September 09, 2025
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जानलेवा अकेलापन

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मेलबॉक्स / शौर्यपथ / फिल्म ‘छिछोरे’ में एक पिता आत्महत्या करने की कोशिश करने वाले अपने बेटे को अवसाद से उबारते हुए कहते हैं, ‘अगर जिंदगी में सबसे अधिक कुछ जरूरी है, तो वह है, खुद की जिंदगी’। इस डायलॉग को कहने वाले रील लाइफ के अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत खुद को असली जिंदगी के अवसाद से उबार न सके। आखिर क्यों? जब हमें काफी मेहनत के बाद सफलता मिलती है, तो हम उस सफलता के इतने दीवाने हो जाते हैं कि जरा-सी असफलता भी हमें अंदर से तोड़ देती है। इस तरह की असफलता हमें अवसाद की ओर ले जाती है। संयुक्त परिवार न होना हमारे अकेलेपन पर हावी हो जाता है, जिसके कारण हम इतने परेशान हो जाते हैं कि अपनी सबसे कीमती जिंदगी भी स्वयं समाप्त कर देते हैं। अवसाद में डूबे इंसान के लिए अकेलापन जानलेवा होता है। इस समय हमें सबसे अधिक अपनों की जरूरत होती है, जो हमारा ख्याल रख सके। अपने सहयोगी कर्मचारियों के होने के बावजूद प्यार और ख्याल रखने वाले अपनों की कमी ने शायद सुशांत सिंह राजपूत को हमसे दूर कर दिया।
आनंद पाण्डेय, रोसड़ा

रक्तदान की जरूरत
रविवार को पूरी दुनिया ने रक्तदान दिवस मनाया। मगर रक्तदान का दिन तो हर रोज है, क्योंकि हर पल, किसी न किसी के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण होता है। जरूरतमंद को रक्त मिल जाए, तो उसकी जान बचाई जा सकती है। लेकिन आज की सच्चाई यह भी है कि रक्तदान करने से कई पढ़े-लिखे लोग भी डरते हैं। इससे जुड़ी कई भ्रांतियां हमारे समाज में मौजूद हैं, जिनको दूर करना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही ब्लड बैंक की उपलब्धता भी हर जगह होनी चाहिए। हर गांव-हर शहर में ब्लड बैंक का जाल होना आवश्यक है। अगर ऐसा होता है, तो रक्तदान करने लोग स्वयं आगे आ सकेंगे और आपात स्थितियों में किसी को भी खून की कमी से नहीं जूझना होगा। सिर्फ रक्तदान दिवस मनाने से कुछ नहीं होगा, रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास भी सरकारों को करना होगा।
प्रदीप कुमार दुबे, देवास, मध्य प्रदेश

बॉलीवुड पर ग्रहण
इस साल लगता है, बॉलीवुड को ग्रहण लग गया है। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत दुनिया को अलविदा कह गए। अभी कुछ दिनों पहले ही इरफान खान और ऋषि कपूर ने भी हमसे विदाई ली थी। साफ है, कोरोना काल में न जाने कितनी विपदाएं आई हैं और न जाने कितना कुछ देखना बाकी है। बहरहाल, सुशांत सिंह की मौत का रहस्य शायद ही सामने आ पाए, लेकिन इससे पता चलता है कि बॉलीवुड में हंसते-मुस्कराते चेहरे के पीछे भी कई गहरे राज छिपे होते हैं। जिंदगी में सब कुछ मिलने के बाद भी कोई कलाकार जीवन से नाखुश हो सकता है। इतना सुलझा, शांत और सादगी भरा जीवन जीने वाला इंसान इतना अकेला कैसे हो गया, और दुनिया को इसका पता भी नहीं चल सका, ताकि उसका हाथ थामकर उसे तनाव से बाहर निकाल लिया जाता? ग्लैमर की दुनिया का शायद अलग ही दस्तूर है, जो आम आदमी कतई नहीं समझ सकता।
संजय कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड

लापरवाह तंत्र
कोरोना से संक्रमित लोगों की सारी उम्मीदें अस्पताल और डॉक्टरों द्वारा हो रहे इलाज पर टिकी हैं। लेकिन यह अफसोस की बात है कि अस्पतालों में मरीजों को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, वे उन्हें नहीं मिल रही हैं। वहां मरीजों की संख्या के हिसाब से बेड कम हैं और साफ-सफाई पर भी कुछ खास ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में, सवाल यह है कि क्या अस्पतालों की इस कुव्यवस्था को दूर करने के लिए सरकार कोई सख्त कदम उठाएगी? डॉक्टर, नर्सें और पैरा मेडिकल स्टाफ, जो दिन-रात कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में जुटे हुए हैं, उनकी सेहत और सुरक्षा पर भी ध्यान देना जरूरी है।
मिताली, नई दिल्ली

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