November 22, 2024
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शौर्यपथ

शौर्यपथ

           खाना खजाना / शौर्यपथ / रबड़ी तो आपने कई बार खाई होगी, अब रबड़ी में एक्सट्रा न्यूट्रिशन एड करें जिससे कि स्वाद के साथ सेहत के लिए भी यह डिश फायदेमंद हो। आइए, जानते हैं कैसे बनाएं एप्पल रबड़ी-

सामग्री :
3 मध्यम आकार के सेब
1 लीटर दूध
4 टेबल स्पून चीनी
1/4 टी स्पून हरी इलाइची
8-10 बादाम (स्लाइस्ड), हल्का उबला
8-10 पिस्ते (स्लाइस्ड), हल्का उबला

विधि :
एक बड़े बर्तन में दूध डालें और उसमें उबाल आने दें। इसे हल्के हाथ से तब तक चलाती रहें, जब तक दूध आधा न रह जाए। इसके बाद आंच धीमी कर दें और इसमें चीनी डालें। इसे धीमी आंच पर पकाते हुए लगातार चलाते रहें।
सेब को छीलकर कददूकस कर लें। जब दूध की मात्रा और कम हो जाए तो इसमें सेब डालकर अच्छे मिक्स करें। इसे 3 से 4 मिनट के लिए पकाएं। इसमें इलाइची पाउडर, बादाम और पिस्ते डालें। इसे सर्विंग डिश में निकाल लें। सेब के बचे हुए स्लाइस डिश के चारों तरफ लगाएं। इसे गर्म या ठंडा सर्व करें।

            लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / कोरोना वायरस से बचाव के लिए घोषित लॉकडाउन लोगों को परिवार और परिजनों के साथ जोड़ने में मददगार साबित हो रहा है। लॉकडाउन में परिवार और प्रियजनों के बीच रहने को लेकर 52 फीसदी लोगों ने खुशी जताई है। हालांकि इस अवधि में कुछ लोगों का अनुभव खराब भी रहा है। 18 फीसदी लोगों ने कहा कि लंबे समय तक परिवार के साथ रहने से तनाव उत्पन्न हुआ है। ये सभी नतीजे जामिया द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आए हैं।

जामिया मिलिया इस्लामिया की राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) इकाई की तरफ से कोरोना वायरस का मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव विषय पर आस-पास के क्षेत्रों में अध्ययन आयोजित किया गया था। कुलपति की अगुवाई में संपन्न हुए इस अध्ययन के तहत जामिया, शाहीनबाग, नूर नगर, अबू फजल, ओखला विहार, बाटला हाउस, जुलैना, तिकोना पार्क, हाजी कॉलोनी, जामिया शिक्षक आवास के निवासियों से ऑनलाइन सवाल पूछ गए थे। इसमें कई वर्ग और श्रेणियों के लोगों को शामिल किया गया था। उनके जवाब के आधार पर रिपोर्ट जारी की है।

दिनचर्या बाधित होने से 28 फीसदी चिंतित-
कोरोना वायरस से बचाव के लिए घोषित लॉकडाउन की वजह से दिनचर्या प्रभावित होने से 28 फीसदी लोग चिंतित हैं। वहीं 19 फीसदी लोग ऐसे हालात में अपने आप को मजबूर महसूस कर रहे हैं। जबकि 13 फीसदी चिंतित और 6 फीसदी लोग इस दौरान उपज रहे नकारात्मक विचारों को लेकर भयभीत हैं।

48 फीसदी ने कहा- कोरोना से डर लगता है-
अध्ययन में लोगों से कोरोना संक्रमण से डर लगने संबंधी सवाल पूछे गए। 48 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें डर लगता है। वहीं 16 फीसदी ने ना में जवाब दिया जबकि 36 फीसदी ने अपने जवाब में अनिश्चितता जताई है।

 

           सेहत /शौर्यपथ / राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा खतरनाक स्तर से छह गुना अधिक जहरीली हो गई है। ऐसे हाल में स्वस्थ व्यक्ति की सेहत पर भी सीधा खतरा है। इससे बचने के लिए हमें अपने शरीर में ऑक्सीकरण रोधी स्तर को बढ़ाना होगा।

हमारी रसोई में ही इसके उपाय छिपे हैं जो शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देंगे, जिससे प्रदूषण के खतरे से लड़ा जा सकता है। शरीर की शक्ति बढ़ाने के लिए नौ पोषक तत्वों का सेवन जरूरी है। जिनमें विटामिन ए, बीटा कारोटीन, विटामिन बी-2, रिबोफ्लेविन, मैग्नीशियम, जिंक, कॉपर, मैग्नीशियम और सेलेनियम शामिल हैं। ये औषधि, फल, सब्जी और मसालों में मिलते हैं।

