August 04, 2025
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कला और क्षमता

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     शौर्यपथ /एक सौ तीस करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले देश के 'लोकप्रियÓ प्रधानमंत्री की 'हैसियतÓ नापना असंभव की हद तक मुश्किल होना चाहिए। इसलिए, जब कोई यह कहता है कि गुजरात के मतदाता इस बार प्रधानमंत्री मोदी को उनकी औकात दिखा देंगे तो कहने वाले का मज़ाक उड़ाया जाना स्वाभाविक है। पिछले दो आम चुनावों में अपनी शानदार जीत दर्ज करा कर प्रधानमंत्री अपनी ताकत अच्छी तरह जता चुके हैं। सच तो यह है कि चुनावी जीत के जो मानक प्रधानमंत्री मोदी ने स्थापित किये हैं वे किसी भी व्यक्ति को उसकी औकात का भ्रम करवा सकते हैं। और एक सच्चाई यह भी है कि देश के मतदाता से संपर्क साधने की प्रधानमंत्री की कला और क्षमता भी इस दौरान लगातार सिद्ध होती रही है। ऐसे में जब प्रधानमंत्री किसी चुनावी सभा में यह कहते हैं कि 'मेरी क्या औकात हैÓ तो इसे उनकी विनम्रता ही माना जाना चाहिए।
     हाल ही में एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री ने ऐसी ही विनम्रता दिखाने का प्रयास करते हुए कहा था कि वे तो जनता के सेवक मात्र हैं। एक गरीब परिवार में पैदा हुए व्यक्ति की भला क्या औकात हो सकती है। पर उनके ऐसा कहने का यह तात्पर्य भी नहीं लिया जाना चाहिए कि हमारा प्रधानमंत्री किसी दृष्टि से इतना कमज़ोर है कि वह मतदाता की कृपा मांग रहा है। जो ऐसा मानते हैं उन्हें कुछ ही दिन पहले बाली में बसे भारतीयों के बीच दिये गये उनके भाषण को याद कर लेना चाहिए। इस भाषण में उन्होंने श्रोताओं से पूछा था कि 1914 से लेकर 2022 तक के भारत में उन्हें क्या परिवर्तन दिख रहा है? फिर उन्होंने स्वयं ही इसका उत्तर देते हुए इस परिवर्तन को 'भव्यताÓ से परिभाषित भी किया था। उन्होंने कहा था, 'आज हम भारत में जो कुछ भी कर रहे हैं, भव्य तरीके से कर रहे हैं- हमने दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति बनायी है। दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम हमारे भारत में बना है, दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान भारत में चला था। अस्सी करोड़ भारतीयों को मुफ्त अनाज देने की बात भी इसी क्रम में कही गयी थी। निश्चित रूप से ये उपलब्धियां हैं और यह सब करने वाले की औकात का भी एक उदाहरण है, लेकिन इस उदाहरण की चकाचौंध से इतना भ्रमित हो जाना भी ठीक नहीं है कि अन्य वास्तविकताओं को देखकर भी अनदेखा किया जाता रहे।
    क्या हैं ये अन्य वास्तविकताएं? वास्तविकता यह भी है कि बाली में जिन अनिवासी भारतीयों के समक्ष प्रधानमंत्री भव्यता के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे थे, वे उन 23 हज़ार भारतीय करोड़पतियों का हिस्सा थे जो पिछले आठ वर्ष में भारत छोड़कर विदेशों में जा बसे थे। इस बात को नहीं भुलाया जाना चाहिए कि 2014 में अमेरिका में बसे अनिवासी भारतीयों की अपनी पहली सभा में प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि वे ऐसा भारत बनायेंगे जहां से किसी को विदेश में जाकर बसने की आवश्यकता या विवशता नहीं होगी। फिर क्यों भारतीयों के विदेशों में जाकर पढऩे, विदेशों में जाकर बसने के उदाहरण कम होने का नाम ही नहीं ले रहे? वैश्विक गांव की परिकल्पना वाले समय में किसी का विदेश जाकर बसना ग़लत नहीं समझा जाना चाहिए, पर विदेश की चकाचौंध वाली बात अलग है।
         वास्तविकता यह भी है कि आज भले ही अधिकांश भारतीयों के पास बैंक खाता हो या अधिकांश भारतीयों तक बिजली पहुंच गयी हो, पर हकीकत यह भी है कि आज देश की राष्ट्रीय संपत्ति का 77 प्रतिशत दस प्रतिशत हाथों में है। यह सही है कि हमारा भारत भले ही आज दुनिया की सर्वाधिक तेज़ी से बढऩे वाली अर्थव्यवस्था वाले देशों में से एक हो, पर हमारी गणना दुनिया के सर्वाधिक असमानता वाले देशों में भी की जाती है। पिछले एक दशक में हमारे अरबपतियों की संख्या दस गुना बढ़ गयी है। देश में बड़े-बड़े अस्पताल तो बनाने की घोषणाएं हो रही हैं, पर सारे दावों के बावजूद मेडिकल सुविधा आम भारतीय तक नहीं पहुंच पा रही। एक सर्वेक्षण के अनुसार आज भी डाक्टरी सुविधाओं के लिए होने वाले खर्च के कारण छह करोड़ से अधिक भारतीय प्रतिवर्ष गरीबी के पाले में धकेले जा रहे हैं।
        आंकड़े बहुत कुछ बोलते हैं, पर बहुत कुछ बता भी नहीं पाते। सामाजिक असमानता वाला क्षेत्र ऐसे ही आंकड़ों वाला है। हमारा समाज आज भी जिस तरह से बंटा हुआ है, उसे आंकड़ों से नहीं समझा जा सकता। उसे समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि इक्कीसवीं सदी के भारत में किसी दलित की घोड़े पर बैठ कर बारात निकलना एक समाचार है! यह भी समाचार है कि देश में ऐसे भी स्कूल हैं जहां विद्यार्थी तो हैं, पर नियमित अध्यापक नहीं हैं; प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो हैं, पर कई ऐसे भी हैं, जिनके ताले महीनों तक नहीं खुलते! यह भी हमारे ही देश की कहानी है कि स्कूल में बच्चों को नमक के साथ चावल खिलाने का समाचार देने वाला पत्रकार देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जाता है।

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