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नजरिया / शौर्यपथ /कोरोना के इस संक्रमण काल में कई महान कलाकार हमसे विदा हो गए। इरफान खान और ऋषि कपूर के बाद गीतकार योगेश भी इस दुनिया को छोड़ गए। पिछली सदी के साठ और सत्तर के दशक में यागेश जी ने कई बेहतरीन गीत लिखे, जिनमें से कुछ तो कालजयी सिद्ध हुए। कोई भी संगीत-प्रेमी आनंद का मशहूर गीत जिंदगी कैसी है पहेली हाय... भला कैसे भूल पाएगा? उनके लिखे दर्जनों गीत ऐसे हैं, जिन्हें रसिक श्रोताओं से लेकर आम आदमी तक गुनगुनाता रहा है।
लखनऊ के गणेश गंज मुहल्ले में 1943 में जन्मे योगेश की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा एक साहित्यिक-सांस्कृतिक माहौल में हुई थी, क्योंकि उनके पिता इंजीनियर होते हुए भी साहित्यिक अभिरुचि से संपन्न व्यक्ति थे। मगर पिता की असामयिक मृत्यु हो गई और घर में अभाव का यह हाल था कि पिता के अंतिम कर्म के लिए योगेश को चंदा एकत्रित करना पड़ा था। गरीबी सामने मुंह खोले खड़ी थी, और जिंदगी का लंबा सफर बाकी था। योगेश को पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। जीवन-यापन के लिए उन्होंने टाइपिंग सीखी। और काम तलाशने के सिलसिले में 1961 में वह मुंबई आ गए। मुंबई इसलिए, क्योंकि यहां उनके चचेरे भाई पहले से फिल्मों में लेखन का काम कर रहे थे। एक भरोसा था कि मुंबई में कोई तो जानने वाला होगा। मुंबई आने पर योगेश को दुनिया की कटु हकीकतों से दो-चार होना पड़ा। जिस उम्मीद के सहारे वह आए थे, वहां से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल सका। फिर उन्होंने एक ‘चाल’ किराए पर ली। खुद खाना बनाते और जिंदगी को एक राह मिले, इसकी तलाश करते। इसी दौरान गुलशन बावरा से उनका संपर्क हुआ। उन्होंने ही योगेश को गीत लिखने की सलाह दी। शुरुआत तो योगेश ने कहानी लेखन से की, बाद में उन्होंने पटकथा व संवाद लिखने का भी काम किया। लंबे संघर्ष के बाद उन्हें एक गीतकार के रूप में काम मिला।
बतौर गीतकार सखी रौबिन से उनका पदार्पण हुआ। इस फिल्म में योगेश जी ने छह गीत लिखे। मगर तुम जो आओ तो प्यार आ जाए, जिंदगी में बाहर आ जाए तराने ने लोगों का ध्यान खींचा। इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों के लिए अनुबंध किया। 1968 में आई एक रात के गीत सौ बार बनाकर मालिक ने सौ बार मिटाया होगा, ये हुस्न मुजस्सिम तब तेरा इस रंग पे आया होगा को मोहम्मद रफी ने बडे़ ही दिलकश अंदाज में गाया है। इस गीत को सुनकर लोग चौंक उठे। इस गाने ने बतौर गीतकार योगेश जी की पहचान स्थापित कर दी।
गीतकार के रूप में उनकी मुख्तलिफ पहचान का आधार थीं- उनकी प्रवाहमय भाषा और बोलों की दार्शनिकता। योगेश जी ने फिल्मों के लिए गीत लिखते हुए अपनी साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत को हमेशा जीवित रखा। आनंद, रजनीगंधा और मिली जैसी कामयाब फिल्मों के गीतों में इसका प्रभाव देखा जा सकता है। इन फिल्मों के गीतों ने अपने समय में धूम मचा दी थी। योगेश ने ऐसे समय में अपने गीतों में शुद्ध हिंदी शब्दों का इस्तेमाल करना शुरू किया, जब उर्दू लफ्जों से सराबोर गाने इंडस्ट्री में छाए हुए थे। फिल्म आनंद से उनकी सलिल चौधरी के साथ जोड़ी बन गई। इस जोड़ी ने कई फिल्मों में साथ काम किया। उस दौर के श्रेष्ठ संगीतकार एस डी बर्मन के साथ भी उन्होंने काम किया। योगेश जी ने आर डी बर्मन, बप्पी लाहिड़ी, राजेश रोशन के साथ भी काम किया और कई अविस्मरणीय गीत रचे। जिंदगी के तमाम थपेड़ों के बीच एक सकारात्मकता उनमें हमेशा बनी रही और यह उनके गीतों में भी दिखती रही।
योगेश को इस बात का बहुत मलाल रहा कि वह कपूर परिवार के लिए कोई गीत न लिख सके। एक साक्षात्कार में उन्होंने स्वीकार किया था कि एक बार राज कपूर ने उनको बुलाया था और वह आरके स्टूडियो पहुंचे भी, लेकिन उनके गार्ड ने उन्हें गीतकार मानने से मना कर दिया। दो-तीन प्रयास के बाद भी वह राज कपूर से नहीं मिल सके। दूसरी तरफ, राज साहब को शायद यह महसूस हुआ कि योगेश उनसे मिलने आए ही नहीं।
योगेश जी के देहांत पर लता मंगेशकर का शोक संदेश ही उनके कद की ऊंचाई को उजागर कर देता है। मगर सच का एक पहलू संगीतकार निखिल का वह ट्वीट है, जिसमें उन्होंने लिखा है, हम योगेश जी को वह सम्मान न दे सके, जिसके वह वाकई हकदार थे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) पवन कुमार, प्रशासनिक अधिकारी
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