काली मिर्च : इसमें बहुत प्रभावशाली ऑक्सीकरण रोधी तत्व कैप्सेइसिन होता है जो फेफड़ों की सुरक्षा करता है। प्रदूषण और सिगरेट के धुएं से होने वाले प्रभावों से बचाने में काली मिर्च का सेवन सबसे असरदार है।

अजवायन : प्रदूषित हवा के कारण खांसी और गले में सूजन महसूस हो तो अजवायन की चाय पियें। यह शरीर की अन्य प्रतिरक्षा संबंधी (इम्यून) समस्याओं को खत्म करने कारगर है।

हल्दी : इसे घी के साथ मिलकर खाने से खांसी और अस्थमा में राहत मिलेगी। हल्दी का सेवन कैंसर का खतरा कम करता है। शोध में पाया गया है कि इसमें पाया जाने वाला करक्यूमिन एंटीऑक्सीडेंट जानवरों में कैंसर का खत्मा करने में सक्षम है।

गुड़ : इस समय हर कोई जुकाम और बलगम से परेशान है। इससे राहत के लिए सोने से पहले हरद और गुड़ का सेवन करें तो बलगम घट जाएगा।

रोजमेरी : इसे गुलमेंहदी भी कहते हैं जो भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उगने वाला पौधा है। आमतौर पर यह घरों में औषधि की तरह प्रयोग होता है। इस ऑक्सीकरण रोधी पौधे का अर्क पीना फायदेमंद होगा।

जहरीले तत्वों का असर रोकेगा इनका सेवन : इस बेहद संवेदशनशील समय में अगर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए नींबू के पत्तों की चाय, ग्रीन चाय, चुकंदर, नीम, पपीता के पत्ते, आंवला, एलोवेरा, गिलोय, आश्वगंघा, गेहूं की घास, सहजन का सेवन प्रदूषण के जहरीले तत्वों का शरीर पर असर घटाएगा।

देशी घी बढ़ाएगा प्रतिरोधक क्षमता-
देशी घी के अलावा सरसों, नारियल, तिल और जैतून का तेल जैसे वसा खाने से शरीर खतरनाक तत्वों से लड़ने के लिए मजबूत होगा।

भाप लेने से खत्म होगी श्वसन में परेशानी-
इस समय सांस लेने में खासी दिक्कत महसूस होती है, इससे निपटने के लिए भाप लेना फायदेमंद होगा। यह श्वास लेने के तंत्र में नमी आएगी और खून के जमाव की समस्या खत्म होगी। इसके अलावा क्षारीय जल पीने से भी फायदा मिलेगा। ऐसे समय में सेहत सही रखने के लिए कम प्रदूषित स्थान पर ही व्यायाम करें और तनाव घटाने के लिए योग व ध्यान लगाएं।

नोट-
अदरक, दालचीनी, मुलैठी और अन्य औषधीय तत्व प्रदूषण से लड़ने में बेहद सहायक हैं। अगर इन तत्वों से बना काढ़ा या चाय इस सर्दी के मौसम में ली जाए तो आपकी प्रतिरोधी क्षमता बढ़ेगी। घर से बाहर निकलते समय मुंह में लौंग रखना भी बेहतर है। साथ ही गरम पानी ही पिया जाए तो अच्छा है।

             लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / मुंह की बदबू एक आम समस्या है। आमतौर पर कहा जाता है कि दांत या मुंह की ठीक से सफाई नहीं करने पर मुंह की बदबू होती है, लेकिन मामला इतना सीधा नहीं है। इसके कई ऐसे कारण हो सकते हैं, जिनके बारे में मरीज ने सोचा भी नहीं होगा। मुंह की बदबू लंबे समय तक बनी रहे तो इसे हेलिटोसिस बीमारी कहा जाता है। इसका इलाज जरूरी है, अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
कि मुंह की बदबू के लक्षण हैं - गले में छाले होना, नाक बहना, लगातार खांसी बनी रहना और बुखार आना। मुंह की बदबू के कारण दांत गिर सकते हैं। मसूड़ों में दर्द हो सकता है और खून निकल सकता है। मुंह की दुर्गंध के कई कारण हो सकते हैं। कुछ मौखिक यानी मुंह से जुड़े कारण हैं तो कुछ मुंह से सीधे तौर पर संबंधित नहीं हैं। मुंह या दांतों की साफ-सफाई नहीं होने के अलावा मुंह में घाव, संक्रमण से पस पड़ना बदबू के अहम कारण हैं। मुंह का कैंसर भी बदबू का कारण बनता है। गैर-मौखिक कारणों में कई गंभीर बीमारियां शामिल हैं जैसे- डायबिटीज, फेफडों या किडनी की बीमारी।

