October 23, 2025
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दीपावली के बाद 38 महिला स्वयं सहायता समूह होंगे बेरोजगार? — दुर्ग निगम का 40 शौचालयों का टेंडर सिर्फ 2 जोन, 2 एजेंसी को देने का फैसला उठा रहा सवाल Featured

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दुर्ग / शौर्यपथ /
  दुर्ग नगर निगम की हालिया योजना — नगर के 40 सुलभ शौचालयों को दो जोन में बाँटकर सिर्फ दो एजेंसी के माध्यम से संचालित कराने के फैसले — स्थानीय महिला स्व सहायता समूहों / एन जी ओ के लिए भंवर बनती नजर आ रही है। 24 अक्तूबर को होने वाली निविदा खोलने से ठीक पहले संचालन कर रहीं दर्जनों समूहों में भारी असमंजस और भय व्याप्त है कि दीपावली के बाद लगभग 38 समूहों का रोजगार ठप हो सकता है।
प्रमुख तथ्य (Quick facts)
कुल शौचालय: 40 (दुर्ग नगर निगम क्षेत्र)।
निविदा जमा की अंतिम तिथि: 24 अक्तूबर।
निगम ने शौचालयों को दो जोन में बाँटकर टेंडर निकालने का निर्णय लिया है — केवल दो एजेंसी को कॉन्ट्रैक्ट दिया जाएगा।
स्थानीय संचालक: अभी कई शौचालय महिला स्व सहायता समूह चला रहे हैं।

नियम-आधार: टेंडर में 24×7 संचालन, केयरटेकर की वर्दी व नेम प्लेट, रजिस्टर संधारण जैसे लगभग दो दर्जन बिंदु पालन अनिवार्य बताए गए हैं — पर मौजूदा स्थिति में इन नियमों का पालन सीमित रहा है।

क्या है मामला?

  निगम की नई प्रक्रिया के तहत 40 शौचालयों को दो जोन में बांटकर उनकी देखरेख व संचालन केवल दो एजेंसी—ठेकेदारों के हवाले करने का निर्णय पारित किया गया है। इन शौचालयों में अब तक कई महिला स्वयं सहायता समूह दैनिक आधार पर सफाई, रखरखाव और संचालन का काम करते आए हैं। नई व्यवस्था लागू होने पर इन छोटे-छोटे समूहों की जगह बड़ी एजेंसियां ले लेंगी — और परिणामस्वरूप लगभग 38 समूह बेरोजगार हो सकते हैं, यह आशंका स्थानीय स्तर पर गूंज रही है।
 स्थानीय संचालकियों का कहना है कि उन्होंने वर्षों से यही काम किया है, उन्हें स्थानीय जरूरतों और शौचालयों के व्यवहार की जानकारी है — पर अब उनकी योग्यता/अनुभव को दरकिनार कर एक केंद्रीकृत मॉडल को लागू किया जा रहा है। दूसरी तरफ नैतिक और प्रशासनिक दृष्‍टि से यह भी कहा जा रहा है कि यदि चुनी गई एजेंसियां नियमों का कठोर पालन करें तो सिटी में स्वच्छता और सुविधा में सुधार भी दिख सकता है — बशर्ते अनुबंध पारदर्शी और जवाबदेह हों।

प्रमुख चिंताएं

1. रोज़गार पर बड़ा प्रभाव — छोटे महिला समूहों को आय का स्रोत समाप्त हो सकता है।
2. पारदर्शिता का अभाव — निविदा प्रक्रिया पहले से तय शर्तों और पक्षपात के आरोपों से ग्रसित दिखाई दे रही है; चर्चा है कि पहले से तय एजेंसियों को लाभ दिए जा सकते हैं।
3. कमीशन-खोरी का खतरा — बड़े कॉन्ट्रैक्ट में कमीशन की संभावना स्थानीय लोगों में चिंता बढ़ा रही है।
4. निगम का अनुपालन और निरीक्षण — 24×7 नियम, केयरटेकर वर्दी, रजिस्टर संधारण जैसे बिंदुओं का अब तक पूरा पालन नहीं हुआ — लेकिन इनका कठोर पालन भी आवश्यक होगा।

दो सम्भावित परिदृश्य

सकारात्मक परिदृश्य: यदि चुनी गई एजेंसियाँ नियमों के अनुरूप हर शौचालय पर कर्मियों की तैनाती, नियमित सफाई, समय-समय पर निरीक्षण और पारदर्शी रिपोर्टिंग करती हैं, तो सार्वजनिक सुविधाओं की गुणवत्ता में सुधार संभव है।

नकारात्मक परिदृश्य: यदि टेंडर प्रक्रिया अपारदर्शी रही और एजेंसियाँ निजी हित साधने के लिए संसाधनों को केंद्रीकृत कर लें, तो न तो स्थानीय समूहों को न्याय मिलेगा और न ही शौचालयों की गुणवत्ता टिकाऊ रूप से सुधरेगी — उल्टा भ्रष्टाचार व कमीशन-खोरी बढ़ सकती है।

शारीरिक व प्रशासनिक चुनौतियाँ

निगम की पहले से चली आ रही कचरा प्रबंधन और सफाई व्यवस्था में जो कमियाँ रही हैं, वे इस नए मॉडल के सफल क्रियान्वयन के सामने बड़ी चुनौती बनेंगी। केवल टेंडर देना और एजेंसी बदलना पर्याप्त नहीं होगा — अनुबंध की मॉनिटरिंग, स्वास्थ्य विभाग का सख्त निरीक्षण और नियमित रिपोर्टिंग-तंत्र आवश्यक हैं।

स्थानीय प्रतिक्रिया और मांग

महिला स्वयं सहायता समूह और नागरिक संगठन अब निगम से पारदर्शिता, निविदा दस्तावेजों की सार्वजनिक उपलब्धता और पूर्व संचालकों के अनुभव को योग्यता मानने की मांग कर रहे हैं। आरोप है कि कुछ समूहों के आवेदन तकनीकी कारणों से खारिज किए जा सकते हैं ताकि चयन पहले से तय एजेंसी को मिल सके — यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ऐसी कोई गड़बड़ी न हो।

आगे क्या देखने को मिलेगा

24 अक्तूबर को निविदा खुलने के बाद ही स्पष्ट होगा कि कौनसी एजेंसी(यां) विजयी होती हैं और क्या निविदा दस्तावेजों में पारदर्शिता बनी रहती है।
स्थानीय प्रतिनिधियों, समूहों और नागरिकों को भी इस प्रक्रिया पर नजर रखनी होगी — ताकि रोज़गार-क्षति और संभावित भ्रष्टाचार को रोका जा सके।

निष्कर्ष: निर्णय—जो सैद्धान्तिक रूप से स्वच्छता सुधार का माध्यम बन सकता है—वह यदि निष्पक्ष, पारदर्शी और कड़ाई से लागू न किया गया तो 38 के आसपास महिला स्वयं सहायता समूहों के रोजगार के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। दुर्ग नगर निगम के लिए चुनौती यह है कि वह निविदा प्रक्रिया और बाद के अनुबंध-पालन में इतने पारदर्शी और जवाबदेह बने कि न सिर्फ सेवाओं की गुणवत्ता सुधरे बल्कि स्थानीय हितधारकों — विशेषकर उन महिलाओं — का जीवन-यापन प्रभावित न हो।

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