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नई दिल्ली/शौर्यपथ /अगर आपने हेल्थ इंश्योरेंस लिया है और इलाज के बाद क्लेम से लेकर उसकी अदायगी तक में काफी दिक्कत आ रही है, तो ये खबर आपने काम की है. लोकल सर्कल ने देशभर में करीब 40 हज़ार लोगों पर सर्वे किया, जिसमें पाया गया है कि क्लेम के रिजेक्शन से लेकर आंशिक भुगतान और मंजूरी मिलने तक में काफी समय लगता है. बीमार को भले ही बीमारी ने निजात मिल जाती हो लेकिन कई मौकों पर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां उनकी तकलीफ को और बढ़ा देती हैं.
नोएडा के सेक्टर 151 में रहने वाली 73 साल की रमा बंसल भी कुछ ऐसी ही तकलीफ से गुजर रही हैं. उन्होंने पिछले साल एम्स में रेटीना की सर्जरी करवाई थी. कोमॉर्बिडिटी की वजह से डॉक्टर ने तीन दिन बाद उनको डिस्चार्ज किया. पहले तो इंश्योरेंस कंपनी ने रिम्बर्समेंट के लिए मना कर दिया. जब उन्होंने डॉक्टर से लिखवाया तब जाकर उनको भुगतान किया गया, उसमें भी उनको 9 हज़ार रुपए कम मिले.
इंश्योरेंस कंपनी ने नहीं किया सर्जरी का पूरा भुगतान
रमा बंसल की बेटी सिंपी बंसल ने बताया कि एम्स में उनकी मां की रेटिना सर्जरी का बिल करीब 27 हजार रुपए बना था. पहले तो इंश्योरेंस कंपनी ने उनका क्लेम रिजेक्ट कर दिया. लिखित अप्रूवल दिखाने के बाद उनको partially reimburse किया गया. उसमें भी उनको 11 - 12 हजार रुपए मिले. इश्योंरेंस कंपनी ने 9 हजार रुपए का भुगतान ये कहकर नहीं किया कि इस तरह की सर्जरी में 24 घंटों से ज्यादा भर्ती रहने की जरूरत नहीं है. ये कहानी अकेले बंसल परिवार की ही नहीं, न जाने कितने परिवारों की है.
15-17% लोगों का रिंबर्समेंट ही नहीं हुआ
लोकल सर्कल के संस्थापक सचिन तापड़िया का कहना है कि साढ़े तीन महीने तक चले इस ऑनलाइन सर्वे में 43% लोगों ने पिछले तीन साल के दौरान हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम में आई परेशानी का खुलासा किया है. देश के 20 से ज़्यादा राज्यों के 302 जिलों के 39 हजार लोगों पर यह सर्वे किया गया था. इसमें करीब 5% लोगों ने बताया कि उनके क्लेम को इंश्योरेंस कंपनी ने खारिज कर दिया. वहीं 15-17% लोगों ने कहा कि इंश्योरेंस कंपनी ने क्लेम की रकम से कम का भुगतान किया. वहीं 20-25% लोगों ने कहा कि उनको सेटलमेंट में काफी लंबा समय लगा और उस दौरान उनको काफी परेशानी झेलनी पड़ी.
प्रोसेसिंग ऑफ क्लेम सबसे बड़ी परेशानी
सचिन तापड़िया ने बताया कि इस सर्वे में 302 जिलों से रिस्पॉन्स मिला. सर्वे में 40 हजार लोगों ने हिस्सा लिया. उन्होंने कहा कि हेल्थ इंश्योरेंस ऐसा मुद्दा है, जिस पर पिछले 4 साल से कंसर्न आ रहे हैं. प्रोसेसिंग ऑफ क्लेम सबसे बड़ा इश्यू है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि क्लेम रिजेक्ट किए जाते हैं. कई अस्पतालों के खर्चों को अलाउ ही नहीं किया जाता है. इन सभी मामलों में बहुत लंबा टाइम लगाया जाता है. उन्होंने कहा कि इस वजह से सिर्फ मरीजों को ही नहीं बल्कि अस्पतालों की भी मुसीबत बढ़ती है.
रिंबर्समेंट में देरी होना तो आम बात
ग्रेटर नोएडा के द होप हॉस्पिटल के सीएमडी डॉक्टर विनॉय उपाध्याय का कहना है कि शायद ही ऐसा वाकया हो जब आप सेटलमेंट के लिए बिल भेजें और आसानी से इंश्योरेंस कंपनी मान जाए. उन्होंने कहा कि बार बार क्वेरी आती है और टीम जवाब दे रही होती है. रिंबर्समेंट में देरी होना तो बहुत आम बात है. उन्होंने बताया कि कुछ मामलों में तो मरीजों को जेब से भी पैसे देने पड़ते हैं. बता दें कि इस डेटा को लोकल सर्कल, इंश्योरेंस रेगुलेटर एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के चेयरमैन के साथ भी साझा करेगी, ताकि दखल के ज़रिए इस तरह के हालात का हल निकाला जा सके.
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