मुंह की बदबू दूर करने के आयुर्वेदिक तरीके

मुंह की बदबू से बचना है तो सबसे पहले मुंह और दांतों की अच्छी तरह सफाई जरूर करें। यह काम सुबह और रात में किया जा सकता है। अच्छी क्वालिटी का टूथब्रश और पेस्ट इस्तेमाल करें। टंग क्लीनर से जीभ भी अच्छी तरह साफ करें। आमतौर पर जीभ के ऊपर जमी परत बदबू का कारण बनती है।

आयुर्वेद के मुताबिक, पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं। पानी पीते रहने से मुंह साफ होता रहता है। दांतों में फंसा खाना निकल जाता है, जो बदबू का सबसे बड़ा कारण होता है। वहीं इस बीमारी से निपटने में ग्रीन टी भी फायदेमंद होती है। ग्रीन में मौजूद एंटीबैक्टीरियल कम्पोनेंट से दुर्गंध दूर होती है। माउथफ्रेशनर के रूप में सूखे धनिये का इस्तेमाल करें। लौंग और सौंफ का उपयोग भी किया जा सकता है। तुलसी की पत्तियां चबाना मुंह की दुर्गंध भगाने का सबसे कारगर तरीका है। सुबह और शाम तुलसी के तीन-चार पत्ते रोज चबाएं। इसी तर्ज पर अमरूद के पत्ते भी चबाए जाते हैं। इससे तत्काल फायदा मिलता है।

मुंह की बदबू दूर करने का एक और तरीका सरसों के तेल और नमक की मालिश है। हथेली में थोड़ा सरसों का तेल लें और एक चुटकी नमक मिलाएं। इस मिश्रण से मसूड़ों पर मालिश करें। न केवल मसूड़े मजबूत होंगे, बल्कि मुंह की बदबू भी चली जाएगी। आयुर्वेद के अनुसार, अनार की छाल भी इसका इलाज है। छाल को पानी में उबाल लें और रोज इससे कुल्ला करें।

जो लोग नकली दांत का उपयोग करते हैं, वे इनकी सफाई का अच्छी तरह ख्याल रखें। शराब और तंबाकू का सेवन न करें। जो लोग तंबाकू खाते हैं, उनके मुंह से लगातार बदबू आती रहती है। खाने में प्याज और लहसुन के उपयोग से बचें। उपरोक्त सावधानियां बरतने और घरेलू इलाज करने के बाद भी बदबू बनी रहती है तो डॉक्टर से सम्पर्क करें।

        धर्म संसार / शौर्यपथ / हिंदू धर्म में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए कई व्रत रखती हैं। ऐसे ही व्रतों में से एक है वट सावित्रि व्रत। विवाहित महिलाएं इस दिन अपने सुहाग के दीर्घायु होने के लिए व्रत-उपासना करती हैं। यह व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो स्त्री उस व्रत को सच्ची निष्ठा से रखती है उसे न सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है बल्कि उसके पति पर आई सभी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं।

वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त-
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – मई 21, 2020 को रात 09:35 बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – मई 22, 2020 को रात 11:08 बजे

वट सावित्री व्रत का महत्व-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थी। अतः इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है। इस दिन वट (बड़, बरगद) का पूजन होता है। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।

वट सावित्री व्रत पूजा विधि-
-इस दिन प्रातःकाल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।
- इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें।
-बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।
- ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
- इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें।
- इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।
- अब सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में पानी दें।
-पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
-जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें।
-बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें।
-भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें।
-यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं।
-पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।
-इस व्रत में सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण करना न भूलें। यह कथा पूजा करते समय दूसरों को भी सुनाएं।

 

