
CONTECT NO. - 8962936808
EMAIL ID - shouryapath12@gmail.com
Address - SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)
धर्म संसार /शौर्यपथ / वेद, पुराण और स्मृति ग्रंथों में हमें वरुण देव के बारे में जानकारी मिलती है। वेदों में इनका उल्लेख प्रकृति की शक्तियों के रूप में मिलता है जबकि पुराणों में ये एक जाग्रत देव हैं। हालांकि वेदों में कहीं कहीं उन्हें देव रूप में भी चित्रित किया गया है। उन्हें खासकर जल का देवता माना जाता है। आओ जानते हैं उनके संबंध में 10 रोचक बातें।
1. भागवत पुराण के अनुसार वरुण और मित्र को कश्यप ऋषि की पत्नीं अदिति की क्रमशः नौंवीं तथा दसवीं संतान बताया गया है। देवताओं में तीसरा स्थान 'वरुण' का माना जाता है।
2. मकर पर विराजमान मित्र और वरुण देव दोनों भाई हैं और यह जल जगत के देवता है। ऋग्वेद के अनुसार वरुण देव सागर के सभी मार्गों के ज्ञाता हैं। उल्लेखनीय है कि एक होता है मगर जो वर्तमान में पाया जाता है जिसे सरीसृप गण क्रोकोडिलिया का सदस्य माना गया है। यह उभयचर प्राणी दिखने में छिपकली जैसा लगता है और मांसभक्षी होता है, जबकि एक होता है समुद्री मकर जिसे समुद्र का ड्रैगन कहा गया है। श्रीमद्भभागवत पुराण में इसका उल्लेख मिलता है जिसे समुद्री डायनासोर माना गया है। वरुण देव इसी पर सवार रहते थे।
3. मित्र देव का शासन सागर की गहराईयों में है और वरुण देव का समुद्र के ऊपरी क्षेत्रों, नदियों एवं तटरेखा पर शासन हैं। वरुण देवता ऋतु के संरक्षक हैं इसलिए इन्हें 'ऋतस्यगोप' भी कहा जाता था। वरुण पश्चिम दिशा के लोकपाल और जलों के अधिपति हैं।
4. वरुण देव को देवता और असुर दोनों का ही मित्र माना जाता है। उनकी गणना देवों और दैत्यों दोनों में की जाती है। वरुण देव देवों और दैत्यों में सुलह करने के लिए भी प्रसिद्ध हैं। वरुण देव का मुख्य अस्त्र पाश है।
5. वेदों में मित्र और वरुण की बहुत अधिक स्तुति की गई है, जिससे जान पड़ता है कि ये दोनों वैदिक ऋषियों के प्रधान देवता थे। वेदों में यह भी लिखा है कि मित्र के द्वारा दिन और वरुण के द्वारा रात होती है। ऋग्वेद में वरुण को वायु का सांस बताया गया है।
6. पहले किसी समय सभी आर्य मित्र की पूजा करते थे, लेकिन बाद में यह पूजा या प्रार्थना घटती गई। पारसियों में इनकी पूजा 'मिथ्र' के नाम से होती थी। मित्र की पत्नी 'मित्रा' भी उनकी पूजनीय थी और अग्नि की आधिष्ठात्री देवी मानी जाती थी।
7. मित्रारुणदेवता को ईरान में 'अहुरमज्द' तथा यूनान में 'यूरेनस' के नाम से जाना जाता है। कदाचित् असीरियावालों की 'माहलेता' तथा अरब के लोगों की 'आलिता देवी' भी यही मित्रा थी।
8. मित्र और वरुण इन दोनों की संतानें भी अयोनि मैथुन यानि असामान्य मैथुन के परिणामस्वरूप हुई बताई गई हैं। उदाहरणार्थ वरुण के दीमक की बांबी (वल्मीक) पर वीर्यपात स्वरूप ऋषि वाल्मीकि की उत्पत्ति हुई। जब मित्र एवं वरुण के वीर्य अप्सरा उर्वशी की उपस्थिति में एक घड़े में गिर गए तब ऋषि अगस्त्य एवं वशिष्ठ की उत्पत्ति हुई। मित्र की संतान उत्सर्ग, अरिष्ट एवं पिप्पल हुए जिनका गोबर, बेर वृक्ष एवं बरगद वृक्ष पर शासन रहता है।
9. वरुण के साथ आप: का भी उल्लेख किया गया है। आप: का अर्थ होता है जल। मित्रःदेव देव और देवगणों के बीच संपर्क का कार्य करते हैं। वे ईमानदारी, मित्रता तथा व्यावहारिक संबंधों के प्रतीक देवता हैं।
10. भगवान झुलेलाल को वरुणदेव का अवतार माना जाता है।
Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.