April 25, 2025
Hindi Hindi

शिव ही हैं स्वयं ब्रह्म परब्रह्म परमेश्वर

धर्म संसार /शौर्यपथ /परमेश्वर के दो रुप है निराकार और साकार। निराकारर रूप में शिव है और साकार रूप में शंकर है। शिव या शंकर दोनों ही ब्रह्म स्वरूप है। शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं– शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है।
शिव ने सृष्टि की स्थापना, पालना और विलय के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश नामक तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना की। इस तरह शिव ब्रह्मांड के रचयिता हुए और शंकर उनकी एक रचना। भगवान शिव को इसीलिए महादेव भी कहा जाता है। इसके अलावा शिव को 108 दूसरे नामों से भी जाना और पूजा जाता है।

शिव यक्ष के रूप को धारण करते हैं और लंबी-लंबी खूबसूरत जिनकी जटाएं हैं, जिनके हाथ में ‘पिनाक’ धनुष है, जो सत् स्वरूप हैं अर्थात् सनातन हैं, ओमवार स्वरूप दिव्यगुणसम्पन्न उज्जवलस्वरूप होते हुए भी जो दिगम्बर हैं। जो शिव नागराज वासुकि का हार पहिने हुए हैं, अर्धनग्न शरीर पर राख या भभूत मले, जटाधारी, गले में रुद्राक्ष और सर्प लपेटे, तांडव नृत्य करते हैं तथा नंदी जिनके साथ रहता है। उनकी भृकुटि के मध्य में तीसरा नेत्र है। वे सदा शांत और ध्यानमग्न रहते हैं।
कुछ विद्वान मानते हैं कि शिव पुराण अनुसार शिव के माता-पिता सदाशिव और दुर्गा है। ब्रह्म (परमेश्वर) से सदाशिव, सदाशिव से दुर्गा। ‍‍सदाशिव-दुर्गा से विष्णु, ब्रह्मा, रुद्र और महेश्वर की उत्पत्ति हुई। रुद्र का सदाशिव रूप होने के कारण वे शिव कहलाए।

शिवपुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्‍णु दोनों में सर्वोच्चता को लेकर लड़ाई हो गई, तो बीच में कालरूपी एक स्तंभ आकर खड़ा हो गया। तब दोनों ने पूछा- 'प्रभो, सृष्टि आदि 5 कर्तव्यों के लक्षण क्या हैं? यह हम दोनों को बताइए।'
तब ज्योतिर्लिंग रूप काल ने कहा- 'पुत्रो, तुम दोनों ने तपस्या करके मुझसे सृष्टि (जन्म) और स्थिति (पालन) नामक दो कृत्य प्राप्त किए हैं। इसी प्रकार मेरे विभूतिस्वरूप रुद्र और महेश्वर ने दो अन्य उत्तम कृत्य संहार (विनाश) और तिरोभाव (अकृत्य) मुझसे प्राप्त किए हैं, परंतु अनुग्रह (कृपा करना) नामक दूसरा कोई कृत्य पा नहीं सकता। रुद्र और महेश्वर दोनों ही अपने कृत्य को भूले नहीं हैं इसलिए मैंने उनके लिए अपनी समानता प्रदान की है।' सदाशिव कहते हैं- 'ये (रुद्र और महेश) मेरे जैसे ही वाहन रखते हैं, मेरे जैसा ही वेश धरते हैं और मेरे जैसे ही इनके पास हथियार हैं। वे रूप, वेश, वाहन, आसन और कृत्य में मेरे ही समान हैं।'
ब्रह्मा और इंद्र के काल में देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। भगावान शिव को पूजने वाले देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी।

Rate this item
(0 votes)

Leave a comment

Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.

हमारा शौर्य

हमारे बारे मे

whatsapp-image-2020-06-03-at-11.08.16-pm.jpeg
 
CHIEF EDITOR -  SHARAD PANSARI
CONTECT NO.  -  8962936808
EMAIL ID         -  shouryapath12@gmail.com
Address           -  SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)