          खेल / शौर्यपथ / भारतीय ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या ने काफी कम वक्त में क्रिकेट जगत में अपना प्रभाव छोड़ा है। उन्होंने 2016 में न्यूजीलैंड के खिलाफ वनडे इंटरनेशनल में डेब्यू किया था। इसके बाद उन्होंने लगातार अपने ऑलराउंड परफॉर्मेंस से इंप्रेस किया और टीम इंडिया का जरूरी हिस्सा बन गए। भारतीय कप्तान विराट कोहली ने कई मौकों पर कहा भी है कि टीम को बैलेंस करने लिए हार्दिक पांड्या कितने जरूरी हैं। हार्दिक पांड्या ने जब इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखा तब वह 228 नंबर वाली जर्सी पहना करते थे। उनके जर्सी नंबर ने सबका ध्यान खींचा था, लेकिन कुछ वक्त बाद उन्होंने अपनी जर्सी का नंबर बदल कर 33 कर लिया। क्या आप जानते हैं कि पांड्या जर्सी नंबर 228 क्यों पहनते थे? अब इस राज से पर्दा उठ चुका है।

दरअसल, हाल ही में आईसीसी ने हार्दिक पांड्या की जर्सी नंबर 228 की तस्वीर शेयर करते हुए फैन्स से इस बारे में पूछा। आईसीसी ने ऑलराउंडर की जर्सी की फोटो ट्वीट करते हुए पूछा, 'क्या आप बता सकते हैं कि हार्दिक पांड्या जर्सी नंबर 228 क्यों पहनते थे?'

आईसीसी के इस सवाल पर कुछ फैन्स ने इस राज से पर्दा उठाया और बताया कि हार्दिक क्यों इस नंबर वाली जर्सी पहना करते थे। फैन्स ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा, ''अंडर-16 के दौरान हार्दिक बड़ौदा के लिए खेलते थे। वह अंडर-16 में बड़ौदा के कप्तान थे और टीम के कप्तान रहते हुए उन्होंने शानदार दोहरा शतक जड़ा था। इस दौरान उन्होंने 391 गेंदों में शानदार 228 रन की पारी खेली थी। हार्दिक ने यह पारी 2009 में आठ घंटे में मुंबई अंडर-16 के खिलाफ रिलायंस क्रिकेट स्टेडियम में खेली थी।''

अंडर-16 में खेलते हुए जड़ा यह दोहरा शतक उनके पूरे करियर का इकलौता दोहरा शतक है। 2009 में खेले गए इस मैच में एक समय बड़ौदा ने महज 60 रनों पर चार विकेट गंवा दिए थे। इसके बाद हार्दिक पांड्या मैदान पर उतरे और दोहरा शतक जड़कर स्टार बन गए थे। हार्दिक ने उस मैच में पहली पारी में मुंबई के 5 बल्लेबाजों को भी आउट किया था।

 

दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग नगर पालिक निगम में कांग्रेस को २० सालो बाद सत्ता मिली है प्रदेश में कांग्रेस की सर्कार होने व भाजपा के कई उम्मीदवारों के निर्दलीय मैदान में उतरने की वजह से दुर्ग निगम में कांग्रेस की सरकार बनी . कांग्रेस की सत्ता वापसी होते ही कांग्रेस नेताओ में पहले महापौर की रेस शुरू हुई जो कुछ ही दिनों बाद धीरज बाकलीवाल के रूप में महापौर निर्वाचित होने के बाद राजनितिक घमासान का अंत हुआ .
महापौर की रेस में नाम नहीं अआने के कारण कांग्रेस के दिग्गज नेता मदन जैन का विरोध रहा वही कांग्रेस से तकिया पारा वार्ड के अब्दुल गनी भी महापौर के चयन के समय दुर्ग राजनीती के रणनीतिकार राजिव वोरा से जबरदस्त विवाद हुआ विवाद का विडिओ वाइरल होते ही शहर की जनता को लगा कि अब्दुल गनी बगावती तेवर अपना सकते है किन्तु निगम के मंत्री मंडल की घोषणा होते ही शहरी सरकार में पी डब्ल्यूडी का पद अब्दुल गनी के पास आ गया और भाजपा से कांग्रेस में प्रवेश करने वाली जयश्री जोशी को जिनके पास सभापति सहित पीदाब्ल्युडी विभाग के कार्य का अनुभव था प्रशासन विभाग दे दिया गया .
सत्ता में आते ही कांग्रेस के मंत्रिमंडल का कार्यालय एम्आईसी भवन की कायाकल्प शुरू होने का कार्य प्रारंभ हो गया . सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पहले सिर्फ पोताई का कार्य किये जाने की बात चली किन्तु धीरे धीरे कार्य का रूप बदलता गया और शहरी सरकार के मंत्री विभागों के कार्य से ज्यादा अपने कार्यालय की खूबसूरती की तरफ ध्यान देने लगे , अब कार्य सिर्फ पोताई से नहीं पुट्टी पेंट तक पहुंचा , पुट्टी पेंट के बाद वाल डिजाईन के कार्य की रूप रेखा बनी , इन सब कार्यो के बाद पुरे एमआईसी में नए परदे लगाने की बात सामने आ गयी ( ऐसा नहीं कि पुराने परदे फट गए या बहुत पुराने हो गए थे किन्तु सत्ता का खेल ऐसा चला कि सब होता गया ) नए परदे लगने के बाद सभी दरवाजो में एक और कांच के दरवाजे लगने की बात उठी जिसे भी संकट ( कोरोना आपदा ) काल में पूर्ण कर लिया गया . अगर सूत्रों की माने तो अब मंत्रिमंडल अपने कार्यालय में एयर कंडीशन लगाने की जुगत में लगा है हो सकता है जल्द ही ये कार्य भी मूर्त रूप ले ले .
अनुमान के मुताबिक एक कार्यालय में कम से कम लाख रूपये का खर्च का अनुमान है . खैर कांग्रेस की सरकार है मंत्री कांग्रेस के है तो हो सकता है केबिन में सोफा भी लग जाए टीवी भी लग जाए शासन के खर्चे में आखिर सत्ता २० सालो बाद आयी है . ये अलग बात है कि नए मंत्रियो में महत्तवपूर्ण पद पर आसीन मंत्री ( शहरी सरकार ) विभाग के कार्यो से अनजान है या फिर ऐसा कोई कार्य अभी तक इन मंत्रियो द्वारा नहीं हुआ जो जनता कि नजर में आये आज भी निगम में ठेकेदार भुगतान के लिए चक्कर लगा रहे है , आज भी शहर की आम जनता अपनी समस्यायों के लिए घूम रही है , आज भी निगम के कई ठेकेदार स्तर हीं निर्माण कर रहे है और मंत्रियो के करीबी होने का लाभ उठा रहे है , आज भी निगम के इंजिनियर स्थल जाँच की अपेक्षा ठेकेदारों के बातो पर भरोसा क्र बिल भुगतान कर रहे है , आज भी निगम के अधिकारी कर्मचारियों से गाली गलौच कर रहे है , आज भी शहर में अवैध रूप से निर्मित दुकानों पर आम जनता को कार्यवाही का इंतज़ार है , आज भी शहर कि जनता अच्छे शासन की राह तक रही है , आज भी सडको की हालत बद से बद्दतर है , आज भी कई इलाको में पानी कि समस्या बनी हुई है , आज भी गरीबो पर अतिक्रमण और कार्यवाही की मार बनी हुई है , आज भी बड़े व्यापारी सीना तान कर सडको पर सामान फैला कर व्यापार कर रहे है , आज भी निगम को राजस्व की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है पर कोई बात नहीं आम जनता तो होती ही है परेशानियों से जीवन बिताने के लिए . वर्तमान में सबसे ज्यादा जरुरी है स्तरहीन कार्य से एमआईसी बिल्डिंग के रूप का कायाकल्प करना .वही कार्य आज निगम में हो रहा है आपदा के समय भी निगम प्रशासन इन कार्यो में कलगा हुआ है और इन कार्यो की जिम्मेदारी निगम के प्रभारी ईई मोहन पूरी गोस्वामी के पास है . निगम ईई से इस कार्य के लिए हुए निविदा की बात पुझी गयी तो टाल मटोल जवाब ही प्राप्त हुआ . विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार एक ही ठेकेदार को यह काम दिया जा रहा काम के स्तर हीं की जानकारी देने पर निगम के प्रभारी ईई ने सुधार की बात तो कही है किन्तु कितना सुधार होगा ये कहना मुश्किल ही है क्योकि भ्रस्टाचार की शिकायत पर अभी तक तो कार्यवाही नहीं हो पाए फिर इन कार्यो की कैसे कार्यवाही होगी जबकि ठेकेदार और ईई गोस्वामी की काफी घनिष्टता बाते जा रही है क्योकि राशन वितरण के समय भी ईई गोस्वामी द्वारा अपने पसंदीदा ठेकेदार को ही कई राशन सामग्री लाने का जिम्मा दिया हुआ था इस बात के पुख्ता प्रमाण ठेकेदार और ईई के बीच अनेकोनेक फोन काल ही सिद्ध कर सकते है ऐसे में क्या निगम आयुक्त बर्मन एमआईसी के कार्यो की निष्पक्ष जाँच करवाएंगे या ये मामला भी अन्य मामलो की तरह दब जायेगा ?

