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धर्म संसार /शौर्यपथ /हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी का विशेष महत्व होता है। यह हर साल होली के आठवें दिन मनाई जाती है। इस साल शीतला अष्टमी 4 अप्रैल है। कृष्ण पक्ष की इस शीतला अष्टमी को बासौड़ा और शीतलाष्टमी के नाम से भी पहचाना जाता है। शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। शीतला अष्टमी में बासी भोजन ही माता को चढ़ाया जाता है और प्रसाद के रुप में ग्रहण किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन के बाद बासी भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिए वो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शीतला माता का स्वरूप अत्यंत शीतल है, जो रोग-दोषों को हरण करने वाली हैं। माता के हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते हैं और वे गधे की सवारी करती हैं।
शीतला अष्टमी शुभ मुहूर्त-
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त - 06:08 AM से 06:41 PM
अवधि - 12 घण्टे 33 मिनट।
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - अप्रैल 04, 2021 को 04:12 AM बजे
अष्टमी तिथि समाप्त - अप्रैल 05, 2021 को 02:59 AM बजे ।
शीतला अष्टमी व्रत का महत्व-
माना जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है। शीतला अष्टमी के दिन शीतला मां का पूजन करने से चेचक, खसरा, बड़ी माता, छोटी माता जैसी बीमारियां नहीं होती हैं। अष्टमी ऋतु परिवर्तन का संकेत देती है। यही वजह है कि इस बदलाव से बचने के लिए साफ-सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है।माना जाता है कि इस अष्टमी के बाद बासी खाना नहीं खाया जाता है।
शीतला अष्टमी की पूजा विधि-
-सबसे पहले शीतला अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर नहा लें।
-पूजा की थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखें।
-दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, होली वाली बड़कुले की माला, सिक्के और मेहंदी रखें।
-दोनों थालियों के साथ में ठंडे पानी का लोटा भी रख दें।
-अब शीतला माता की पूजा करें।
-माता को सभी चीज़े चढ़ाने के बाद खुद और घर से सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं।
-मंदिर में पहले माता को जल चढ़ाकर रोली और हल्दी का टीका करें।
-माता को मेहंदी, मोली और वस्त्र अर्पित करें।
-आटे के दीपक को बिना जलाए माता को अर्पित करें।
-अंत में वापस जल चढ़ाएं और थोड़ा जल बचाकर उसे घर के सभी सदस्यों को आंखों पर लगाने को दें। बाकी बचा हुआ जल घर के हर हिस्से में छिड़क दें।
-इसके बाद होलिका दहन वाली जगह पर भी जाकर पूजा करें। वहां थोड़ा जल और पूजन सामग्री चढ़ाएं।
-घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें।
-अगर पूजन सामग्री बच जाए तो गाय या ब्राह्मण को दे दें।
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