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जिला चिकित्सालय से ठेके में इलाज के लिए गए मरीज की हुई मौत जिम्मेदार कौन
108 की सुविधा शासकीय अस्पताल के लिए या निजी अस्पताल के लिए जांच का विषय ?
दुर्ग / शौर्यपथ /
एक समय चिकित्सक को भगवान् के रूप में देखा जाता था और चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोग सेवा भाव की मिसल बनते थे किन्तु वर्तमान समय में चिकित्सा एक व्यापार के रूप में नजर आने लगा है जहाँ मरीज की जान से ज्यादा पैसे की भूख नजर आने लगी है . कोई भी व्यक्ति जो चिकित्सा क्षेत्र से ना जुड़ा हो पैसे की ताकत से चिकित्सा का व्यापार करने में माहिर हो रहा है . शहर में आज भी ऐसे कई नर्सिंग होम है जिनके मालिक चिकित्सा के प्रथम पायदान से भी अनजान है किन्तु बड़े बड़े बीमारियों का इलाज करने का दावा करते है और अगर इस दावा में मरीज को कुछ हो जाए तो मामले को दबाने की कोशिश में लग जाते है . कई बार मामले को दबाने में सफलता भी मिल जाती है तो कई बार असफल भी हो जाते है .
हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया जहा चिकित्सा के आड़ में व्यापार का खेल ऐसा चला कि एक मासूम की जान चली गई . एक ऐसा नवयुवक जो अभी जिन्दगी के 20 बसंत भी नहीं देखा मौत के आगोश में खो गया . घर का सबसे छोटा सदस्य इस खेल का ऐसा शिकार हुआ कि फिर दुनिया को ना देख पाया . चिकित्सा के इस खेल में क्या गलत क्या सही यह जाँच का विषय है .
मामला इस प्रकार है कि 10 दिसंबर को ग्राम खुतेरी निवासी रोहित कवर आयु 19 वर्ष का क्रेशर में हाथ आने से कोहनी के ऊपर से कट गया जिसके बाद उसे क्रेशर मालिक द्वारा गुंडरदेही के शासकीय अस्पताल लेजाया गया जहाँ चिकित्सको ने मामले की गंभीरता को देखते हुए शासकीय एम्बुलेंस 108 से जिला चिकित्सालय दुर्ग रेफर किया . साथ में एक चिकित्सक / नर्स भी मौजूद रहे . असली खेल यही से शुरू हुआ . एम्बुलेंस में ही शासकीय ड्राईवर और सहायक द्वारा एस आर अस्पताल ले जाने और उच्च इलाज की बात मरीज के साथियो से कही जाने लगी . किन्तु शासकीय वाहन होने से दुर्ग जिला अस्पताल ले जाना भी आवश्यक था और यही किया गया किन्तु दुर्ग जिला चिकित्सालय पहुँचते ही कही से एस आर हॉस्पिटल के कुछ लोग आ गए और मरीज को एस आर अस्पताल ले जाने तथा उच्च श्रेणी की चिकित्सा की बात कही . मरीज के परिजनों को भी एम्बुलेंस में बैठे शासकीय कर्मचारियों द्वारा भी रास्ते भर यही सलाह दी जाती रही .
दुर्ग जिला चिकित्सालय पहुँचते ही सिर्फ फार्मेल्टी निभाया गया और अचानक चिकित्सालय परिसर में एस आर अस्पताल की एम्बुलेंस आ गई जिसमे मरीज को तुरंत एस आर अस्पताल ले जाया गया .
एस आर अस्पताल पहुँचते ही मरीज के परिजनों से 2 लाख में कटे हाथ का इलाज कार जोड़ने का ठेका हुआ जिसमे दवा खर्च अलग . किन्तु दुसरे दिन ओपरेशन के बाद शाम तक मरीज की हालत गमीर होने लगी तब मरीज के परिजन अन्य अस्पताल में बेहतर इलाज की बात कहने लगे किन्तु मरीज की गंभीर स्थिति को अनदेखा करते हुए एस आर अस्पताल प्रबंधन बचे हुए राशि जो डेढ़ लाख से भी अधिक की मांग करने लगा और बिना राशि जमा किये मरीज को नहीं जाने दिया गया . स्थिति यह हुई कि अगली सुबह मरीज ने अंतिम साँस ली .
प्रातः 4 बजे के लगभग मृत्यु होने के पश्चात भी ठेके से इलाज का दावा करने वाले एस आर अस्पताल ने बकाया राशि नहीं जमा करने पर मृतक देह ना देने पर अड़े रहे . परिजनों , मित्रो और मिडिया की भीड़ बढ़ते देख आखिर कार घंटो बाद दोपहर 2 -3 बजे मृतक देह देने को एस आर अस्पताल प्रबंधन तैयार हुआ .
उक्त बाते मृतक के भाई ,साथ में आये क्रेशर मालिक और ग्राम के उप सरपंच के बातचीत के आधार पर .
बड़ा सवाल ...
क्या ठेका में इलाज की कोई प्रथा है ?
किस नियम के तहत शासकीय कर्मचारी निजी अस्पताल में इलाज के लिए मरीज के परिजनों को दबाव बनाने लगे ?
किस नियम के तहत निजी एम्बुलेंस शासकीय अस्पताल में पहुंची .?
आखिर एस आर अस्पताल के कौन से एजेंट है जो अस्पताल परिसर में घूमते रहते है ?
जिला अस्पताल से अधिकतर मरीज हायर सेंटर की जगह एस आर अस्पताल कैसे पहुँचते है ?
जांच का विषय और सूचि काफी लम्बी है किन्तु ठेका पद्धति के इलाज की चपेट में 19 वर्ष का युवक अब इस दुनिया में नहीं
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