           शौर्यपथ / मनोरंजन / शौर्यपथ /‘ससुराल सिमर का’ एक्टर आशीष रॉय अस्पताल में भर्ती हैं। हाल ही में उन्होंने फेसबुक के जरिए लोगों को जानकारी दी थी कि वह आईसीयू में हैं और इलाज कराने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत है। अब आशीष ने हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करने की अपील की है। उनका कहना है कि पैसे नहीं बचे हैं और वह अब बिल नहीं भर पाएंगे।
टाइम्स ऑफ इंडिया को इंटरव्यू देते हुए आशीष ने बताया कि मैं पहले से ही पैसे की तंगी देख रहा हूं। मेरी हालत लॉकडाउन की वजह से ज्यादा खराब हुई है। दो लाख की सेविंग थी, जो कि मैंने दो दिन के हॉस्पिटल बिल भरने में इस्तेमाल कर लिए। पहले मुझे कोविड-19 हुआ, जिसमें 11 हजार लगे और बाकी की दवाइयां अलग। 90 हजार रुपये एक बार के डायलेसिस में लगते हैं। मेरे ट्रीटमेंट के लिए चार लाख की जरूरत है, लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं। इसलिए मैं अब घर जाना चाहता हूं। मैं इस ट्रीटमेंट को अफॉर्ड नहीं कर सकता। मेरी कुछ लोग मदद कर रहे हैं जिससे मैं हॉस्पिटल का बकाया भरकर डिस्चार्ज हो सकूं। मैं अब यहां नहीं रुक सकता फिर कल चाहे मुझे मरना ही क्यों न पड़े।

आशीष के को-स्टार सूरज थापर का कहना है कि आशीष अपने दो बीएचके फ्लैट को बेचने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन लॉकडाउन के चलते वह भी जल्दी होना नामुमकिन है।
आशीष ने इससे पहले बताया था कि 18 मई से मैं हॉस्पिटल में भर्ती हूं। हालत काफी गंभीर है। दो दिन में दो लाख रुपये का बिल आ चुका है। और आगे वह इलाज नहीं करा पाएंगे क्योंकि उनके पास पैसे नहीं बचे हैं।
आशीष आगे कहते हैं कि मेरे पास पैसे नहीं है। दो लाख थे वह मैंने हॉस्पिटल में दे दिए क्योंकि दो दिन का बिल इतना बनाकर दिया था। अब एक रुपए भी नहीं बचा है। कई लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं। वह फोन कर रहे हैं और पूछ रहे हैं। देखते हैं आगे क्या होता है। वायरस के चलते मुझे एक अलग वॉर्ड में रखा गया है। जो कि काफी महंगा है। मेरा डायलेसिस होता है। और चार घंटे तक चलता है। दवाइयां और इंजेक्शन भी काफी महंगे हैं।

बता दें कि इस साल के शुरुआत में भी आशीष बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती हुए थे। उनके शरीर में करीब 9 लीटर पानी जमा हो गया था। डॉक्टर्स ने कड़ी मशक्कत के बाद उनके शरीर से पानी निकाला था। गौरतलब है कि आशीष ने 'ससुराल सिमर का', 'बनेगी अपनी बात', 'ब्योमकेश बख्शी', 'यस बॉस', 'बा बहू और बेबी', 'मेरे अंगने में', 'कुछ रंग प्यार के ऐसे भी' और 'आरंभ' जैसे कई टीवी शोज में काम किया है।

 

