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मुंबई/शौर्यपथ / कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार की ओर से लगाई गई सख्ती का असर अब आम आदमी की जेब पर पड़ता नज़र आ रहा है. लोगों के पास न काम है और न ही पैसा. टीकाकरण के लिए ऑनलाइन रेजिस्ट्रेशन करना पड़ता है, लेकिन स्मार्टफोन नहीं होने के वजह से लोग वह भी नहीं करा पा रहे हैं. किन्नर समाज भी इस लॉकडाउन से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. मुंबई से सटे उल्हासनगर में रहने वालीं रवीना जगताप किन्नर समाज से आती हैं, लॉकडाउन के कारण इनकी आमदनी के सारे साधन बंद हो चुके हैं. उनका कहना है कि अब तो हमें ये भी नहीं पता कि अपना गुजारा कैसे करें. रवीना जगताप का सवाल है कि क्या हमें कोई काम दे सकता है? अगर हम बिज़नेस करना चाहें तो कोई करेगा क्या?
उनका कहना है कि शासन ने जो महिला और पुरुष के लिए कुछ सुविधा की है, उसमें हमारा नाम तो लिया ही नहीं है, हम भी समाज के घटक हैं, हमारे तरफ भी ध्यान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार हम पर ध्यान नहीं देती है. केवल किन्नर समाज के लोग ही नहीं बल्कि मजदूर और घरों में काम करने वाले लोग भी परेशान हैं. 64 वर्षीय सबीना डिकोस्टा की तबीयत अक्सर खराब रहती है, काम करने की इच्छा नहीं है, लेकिन घर का गुज़ारा करने के लिए कुछ घरों में बर्तन धोने का काम करती हैं. अगले महीने बेटे की शादी है, जोकि मजदूरी करता है. कुछ दिनों से उसके पास भी काम नहीं है, शादी कैसे होगी पता नहीं. साथ ही बीमारी होने के वजह से दवाई के लिए भी पैसे जुटाना पड़ता है. वो कहती हैं कि मैं किसी से पैसे मांगकर दिन निकालती हूं, दवाई लेकर आती हूं. 8 दिन की दवाई एक दो दिन छोड़कर खाती हूं और किसी तरह 15 दिन निकालती हूं.
यही हाल लता अडगले का भी है, कहीं काम नहीं मिलने के वजह से वो घर पर ही रहने को मजबूर हैं. वो बताती हैं कि नाके पर जाते हैं, कोई काम नहीं मिलता है तो वापस आते हैं. घरों में काम है, बस वही करते हैं. इसी तरह मजदूरी और पेंटिंग का काम करने वाले विजय दाभाड़े हर रोज़ सुबह लेबर चौक जाते हैं, इस उम्मीद के साथ कि काम मिल जाएगा. सरकार ने कहा है कि मजदूरों को काम करने दिया जाएगा, लेकिन काम कहीं है ही नहीं. उन्होंने बताया कि हर महीने घर में 10 हज़ार का खर्च है ही, पिछले महीने केवल 10 दिन काम मिला है और इस महीने 3 दिन काम किया हूं. इतने रुपयों में घर नहीं चलेगा, इसलिए कहीं ना कहीं से कर्ज लेना है.
अपने गुज़ारे के लिए हो रही परेशानी के अलावा इन सभी लोगों के सामने टीका लगवाना भी एक चुनौती से कम नहीं. असंघटित कष्टकरी कामगार संघटना के अध्यक्ष सुनील अहिरे बताते हैं कि अधिकांश लोगों के पास स्मार्टफोन नहीं है इसलिए वो टीकाकरण के लिए ऑनलाइन स्लॉट बुक नहीं कर पाते हैं और टीकाकरण केंद्र पर इनके लिए कोई सुविधा भी नहीं दी गई है . सरकार की ओर से जब भी किसी नियम का ऐलान किया जाता है, तब यह उम्मीद की जाती है कि अंतिम छोर में खड़े व्यक्ति के बारे में सोचकर उस नियम को बनाया गया होगा लेकिन ज़मीनी हालात देखकर ऐसा लगता नहीं है कि आम आदमी के बारे में सोचा गया होगा. ऐसे में केवल उम्मीद की जा सकती है कि सरकार इन परेशानियों को समझे और बदलाव लाए ताकि आदमी को इससे राहत मिल सके.
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