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नई दिल्ली / शौर्यपथ / मोतिहारी बिहार के मोतिहारी जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध केसरिया बुद्ध स्तूप इन दिनों बाढ़ के संकट से जूझ रहा है. केसरिया बौद्ध स्तूप चारों ओर से बाढ़ के पानी से घिरा हुआ है. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, हर साल मॉनसून आने पर केसरिया स्तूप को जाने वाले रास्ते ठप पड़ जाते हैं. विश्व विख्यात महात्मा बुद्ध की अंतिम शरणस्थली को लेकर प्रशासन की बेरुखी इसे काफी नुकसान पहुंचा रही है. कल ही जिले के प्रभारी मंत्री सुनील कुमार व मोतिहारी जिलाधिकारी ने बौद्ध स्तूप का दौरा किया था.
बता दें कि मोतिहारी जिले के आधा दर्जन से अधिक प्रखंड व दर्जनो पंचायत सहित सैकड़ों गांव बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हैं. बाढ़ का पानी विश्व की ऐतिहासिक धरोहर केसरिया स्तूप तक पहुंच चुका है. पानी इतना है कि यहां पर्यटकों का आना-जाना बंद है.
इस संबंध में पूछे जाने पर मोतिहारी जिलाधिकारी कपिल अशोक ने बताया कि उक्त स्तूप आर्टिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधीन है. पिछले साल भी यहां काफी पानी जमा हो गया था. जिसे लेकर भारत सरकार को पत्र भेजा गया था, लेकिन कोई कारगर कदम नहीं उठाए गए. इस बार भी जिला प्रशास द्वारा इस समस्या को लेकर पत्राचार किया जा रहा है. बाढ़ का पानी चिंता का विषय है.
राजधानी पटना से लगभग 110 किमी दूर स्थित केसरिया स्तूप की परिधि लगभग 400 फीट है. यह लगभग 104 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित स्तूप का निर्माण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व हुआ था. इसे दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप माना जाता है और यह कई बौद्ध देशों के पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है.
1814 में कर्नल मैकेंज़ी के नेतृत्व में स्पूत की खोज शुरू हुई थी. बाद में, 1861-62 में जनरल कनिंघम द्वारा और 1998 में पुरातत्वविद् के.के. मुहम्मद ने इस स्थल की ठीक से खुदाई करवाई थी. मूल केसरिया स्तूप को सम्राट अशोक (लगभग 250 ईसा पूर्व) के समय का कहा जाता है क्योंकि वहां एक अशोक स्तंभ के अवशेष मिले थे.
स्थानीय लोग स्तूप को "देवालय" कहते हैं जिसका अर्थ है "देवताओं का घर". एएसआई ने इसे राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित स्मारक घोषित किया है. हालांकि, स्तूप का एक बड़ा हिस्सा अभी अनछुआ है.
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