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भिलाई / शौर्यपथ / प्लास्टिक प्रदूषण से जूझती दुनिया के लिए राहत की खबर आईआईटी भिलाई से आई है। संस्थान के रसायन विभाग की शोध टीम ने पॉलीएथिलीन टेरेफ्थेलेट (PET) के पुनर्चक्रण के लिए एक क्रांतिकारी और पर्यावरण-अनुकूल तकनीक विकसित की है। यह वही प्लास्टिक है जिसका उपयोग पानी की बोतलों, पैकेजिंग और वस्त्रों में बड़े पैमाने पर होता है और जिसके विघटन में सैकड़ों वर्ष लगते हैं।
इस शोध का नेतृत्व प्रियंक सिन्हा, सुदीप्त पाल, स्वरूप माईति और डॉ. संजीब बैनर्जी ने किया। टीम का कहना है कि पारंपरिक यांत्रिक पुनर्चक्रण में पीईटी की गुणवत्ता घट जाती है, जबकि रासायनिक पुनर्चक्रण अत्यधिक ऊर्जा खर्च करने वाला और प्रदूषणकारी होता है। इन चुनौतियों को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने लौह-आधारित नैनो उत्प्रेरक (nano zero-valent iron) का इस्तेमाल कर नई तकनीक तैयार की है।
इस तकनीक से पीईटी को उसके मूल मोनोमर बीएचईटी (Bis(2-hydroxyethyl) terephthalate) में उच्च दक्षता और चयनात्मकता के साथ बदला जा सकता है। सबसे अहम बात यह है कि यह उत्प्रेरक कई बार दोबारा उपयोग किया जा सकता है और इसमें हानिकारक उप-उत्पाद नगण्य निकलते हैं। इसका मतलब है कि यह तकनीक पूर्ण चक्र (closed-loop) प्लास्टिक पुनर्चक्रण की दिशा में मजबूत कदम है, जो कचरे को फिर से मूल्यवान संसाधन में बदलने की क्षमता रखती है।
यह शोध भारत सरकार के डीएसआईआर-सीआरटीडीएच और आईआईटी भिलाई के सहयोग से संपन्न हुआ। विशेषज्ञों का मानना है कि नैनोप्रौद्योगिकी और हरित रसायन (Green Chemistry) का यह संगम प्लास्टिक कचरे की समस्या के लिए एक टिकाऊ और व्यावहारिक समाधान है।
इस उपलब्धि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना मिली है और इसे प्रतिष्ठित जर्नल एसीएस एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। पर्यावरणविदों का कहना है कि आईआईटी भिलाई की यह खोज स्वच्छ, स्मार्ट और सतत भविष्य की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी।
? यह उपलब्धि न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्लास्टिक प्रदूषण पर लगाम लगाने का मार्ग प्रशस्त करती है।
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