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व्रत त्यौहार /शौर्यपथ /शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या को हुआ था और इसी दिन शनि जयंती मनाई जाती है. शनि जयंती का वट सावित्री का व्रत भी रखा जाता है. मान्यता है कि शनि जंयती को शनिदेव की पूजा अर्चना करने से जीवन में कष्ट और बाधाओं से मुक्ति मिलती है. शनिदेव को सूर्य देव का पुत्र और कर्म फल का दाता देव माना माना जाता है. आइए जानते है कब मनाई जाएगी शनि जंयती और उससे जुड़ी कथा
6 जून को शनि जयंती
शनि जयंती ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाई जाती है. इस वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि 5 जून को संध्या 7 बजकर 54 मिनट से शुरू होकर 6 जून को 6 बजकर 7 मिनट पर समाप्त होगी. शनि जयंती 6 जून गुरुवार को मनाई जाएगी. ज्येष्ठ माह की अमावस्या को वट सावित्री का व्रत भी रखा जाएगा.
पूजा विधि
- शनि जयंती के दिन प्रात: काल जल्दी उठकर स्नान ध्यान के बाद घर के मंदिर में दिया जलाएं.
- इसके बाद शनि मंदिर जाकर शनिदेव को सरसों का तेल और फूल चढ़ाएं.
- शनि चालीसा का पाठ करें.
- इस दिन व्रत भी रखा जा सकता है.
- शनि जयंती के दिन दान का बहुत महत्व है.
- इस दिन दान का करना बहुत फलदायी होता है.
- शनि जयंत को शनिदेव को प्रसन्न करने इस मंत्र का जाप करें-
ॐ शं अभय हस्ताय नमः”
“ॐ शं शनैश्चराय नमः”
“ॐ नीलांजनसमाभामसं रविपुत्रं यमाग्रजं छायामार्त्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम”
शनि जयंती की कथा
धार्मिक ग्रंथों में वर्णन है कि ग्रहों के देव सूर्य का विवाह राजा दक्ष की कन्या संज्ञा से हुआ था और उनके तीन संतान मनु, यमराज और यमुना थे. एक बार संज्ञा ने अपने पिता दक्ष से सूर्य के तेज से होने वाली परेशानी के बारे में बताया लेकिन पिता ने कहा वह सूर्य की पत्नी है और पति की भलाई की भावना से रहना चाहिए. इसके बाद संज्ञा से अपने तपोबल से अपनी छाया को प्रकट किया और उसका नाम संवर्णा रख दिया. सूर्य और संज्ञा की छाया से शनिदेव का जन्म हुआ. शनिदेव का वर्ण बहुत ज्यादा श्याम था. बाद में सूर्यदेव को पता चला कि संवर्णा उनकी पत्नी नहीं है तो उन्होंने शनिदेव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया. इससे शनिदेव क्रोधित हो गए और उनकी दृष्टि सूर्यदेव पर पड़ी जिससे सूर्यदेव काले पड़ गए. इससे संसार में अंधकार छाने लगा. परेशान देवी-देवता भगवान शिव की शरण मे पहुंचे. तब शिव भगवान से सूर्यदेव का संवर्णा से माफी मांगने को कहा. इस तरह सूर्यदेव ने संवर्णा से माफी मांगी और शनिदेव के क्रोध से मुक्त हुए. इसके बाद सूर्यदेव अपने स्वरूप में लौट आए और धरती फिर प्रकाशमान हो गई.
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