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ईश्वर चन्द्र विद्यासागर बंगाल के प्रसिद्ध दार्शनिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक, लेखक, अनुवादक, मुद्रक, प्रकाशक, उद्यमी और परोपकारी थे। बंगाल के पुनर्जागरण के स्तंभों में से एक थे।
शिक्षा /शौर्यपथ/
1. विद्या सबसे अनमोल धन है। इसके आने मात्र से ही सिर्फ अपना ही नहीं अपितु पूरे समाज का कल्याण होता है।
2. संसार में सफल और सुखी वही लोग हैं जिनके अंदर विनय हो और विनय विद्या से ही आती है।
3. जो व्यक्ति दूसरों के काम ना आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है।
4. समस्त जीवों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ बताया गया है, क्योंकि उसके पास आत्मविवेक और आत्मज्ञान है।
5. कोई मनुष्य अगर बड़ा बनना चाहता है, तो वह छोटे से छोटा काम करे क्योंकि स्वावलंबी ही श्रेष्ठ होते हैं।
6. बिना कष्ट के ये जीवन बिना नाविक की नाव जैसा है, जिसमें खुद का कोई विवेक नहीं।
7. अगर सफल और प्रतिष्ठित बनना है, तो झुकना सीखो। क्योंकि जो झुकते नहीं, समय की हवा उन्हें झुका देती है।
8. एक मनुष्य का सबसे बड़ा कर्म दूसरों की भलाई और सहयोग होना चाहिए जो एक संपन्न राष्ट्र का निर्माण करता है।
9. मनुष्य कितना भी बड़ा क्यों न बन जाए, उसे हमेशा अपना अतीत याद करते रहना चाहिए।
10. अपने हित से पहले, समाज और देश के हित को देखना एक विवेक युक्त सच्चे नागरिक का धर्म होता है।
11. संयम विवेक देता है, ध्यान एकाग्रता प्रदान करता है। शांति, संतुष्टि और परोपकार मनुष्यता देती है। 12. दूसरों के कल्याण से बढ़कर, दूसरा और कोई नेक काम और धर्म नहीं होता।
13. जो नास्तिक हैं उन्हें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ईश्वर में विश्वास करना चाहिए। इसी में उनका हित है।
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