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आस्था /शौर्यपथ / हिंदू धार्मिक मान्यताओं में पूजा-पाठ के बाद भगवान की आरती करने का विधान है. मान्यता है कि कोई भी यज्ञ-अनुष्ठान और पूजा-पाठ तभी संपन्न होता है जब पूजन के बाद संबंधित देवी-देवता की आरती की जाती है. आरती एक प्रकार से पुर्णाहुति का ही एक अभिन्न अंग है. हालांकि शास्त्र-पुराणों में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि सही विधि और नियम से की गई आरती देवी-देवता को स्वीकार होती है. आइए जानते हैं कि भगवान की आरती करते वक्त पूजा की थाली कितनी बार घुमानी चाहिए. ताकि भगवान को आरती स्वीकार हो सके.
भगवान के सामने कितनी बार घुमाएं आरती
- भगवान की आरती हमेशा एक ही स्थान पर खड़े होकर करनी चाहिए. आरती करते समय हमेशा थोड़ा झुककर आरती करें. आरती को चार बार भगवान के चरणों में, दो बार नाभि पर, एक बार मुखमण्डल पर और सात बार सभी अंगों पर उतारें. इस तरह के 14 बार आरती घुमाने से चौदह भुवन जो भगवान में समाए हैं उन तक आपका प्रणाम पहुंचता है.
- स्कंद पुराण में भी आरती के बारे में खास नियम का जिक्र किया गया है. इस संबंध में स्कंद पुराण में जिक्र है कि यदि कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की संपूर्ण विधि नहीं जानता. लेकिन भगवान की हो रही आरती और पूजा में श्रद्धापूर्वक शामिल होकर आरती करता है तो उसकी पूजा स्वीकार हो जाती है.
- शास्त्रों में भगवान विष्णु द्वारा कहा गया है कि, जो व्यक्ति घी के दीपक से आरती करता है, उसे कोटि कल्पों तक स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त होता है. कपूर से आरती करने पर व्यक्ति को अनंत में प्रवेश मिलता है. जो व्यक्ति पूजा में होने वाली आरती के दर्शन करता है, उसे परमपद की प्राप्ति होती है. ऐसे में पूजा बाद आरती करते वक्त विशेष सावधानी बरतनी चाहिए.
जिस घर में हो आरती, चरण कमल चित्त लाय।
कहां हरि बासा करें, जोत अनंत जगाय।।
उपरोक्त दोहा का अर्थ है कि जिस घर में प्रभु के चरण कमलों को ध्यान में रखते हुए पूर्ण आस्था और श्रद्धाभाव से आरती की जाती है, वहां प्रभु का वास होता है. ऐसे घरों में प्रभु की कृपा से हमेशा खुशहाली बनी रहती है.
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