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दुर्ग। शौर्यपथ विशेष रिपोर्ट।
गरीबों के हक का चावल, जो भारत सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार की पीडीएस योजना के तहत रियायती दरों पर वितरित किया जाता है, वह अब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता दिखाई दे रहा है। दुर्ग जिले के नगरीय निकाय क्षेत्रों में चल रही राशन दुकानों में हजारों किलो चावल रातों-रात सॉफ्टवेयर से गायब हो जाना न केवल एक गंभीर प्रशासनिक चूक है, बल्कि यह स्पष्ट संकेत है कि इस गोरखधंधे में कहीं न कहीं विभागीय संरक्षण भी शामिल है।
26000 किलो चावल गायब – सिर्फ दो दुकानों से
शौर्यपथ की पड़ताल में दुर्ग ग्रामीण क्षेत्र एवं दुर्ग शहरी क्षेत्र की दो राशन दुकानों से एक ही रात में लगभग 26,000 किलो चावल का गायब होना सामने आया है। ऐसे में पूरे दुर्ग जिले में यदि भौतिक सत्यापन कराया जाए तो यह आंकड़ा लाखों किलो तक पहुंच सकता है।
भौतिक सत्यापन या दिखावा?
विभागीय सॉफ्टवेयर में दर्ज स्टॉक से हजारों किलो चावल का गायब होना और फिर भी अधिकारियों द्वारा सिर्फ कागजी सत्यापन कर दुकानदारों को क्लीन चिट देना, यह सवाल खड़ा करता है कि कहीं यह "भ्रष्टाचार की मिलीभगत" तो नहीं?
जवाब देने से कतरा रहे अधिकारी
निरीक्षक टेकेश्वर साहू ने जानकारी ने पल्ला झाड़ते हुए पूरा मामला प्रभारी कंट्रोलर अतरी जी पर डाल दिया।
सहायक खाद्य अधिकारी नेहा तिवारी ने भी अपनी अनभिज्ञता जताकर चुप्पी साध ली।
जबकि प्रभारी कंट्रोलर अतरी जी पिछले दो सप्ताह से ज्यादा समय से "जानकारी लेकर बताता हूं" कहते रहे, पर अब तक कोई स्पष्ट विवरण नहीं दे पाए।
रिटायरमेंट से पहले जवाब से बचना?
सूत्रों के अनुसार, प्रभारी कंट्रोलर अत्री जी 30 जून को रिटायर होने वाले हैं। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि वे इस गंभीर मामले में जवाबदेही से बचना चाहते हैं, जिससे कार्रवाई टलती जा रही है।
क्या जिला प्रशासन लेगा संज्ञान?
जब एक राशन दुकानदार से 50-100 किलो राशन की कमी पर भी सख्त कार्रवाई की धमकी दी जाती है, तो हजारों किलो चावल की गड़बड़ी पर चुप्पी क्यों?
क्या यह लापरवाही है या सुनियोजित हेरा-फेरी?
अब सवाल जनता का – कार्यवाही कब?
जिला कलेक्टर अभिजीत सिंह से आम जनता की अपेक्षा है कि इस प्रकरण में निष्पक्ष जांच कराई जाए,दोषियों को सार्वजनिक रूप से चिन्हित कर कड़ी सजा दी जाए,और पीडीएस चावल वितरण प्रणाली को पारदर्शी बनाया जाए।
? शौर्यपथ की अपील:
जिस चावल से गरीब के घर चूल्हा जलता है, उस पर भ्रष्टाचार का हाथ न पडऩे दें।
यह लेख सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं, बल्कि हर उस गरीब की आवाज है जिसके हिस्से का अन्न सिस्टम निगल रहा है।
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