोग भी किये गए पर केमिकल इंजीनियर्स ने इसे भ्रांति ही बताया।
चोट पर गोबर लगा लेना या बिना आयुर्वेदाचार्य की सलाह और मात्रा के गो मूत्र का सेवन कर लेना ऐसी कुछ समस्याएं है जो कोरोना काल मे नजर आई है।
जब बाबाजी की देखा देखी लौकी का रस रोजाना पीने वाले महानुभाव की मृत्यु के बाद बाबाजी को इंटरव्यू कर कडुई लौकी को इस्तमाल न करने की सलाह देना पड़ गया था।
भारत कृषि प्रधान हो न हो धर्म प्रधान जरूर है। चाहे सुमैया तारे की अफवाह हो या नमाज पढ़ने से रक्षा ये सभी धर्म अनुयायियों की मान्यताएं है पर जिस समस्या से देश जूझ रहा है उसका मुकाबला हमारे फ्रंट लाइन कोरोना योद्धाओं का मनोबल बढ़ाकर, उनकी गाइड लाइन का पालन कर ही किया जा सकता है।
साभार - डॉ. सिद्धार्थ शर्मा ( सुपेला भिलाई )

Rate this item
(1 Vote)

Leave a comment

Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.

हमारा शौर्य

हमारे बारे मे

whatsapp-image-2020-06-03-at-11.08.16-pm.jpeg
 
CHIEF EDITOR -  SHARAD PANSARI
CONTECT NO.  -  8962936808
EMAIL ID         -  shouryapath12@gmail.com
Address           -  SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)