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परवरिश /शौर्यपथ/
जब बच्चे छोटे होते हैं, तो आपके इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं। दिल में आया हर ख़्याल आपसे बांटते हैं। आपका साथ उन्हें अच्छा लगता है, लेकिन वही बच्चे जब किशोरावस्था में क़दम रखते हैं तो सबकुछ बदल जाता है। अब वे आपसे ज़्यादा, अपने दोस्तों के साथ रहना पसंद करते हैं। अब वे आपको कुछ नहीं बताते। आप कुछ समझाने जाएं, तो वे और झल्लाते हैं, चिढ़ते हैं और आपसी दूरियां बढ़ती ही जाती हैं। उम्र के इस नाज़ुक मोड़ पर ना आप उन्हें समझ पाते हैं, ना ही वे आपको। यह ऐसी उम्र है, जहां आप उन्हें सज़ा नहीं दे सकते, डरा-धमका नहीं सकते, चूंकि ऐसा करने पर वे और बिगड़ेंगे।
किशोरों में ग़ुस्सा, चिड़चिड़ापन, नाराज़गी और बदतमीज़ी से बात करने की आदत आम है। लेकिन इससे घबराएं नहीं। जिन बातों को लेकर आप उनसे नाराज़ हों, शांति से पहले उनके समूचे पक्ष को सुनें और फिर बताएं कि आप उनसे क्यों नाराज़ हैं। साफ़गोई से अपनी बात रखें। उन्हें विस्तार से यह समझाने की कोशिश करें कि आप उन्हें अगर कुछ करने से रोक रहे हैं, तो इसकी वजह क्या है। इससे उन्हें क्या नुक़सान हो सकते हैं? अगर उन्हें ग़ुस्से में कुछ करने से मना करेंगे, तो वे आपकी बात क़तई नहीं मानेंगे।
अगर आप यह समझ नहीं पा रहे हैं कि उन पर अपनी नाराज़गी कैसे ज़ाहिर करें, तो सबसे पहले बातचीत ऐसे विषय से शुरू करें, जिसमें उनकी रुचि हो। जैसे, किसी खेल या फिल्म सरीखे हल्के-फुल्के विषय से बात शुरू करें। फिर धीरे-धीरे जब माहौल थोड़ा सहज होने लगे, तब अपनी बात रखें। ठीक ढंग से अपनी बात रखें। यदि आपको उनका बर्ताव या कोई आदत ख़राब लगती है, तो उन्हें बताएं कि अमुक दिन उन्होंने ऐसा किया, जो बिल्कुल अनुचित था। जैसे, तुम बहुत बदतमीज़ हो कहने के बजाय आप कह सकते हैं – उस दिन जब तुमने इस तरह बात की, मुझे बहुत बुरा और अजीब लगा। तुम इस तरह के बच्चे नहीं हो
तंज़ कसने या मज़ाक उड़ाने के रवैये में अपनी बात नहीं रखें। किशोरावस्था ऐसी उम्र होती है, जहां आप उन्हें बच्चे की तरह ही देखते हैं, लेकिन वे ख़ुद को वयस्क ही मानते हैं। ऐसे में आप मज़ाक उड़ाने के अंदाज़ में उनसे बात करेंगे, तो उनकी झल्लाहट और बढ़ेगी।
पैरेंटिंग विज्ञान नहीं, कला है। इसके कोई निश्चित नियम नहीं है, बल्कि हालात को देखते हुए आपको कभी कड़ाई से, तो कभी प्यार से उन्हें समझाना होगा। अपनी नाराज़गी ज़रूर जताएं, साथ ही यह भी एहसास दिलाते रहें कि आप उन्हें भली-भांति समझते हैं। कई मर्तबा ऐसा होता है कि कुछ मामलों में आप उनसे खुलकर अपना ग़ुस्सा या नाराज़गी नहीं ज़ाहिर कर सकते। आपको लगता है कि आप बच्चों को गु़स्से में कुछ कहेंगे, तो वे आपको और ग़लत समझेंगे। ऐसे में परिवार के किसी सदस्य, दोस्त, स्कूल काउंसलर, स्पोर्ट्स कोच की मदद ली जा सकती है।
कई शोध और अध्ययनों में पाया गया है कि जिन बच्चों पर पैरेंट्स हाथ उठाते हैं, डराते-धमकाते हैं, उन पर ताउम्र इसका नकारात्मक असर रहता है। यह उनके व्यक्तित्व के विकास में बाधक बनता है। किसी भी स्थिति में मारपीट नहीं करें। यदि आप बहुत ग़ुस्से में हैं, तब कुछ देर के लिए उनसे दूर हो जाएं, गहरी सांस लें और फिर उनके पास जाएं।
कभी हो सकता है कि वे रात देर से घर लौटें और आप ग़ुस्से में तमतमा रहे हों। यहां आपको थोड़ा सब्र रखने की ज़रूरत है। जब आप गु़स्से में हों, उस वक़्त उनसे बात न करें। अगले दिन, शांति से उन्हें बताएं कि उनकी किन आदतों से आप खफ़ा हैं।
उनसे तो अपनी नाराज़गी कहना ज़रूरी है ही, लेकिन ख़ुद के भीतर भी झांकंे। देखें कि आपकी परवरिश और बेहतर कैसे हो सकती है। आपका बच्चा इस तरह क्यूं बर्ताव कर रहा है, इसके पीछे अपने स्तर पर भी वजहें तलाशने की कोशिश करें।
किशोरों में साइबर क्राइम, वॉइलेंट बिहेवियर और ड्रग अब्यूज़ जैसी समस्याएं तेज़ी से बढ़ रही हैं। इसीलिए यह ज़रूरी हो जाता है कि आप उन्हें समझें। उन पर चीख़ने-चिल्लाने से बचें। यदि आप उनसे आक्रामक शैली में बात करेंगे, तो वे और हिंसक हो सकते हैं। संतुलन बरतें। जैसे, उन्हें जताते रहें कि आप उनसे कितना प्यार करते हैं। दूसरी ओर, यह भी साफ़गोई से बताएं कि उनकी कुछ ग़लत आदतों या हरकतों को आप बर्दाश्त नहीं करेंगे। याद रखें कि आप उनके लिए रोल मॉडल हैं। वे आपको देखकर बहुत कुछ सीखते हैं और वही करने लगते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि उन्हें समझाते हुए अपने शब्दों और शैली का ध्यान रखें।
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