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रायपुर/शौर्यपथ /छत्तीसगढ़ी बेहद समृद्ध भाषा है। साहित्य की हरेक विधाओं पर इसमें लेखन -प्रकाशन कार्य में तेजी आई है, किन्तु वर्तमान में पुस्तक कम गुगल पठन का बढ़ता चलन चिंतनीय है।उक्त विचार पद्मश्री डॉ सुरेंद्र दुबे ने प्रेस क्लब के सभागार में व्यक्त किए।अवसर था रामेश्वर वैष्णव के व्यंग्य संग्रहों 'उत्ता धुर्रा - उबुक चुबुक' विमोचन का। आगे उन्होंने कहा
रामेश्वर वैष्णव जैसे श्रेष्ठ व्यंग्यकार के लेखन का मूल्यांकन होना अभी शेष है। वे उम्दा सृजन -प्रदर्शन करने में माहिर हैं। ।
कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ सुधीर शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ी गीत - ग़ज़ल और हास्य -व्यंग लेखन को राष्ट्रीय क्षितिज पर स्थापित करने में श्री वैष्णव का योगदान शरद जोशी की भांति है। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ देवधर महंत ने "ऊत्ता -धूर्रा और उबुक चुबुक" पर समीक्षात्मक टिप्पणी दी। उन्होंने कहा काव्य रचनाओं की तुलना में कम होते व्यंग्य लेखन को पाटने की सफल कोशिश की है।
मंचासीन सह अध्यक्ष ए. एन.बंजारा ने कहा कि शिक्षा जगत में छत्तीसगढ़ी पाठ्यक्रम के लिए रास्ता खुला है।इसी क्रम में डॉ वैभव बेमेतरिहा ने छत्तीसगढ़ी में पठ़न पाठन करने बल दिया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि रामेश्वर शर्मा, राजेश्वर खरे ने हिंदी के समक्ष छत्तीसगढ़ी की उपेक्षा को रेखांकित किया। कार्यक्रम का रोचक संचालन वरिष्ठ साहित्यकार विजय मिश्रा 'अमित' ने तथा आभार प्रदर्शन संजय कबीर शर्मा ने किया।
कार्यक्रम में विशेष उपस्थिति डॉ रामेंद्र मिश्र,मीर अली मीर, श्याम बैस, डॉ महेश परिमल, डॉ महेंद्र ठाकुर, राजीव नयन शर्मा, राजकुमार धर द्विवेदी, उमाकांत मनमौजी, जागेश्वर ठाकुर जयंती वैष्णव।
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