            शौर्यपथ / मानव जाति के इतिहास में छठी शताब्दी में जस्टिनियन प्लेग से लेकर 1918 में स्पेनिश फ्लू तक कई महामारियां देखी गई हैं। 21वीं सदी में खासकर तीन कोरोना वायरस प्रकोप देखे गए हैं। मर्स, सार्स के बाद हम कोविड-19 का प्रकोप देख रहे हैं। चिकित्सा विज्ञान की तरक्की के बावजूद यह अनुमान लगाना नामुमकिन है कि अगली संक्रामक बीमारी का प्रकोप कब होगा, इसलिए हमें पूरी तरह सचेत रहने की जरूरत है।
संक्रमण के कुल मामलों में जब भारत चीन को पार कर चुका है, तब दोनों की तुलना दिलचस्प होगी। मध्य मार्च के बाद से भारत में जहां संक्रमण के मामलों में क्रमिक वृद्धि देखी गई, वहीं चीन में जनवरी-फरवरी में ही बहुत तेजी देखी गई थी। वहां का प्रशासन मजबूर हो गया था और भारत से करीब दो महीने पहले 23 जनवरी को ही वुहान में सख्त लॉकडाउन लागू हो गया था। वहां 70 दिन चले लॉकडाउन से संक्रमण काबू में आया और अब स्थिर है। चीन जैसी ही तेज बढ़त अमेरिका और यूरोप में देखी गई, इस मामले में भारत कुछ अलग है।
गौरतलब है, भारत में चीन की तुलना में 45 प्रतिशत कम मौतें हुई हैं, हालांकि कुल संक्रमित लोगों में सक्रिय संक्रमित 60 प्रतिशत से ज्यादा रहे हैं, जबकि चीन में सक्रिय संक्रमितों की संख्या शून्य के करीब पहुंच गई है। भारत में 38 प्रतिशत लोग स्वस्थ हो रहे हैं। ठीक होने वालों की संख्या भारत में ज्यादा है। वैसे अभी भी भारत में जर्मनी, स्पेन और इटली इत्यादि हॉटस्पॉट बने देशों की तुलना में ठीक होने की दर कम है।
इसके अलावा, यह बीमारी चीन में मुख्य रूप से हुबेई प्रांत में सीमित थी और वहां भी विशेष रूप से वुहान में, जबकि भारत में चार राज्यों- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात और दिल्ली में संक्रमण के ज्यादा मामले देखे जा रहे हैं। इन चार राज्यों में भारत के कुल दो-तिहाई मामले मिले हैं। कुल मिलाकर, भारत में ठीक होने की उच्च दर इशारा करती है कि कोरोना के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास यहां कारगर रहा है। आज अहम सवाल यह है कि जो लोग सार्स और कोविड-19 के संक्रमण को हरा सकते हैं, क्या वे भावी वायरस हमलों को भी धता बता पाएंगे? जब हम इसका जवाब खोजेंगे, तब हमें कोविड-19 की वैक्सीन खोजने में मदद मिलेगी।
हमारे शरीर में दो चीजें हैं, एचएलए सिस्टम और केआईआर जींस, दोनों ही कोरोना बीमारी के माइक्रोब्स के खिलाफ रोग प्रतिरोध की दीवार खड़ी कर रही हैं। एचआईवी सहित अन्य संक्रामक रोगों और स्वत:रोग प्रतिरोधी क्षमता के संबंध में एचएलए और केआईआर की जेनेटिक प्रवृत्ति के पर्याप्त डाटा मौजूद हैं। ये दोनों जेनेटिक सिस्टम शरीर के दो रोग-प्रतिरोधी योद्धाओं को चलाते हैं- एक, साइटोक्सिक टी-सेल्स और दूसरा, नेचुरल किलर सेल्स, ये दोनों ही मिलकर वायरस को निशाना बनाते हैं और ठिकाने लगाने में मदद करते हैं। इनका गहन अध्ययन जरूरी है, ताकि कोविड-19 की जांच के कारगर उपकरण बनाए जा सकें। इससे अलग-अलग लोगों में अलग-अलग उपचार रणनीति बनाने में भी मदद मिलेगी। संक्रमित लोगों में एचएलए विविधता की पहचान करने से संक्रमण की गंभीरता का अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है और यह तय किया जा सकता है कि आखिरकार टीके से किसको फायदा होगा। भारतीय संदर्भ में वैज्ञानिकों को दो अहम अवलोकनों के जवाब खोजने होंगे। पहला, मुख्य रूप से स्पर्श से हो रही बीमारी के क्लिनिकल कोर्स को देखना होगा और दूसरा, भारत में अभी तक गंभीर और अति-गंभीर मामलों की सीमित संख्या पर भी गौर करना होगा।
एक सवाल यह भी है कि किसी संक्रामक का कारगर उपचार विकसित करने में कितना समय लगता है? ऐतिहासिक रूप से चेचक और पोलियो का प्रभावी टीका खोजने में हजारों साल लगे हैं। इन दिनों विश्व वैज्ञानिक समुदाय ने जिस एकजुटता के साथ कोरोना वायरस को हराने के विलक्षण कार्य में ज्ञान और जानकारी साझा की है, यह वास्तव में अभूतपूर्व है। अकेले विज्ञान ही भविष्य में स्वास्थ्य रक्षकों को अपनी पूरी क्षमता से काम करने, भविष्य के संक्रामकों को रोकने और उनका इलाज करने के लिए जीवन रक्षक उपकरण बनाने के लिए प्रेरित कर सकता है। बेशक, वैश्विक आपात स्थितियों से निपटने के लिए नई प्रौद्योगिकियों की तत्काल जरूरत है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

