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दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग नगर पालिक निगम क्षेत्र के गंजपारा इलाके में शनिवार को एक बड़ा हादसा टल गया। चार मंजिला जर्जर भवन को डिस्मेंटल करने का कार्य पूरी तरह नियम विरुद्ध और बिना उचित अनुमति के किया गया। मकान मालिक और ठेकेदार की लापरवाही से आसपास के बाशिंदों की जान पर बन आई। गनीमत रही कि कोई जनहानि नहीं हुई, लेकिन जिस तरह सुरक्षा उपायों की अनदेखी की गई, वह शहरी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है।
मिली जानकारी के अनुसार, इस भवन को 2023 में पूर्व मालिक ने जर्जर घोषित कर अनुमति ली थी, लेकिन उसने भवन को न तोड़ा और बाद में बेच दिया। नए मालिक ने निगम से न तो कोई ताज़ा अनुमति ली और न ही सुरक्षा संसाधन लगाए। इसके बावजूद तोड़फोड़ का काम धड़ल्ले से जारी रहा।
सुरक्षा नियमों की खुली धज्जियां
भवन गिराने के लिए नियम स्पष्ट हैं—
निगम से अनुमति आवश्यक होती है।भवन तोड़ने से पहले आसपास की बस्तियों को नोटिस दिया जाता है।सुरक्षा घेरा (barricading), धूल नियंत्रण के लिए पानी का छिड़काव और मलबा प्रबंधन अनिवार्य है।प्रशिक्षित मज़दूर और सुरक्षा उपकरण का होना ज़रूरी है।
परंतु गंजपारा में इनमें से एक भी प्रावधान का पालन नहीं हुआ। मौके पर न कोई सुरक्षा घेरा, न धूल नियंत्रण, न ही आसपास के लोगों की सुरक्षा का ध्यान रखा गया।
महापौर का सख्त रुख – FIR के निर्देश
मामले पर महापौर अलका बाघमार ने सख्त नाराज़गी जताते हुए कहा कि ठेकेदार और भवन मालिक पर FIR दर्ज होनी चाहिए। उन्होंने कोतवाली थाना प्रभारी को कार्रवाई के निर्देश भी दिए।
पर्दे के पीछे सौदेबाज़ी की चर्चा
शहर में चर्चा है कि लाखो रुपए खर्च कर मामला दबाने की कोशिश हुई है। यही वजह है कि FIR दर्ज होने की बजाय दूसरे दिन भी डिस्मेंटल का कार्य जारी रहा। यदि यह सच है तो यह न केवल भ्रष्टाचार बल्कि आम नागरिकों की जान के साथ खिलवाड़ है।
कटाक्ष : क्या नियम सिर्फ गरीबों के लिए हैं?
प्रश्न यह है कि जब छोटे दुकानदार, ठेले वाले या गरीब बस्तियों के मकान पर ज़रा सी ग़लती होती है तो निगम और पुलिस तत्काल कार्रवाई में जुट जाती है। वहीं, गंजपारा जैसे बीच शहर में चार मंजिला भवन को बिना अनुमति और सुरक्षा के गिराया जाता है, तो कार्रवाई क्यों ढीली पड़ जाती है?
क्या प्रशासन धनबल के आगे झुक जाता है?
अब निगाह निगम प्रशासन प्रमुख सुमित अग्रवाल की तरफ : अपने सख्त रवैये एवं नियमो का पालन करने के लिए पहचाने जाने वाले आयुक्त की तरफ आम जनता की निगाहे है कि क्या आयुक्त सुमीत अग्रवाल बिना अनुमति के जर्जर भवन को तोड़ने के लिए वर्तमान मालिक एवं नियम विरुद्ध कार्य करने वाले ठेकेदार के विरुद्ध कड़ी कानूनी कार्यवाही करते है या फिर मौन रहते है वही बड़ा सवाल यह है कि क्या चंद पैसे की लालच में क्षेत्रवासी इतने बड़े जोखिम के बावजूद भी मामले को सुलझाने औए अवैधानिक कार्य करने वाले जर्जर भवन के मालिक और ठेकेदार के मामले में मौन रहेंगे ?
निष्कर्ष : गंजपारा का यह मामला सिर्फ एक भवन तोड़ने की कहानी नहीं है, बल्कि यह इस बात का आईना है कि शहर में नियमों और सुरक्षा प्रावधानों का पालन कितना खोखला है। अब देखना यह है कि महापौर के निर्देशों के बाद सचमुच FIR दर्ज होती है या फिर यह मामला भी पर्दे के पीछे सौदेबाज़ी की भेंट चढ़कर दबा दिया जाता है।
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