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दुर्ग / शौर्यपथ / मुझे राजनीति की उतनी समझ नहीं कि किसी के कार्यो का आंकलन करू किन्तु जैसा कि पिछले दिनों कांग्रेस में बड़े बदलाव हुए और कई कद्दावर नेताओ के कद कम कर दिए गए और कई नेताओ को ज्यादा शक्तिया प्रदान की इस तरह की चर्चा हर कोई अपने अपने स्तर पर कर रहा है कोई इसे मनमानी फैसला दे रहा है तो कोई इसे राजनीति दबाव का नाम दे रहा है तो कोई इसे राहुल गांधी के अनुसार किये गए फैसले की बात कर रहा है . हर कोई अपने अपने स्तर पर आंकलन करते हुए किसी को अच्छा तो किसी को पार्टी के लिए घातक बता रहा है किन्तु इन सब उलटफेर के बीच ऐसा कोई भी समाचार पत्र या न्यूज़ चेनल ने मोतीलाल वोरा के सन्दर्भ में कोई पक्ष या विपक्ष की बात की सबका एक ही मत रहा कि मोतीलाल वोरा को उम्र के इस पडाव में अब आराम देने के लिए पार्टी में कोई जिम्मेदारी नहीं दी गयी . 92 वर्ष के मोतीलाल वोरा गांधी परिवार के बेहद करीबी है और कांग्रेस के प्रति उनकी वफादारी पर कभी कोई दाग नहीं लगा है . कांग्रेस के कई महत्तवपूर्ण पदों के साथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री , केन्द्रीय मंत्री सहित उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में भी सेवाए दे चुके है . ऐसे कांग्रेसी जो आधी सदी से भी ज्यादा कांग्रेस के साथ रहे अब उनकी उम्र को देखते हुए कांग्रेस संगठन ने उन्हें आराम करने के लिए ही कांग्रेस के संगठन में कोई जिम्मेदारी नहीं दी .
हर राजनेता की सक्रीय राजनीति से एक न एक दिन विदाई होती है किन्तु मोती लाल वोरा की सक्रीय राजनीती और संगठन की राजनीती का अंत बहुत लम्बे समय बाद हुआ . इस राजनीती के कारण मोतीलाल वोरा काफी सालो से अपने पुत्रो से दूर रहे अपने नातियो से दूर रहे विपरीत परिस्थिति में भी मोतीलाल जी वोरा अपनी धर्मपत्नी के साथ दिल्ली में ही निवास करते रहे अब जब संगठन ने उनकी उम्र को देखते हुए उनके सकुशल स्वास्थ्य की कामना के साथ संगठन की राजनीती से मुक्त कर दिया तो दुर्ग शहर के कांग्रेसी को अब लगने लगा कि मोतीलाल वोरा अब अपने घर आयेंगे अपने पुत्रो के साथ अपने नातियो के साथ रहेंगे . उम्र के इस पडाव में हर कोई चाहता है कि अपने सबसे प्यारे दोस्त ( दादा के लिए पोता ही सबसे प्यारा दोस्त होता है ) के साथ रहे . चूँकि प्रदेश की युवा राजनीती में संदीप वोरा के सक्रीय होने के कारण दादा मोतीलाल वोरा के साथ दिल्ली रहना सम्भव नहीं वही पुत्र और दुर्ग विधायक वोरा का भी लम्बे समय के लिए दिल्ली प्रवास संभव नहीं साथ ही दुसरे पुत्र अरविन्द वोरा का व्यवसाय भी भिलाई में होने के कारण दिल्ली प्रवास संभव नहीं यानी कि एक सम्पूर्ण परिवार जिसमे बेटा , बहु पोता सब है इनसे दूर रहना शायद अब मोतीलाल वोरा को भी ज्यादा दिन रास नहीं आएगा . अभी तक संगठन के जिम्मेदार पद पर होने के कारण मोतीलाल वोरा दिल्ली प्रवास में थे किन्तु अब कांग्रेस के किसी भी ऐसे पद पर नहीं है कि वहा रहना जरुरी हो . वही पिता को भगवान् की तरह पूजने वाले अरुण वोरा भी अब शायद अपने पिता को दिल्ली से वापस दुर्ग लाने का प्रयास करेंगे .
यह सोंच मेरी है मुझे ऐसा महसूस हुआ कि देश के कद्दावर कांग्रेसी नेता दुर्ग के बाबूजी को अब उम्र के इस दौर में अपने गृह निवास अपने परिजनों के पास , अपने दोस्तों ( नाती पोते ) के पास आ कर उनके साथ समय बिताना चाहिए . किन्तु मोतीलाल वोरा जी की क्या मर्जी है क्या वे अभी भी अपने बच्चो से दूर रहेंगे कहने को उनके बच्चो के लिए दुरी सिर्फ दो घंटे ( हवाई जहाज से ) की दुरी है किन्तु दुरी तो दुरी है . क्या अरविन्द वोरा और अरुण वोरा अपने पिता को वापस दुर्ग लाने का प्रयास करेंगे ये उन पर निर्भर है उनके परिवार की बाते है जिस पर फैसला लेने का हक उनका है और किसी का नहीं .
अगर ये किसी सामान्य परिवार की बात होती तो कोई चर्चा ही नहीं होती किन्तु ये एक ऐसे व्यक्ति की चर्चा है जिनसे जुडी हर बात समाचार बनती है , ये एक ऐसे व्यक्ति की चर्चा है जिन्होंने दुर्ग में वार्ड की राजनीती से केंद्र की राजनीती का सफऱ किया और राजनैतिक सन्यास भी ससम्मान मिला ना कोई विरोध ना कोई विवाद के . शायद इस समय कांग्रेस के ये अकेले ऐसे व्यक्ति है जो सालो की राजनीती के बाद भी दुर्ग से सालो दूर रहने के बाद भी दुर्ग की जनता के दिलो में बसे हुए है इस लिए इनका हर फैसला एक समाचार का रूप ले लेता है .
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