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कबीरधाम / शौर्यपथ /
कार्यक्रमों से पूर्व अनुमति की अनिवार्यता हेतु गृह विभाग ने सभी जि़ले के कलेक्टरों को निर्देश जारी किये हैं जो की भूपेश सरकार के सामंती प्रवृत्त का दोत्तक है। गृह विभाग के मुख्य अपर सचिव ने प्रदेश में या जि़लों में सार्वजनिक कार्यक्रम धरना, जुलूस, रैली, प्रदर्शन, भूख हड़ताल के लिए लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा निर्देश जारी किया है। इस सरकार ने 2018 के चुनाव जीतने के लिए समाज के सभी वर्गों से झूठे वादे किये हैं और आज जब सरकार को वादों की याद दिलाने लोग सड़कों पर उतर रहे हैं तो उन्हें डंडों से पीटा जा रहा है। आगामी प्रदर्शनों को गर्भ में ही मार देने, जनता की आवाज़ हमेशा के लिए बंद कर देने का उपक्रम है ये तुग़लकी फऱमान।
भाजपा प्रदेश मंत्री विजय शर्मा ने जारी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से सरकार से पूछा है कि - यदि अनुमति नहीं दी जाती है तो क्या - विरोध प्रदर्शन न करें ?? यदि अनुमति विलम्ब से दी जाती है तो क्या - विषय प्रासंगिक रह पायेगा?? गृह विभाग द्वारा जारी निर्देश के विभिन्न बिंदुओं में यह भी कहा गया है कि आयोजकों को कार्यक्रम की पूरी विडीओग्राफ़ी कर प्रशासन को सौंपना होगा तो इससे आयोजकों पर पडऩे वाले आर्थिक भार को कैसे वहन किया जाएगा। कार्यक्रम की विडीओग्राफ़ी रुढ्ढक्च का काम है। साथ ही विडीओ ग्राफ़ी से संतुष्ट नहीं होने पर आयोजकों पर कार्यवाही करने का अधिकार प्रशासन के पास होगा ये अन्याय पूर्ण है ?? आयोजकों की जानकारी आदि माँगा गया है - जो की पहले भी दिया जाता रहा है - ये प्रावधान भी भय उत्पन्न करने वाला है। आंदोलन आदि में सम्मिलित होने वालों के लिए भोजन करवाना अनिवार्य किया गया है जो की स्वस्फूर्त आंदोलन जिसमें सभी की बराबर सहभागिता होती है में फूट डालने जैसा है।
विजय शर्मा ने कहा है कि जिस तरह अंग्रेजों के काले क़ानून को दाँडी मार्च करके गांधी जी ने तोड़ा था वैसे ही बिना अनुमति के धरना देकर भूपेश सरकार के इस काले क़ानून को तोड़ा जाना चाहिये। साथ ही भाजपा प्रदेश मंत्री कहा है कि इस काले निर्देश से किसी विषय पर कोई भी राजनीतिक अथवा सामाजिक संस्था तात्कालिक कोई प्रतिक्रिया देने में असमर्थ हो जायेगा। उन्होंने माँग की है की छत्तीसगढ़ की सरकार तत्काल इस विषय पर अपना मत स्पष्ट करे और क़ानून व्यवस्था से सम्बन्धी कोई विशेष चर्चा हो तो सभी राजनीतिक और सामाजिक संगठनों से चर्चा कर कोई कदम सरकार उठाये।
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