August 06, 2025
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गाजियाबाद में बेड न मिलने से सड़क पर ऑक्सीजन ले रहे कोरोना मरीज, गुरुद्वारे पर जुटी भीड़

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नई दिल्ली / शौर्यपथ / दिल्ली-एनसीआर के अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन का संकट किस कदर गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बेहाल कोरोना मरीजों को सड़क पर ही ऑक्सीजन देनी पडऩे की नौबत आ गई है. दिल्ली से महज 20 किमी दूर गाजियाबाद में बेड न मिलने से सड़क पर ही लोगों को ऑक्सीजन देकर जान बचाई जा रही है. कोविड बेड के लिए मरीजों के दर दर भटकने के बाद लोग मजबूर हैं.सड़क पर ऑक्सीजन का सिलेंडर रखा है और मरीज कार में हैं. एक बीमार महिला ऑक्सीजन का सिलेंडर लेकर फुटपाथ पर बैठी है.
ये तस्वीर गाजियाबाद की पॉश कालोनी है, न कि किसी दूरदराज इलाके की. जहां जान बचाने की ये जद्दोजहद किसी अस्पताल के अंदर नहीं बल्कि सड़क पर चल रही है. इस महिला के पास कार नहीं लिहाजा सड़क के किनारे इसे बैठाकर आक्सीजन दिया जा रहा है. इंदिरापुरम के एक तरफ के रास्ते को आम आवाजाही के लिए बंद कर दिया गया है. इंदिरापुरम के गुरुद्वारे के वालंटियर्स कुछ आक्सीजन सिलेंडर के जरिए गंभीर मरीजों को आक्सीजन देने की कोशिश कर रहे हैं.
इंदिरापुरम गुरुद्वारे के गुरमीत सिंह प्रधान ने कहा कि कल रात से हम दो सौ लोगों को आक्सीजन दे चुके है. हम कहां कहां से लेकर सिलेंडर आ रहे हैं. सरकार की व्यवस्था फेल है जब तक मिलेगा तब तक कोशिश करते रहेंगे लोगों की जान बचाने की. यहां कोई अपनी मां को आक्सीजन दे रहा है तो कोई अपने पिता को आक्सीजन की उम्मीद में लाया है.लोग हैरान परेशान हैं और गुरुद्वारे के सामने आक्सीजन लेने वालों की कतार लगी है. पर आक्सीजन कम है मरीजों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है.
गाजियाबाद में कोविड बेड की किल्लत को देखते हुए अब 28 निजी अस्पतालों को भी कोविड अस्पताल बनाया गया है. लेकिन हर रोज जब एक हजार से ज्यादा करोना से संक्रमित मरीज आ रहे हो तो ये व्यवस्था भी ध्वस्त होती दिख रही है.गाजियाबाद से करीब बीस किमी दूर पिलखुवा के रामा अस्पताल में बैठी शीला गंभीर तीन दिन से अस्पतालों के चक्कर लगाकर थक चुकी है लेकिन इनके पिता को कोई भर्ती नहीं कर रही है.
रोते हुए शीला गंभीर ने कहा, मैं भी एक टीचर हूं. छोटे बच्चे को घर छोड़कर अपने मां बाप के लिए तीन दिन से बेड तलाश रही हूं.कहीं कोई बेड नहीं मिल रही है भय्या क्या करुं. रामा अस्पताल ने भर्ती करने का आश्वासन दिया है. उम्मीद बंधी है. लेकिन तमाम गंभीर मरीज अब भी एक अदद आक्सीजन बेड के लिए भटक रहे हैं.

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