     शौर्यपथ / समुद्री तूफान से हुआ नुकसान जितना दुखद है, उतना ही चिंताजनक भी। दुख इसलिए कि भारतीय राज्यों- पश्चिम बंगाल और ओडिशा सहित बांग्लादेश में न केवल 25 से ज्यादा लोग मारे गए हैं, वहां जो माली नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई में कुछ वर्ष लग जाएंगे। कोरोना की वजह से आर्थिक परेशानी झेल रही एक विशाल आबादी ने अम्फान को अपने सीने पर झेला है। इस पूरी आबादी के साथ-साथ उसे पहुंचे पूरे नुकसान का अनुमान लगाना जरूरी है। पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों को दोहरी मदद की जरूरत पड़ेगी और इसके लिए केंद्र सरकार को कमर कस लेनी चाहिए। तूफान और तेज बारिश से मची तबाही की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उस समय अपने दफ्तर में मौजूद थीं और उन्हें ‘सर्वनाश’ व ‘तांडव’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ा। मुख्यमंत्री के ऐसे उद्गार से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में कुछ पीढ़ियां ऐसी हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी में ऐसी त्रासदी का सामना पहले कभी नहीं किया। असंख्य गरीबों और आम लोगों के आशियाने तबाह हो गए हैं। उन सभी को हरसंभव मदद और मुआवजे की जरूरत पडे़गी। इतनी बड़ी संख्या में पेड़ गिरे हैं, बिजली के खंभे टूटे हैं, टीन, छप्पर, बैनर, होर्डिंग उड़े हैं कि राज्य सरकारों ने प्रभावित इलाकों में लोगों को घर के अंदर ही रहने को कहा है। केवल तटीय इलाकों में ही नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल और ओडिशा के भीतरी इलाकों में भी अम्फान से मची तबाही का मंजर है।
पश्चिम बंगाल के बुजुर्ग 1970 में आए उस भोला तूफान को याद कर रहे हैं, जिसमें पांच लाख से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी थी और 1991 में आए गोर्की तूफान को भी याद किया जा रहा है, जो अपने साथ 1.39 लाख लोगों को ले गया था। शुक्र है, समय पर जारी हुई चेतावनी ने लोगों की जान की रक्षा की और सौभाग्य है, यह तूफान अपनी रफ्तार थोड़ी कम करते हुए तट पर पहुंचा। एक और अच्छी बात है कि यह भारत में पश्चिम या उत्तर की ओर आगे नहीं बढ़ा और इसका दबाव क्षेत्र बांग्लादेश की ओर मुड़ते हुए लगभग प्रभावहीन हो गया।
तूफान से प्रभावित हुए लोगों के प्रति देश में संवेदनाओं का ज्वार स्वाभाविक है, लेकिन हमें इन तूफानों से स्थाई बचाव के बारे में भी सोचना होगा। अव्वल तो तटीय जिलों में छप्पर या कच्चे मकानों पर पाबंदी समय की मांग है। गरीबों के लिए पक्के मकान बनाने की जो योजनाएं हैं, उन्हें तटीय इलाकों में युद्ध स्तर पर चलाना चाहिए। केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकारों के पास भी यह एक मौका है कि वे समुद्री तट से लेकर अंदर 200-300 किलोमीटर तक कच्चे घरों, भवनों, दुकानों को फिर न खड़ा होने दें। हम ऐसे दौर में हैं, जब समुद्री जल का तापमान बढ़ रहा है और हर दो या तीन वर्ष में एक बडे़ तूफान की आशंका बनेगी। ऐसे में, यह जरूरी है कि गरीबों और जरूरतमंदों तक पक्की या स्थाई सहायता पहुंचे, उन्हें फिर विस्थापित न होना पड़े। ऐसे निर्माणों, बिजली के खंभों और पेड़ों पर भी निगाह रखनी पडे़गी, जो ऐसे तूफानों के समय तबाही का सामान बनते हैं। दिल्ली, कोलकाता से सुदूर इन इलाकों तक प्रशासकों, शासकों को पहले की तुलना में और उदार हो जाना चाहिए, तभी वे पीड़ितों की पीड़ा दूर कर पाएंगे।

 

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